पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बगला साहित्य ५.२ से स्वतन्त्र थी। अगरेजों के बंगाधिकार के बाद बंगला ; आ। उस समर बंगालों रंगालयका पूर्ण प्रभाव साहित्यका जिस तरह क्रमविकाश हुभा है, उसी तरह । धा । नतन मानमें रंगामिनय उस समय जन याबा-अभिन. उपयोगी नाटकोंकी भाषा भी माजित । साधारणसे नित्तो हटान् थापित कर लेना था। रुचि-सम्पन्न हो गई है। उमी कारण लोग उस समय यात्रा-मादित्य के ऊपर प्राचीन बगमायामे रचित जिन सब पुम्नकोका परि। उतना ध्यान नहीं देने थे। अनेको प्रत्यकारों ने गन्न चय पहले दे चुके है, हणकमलको पुस्तक स्निने हो नया अंग्रेजी नाटकों का नुकरण करके गामिनयोक. बगोमे उसी छन्द (चिन होने पर भी उसी भाया । योगी नाटकों को रचना की। उस समय बंगला गद्य नहीं यधिक मार्जित एवं सुचि सम्पन्न है। कृष्ण- , माहित्य मी अपेक्षासन उन्नति पर था। उसे हम का कमलके समयमें ही पडित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, वझिम' नाटक साहित्य प्रमित कुलान बुलमय, शकुन्तला, चन्द्र चट्टोपाध्याय प्रभृति विद्वानोंने बंगला गद्यसाहित्य के पहायती, नवीन तपसिनी, नालदर्पण नया जमाईधारिक उन्नतिसाधनमे जो अदृट परिश्रम किया था, उसोका फल' नाटकोंक संकलनमे देते है। नुप्रसिद्ध नाटककार थोड़े ही दिनोंमे बगालके सभी स्थानों में विस्तृन हो । दानवधु मिल, मधुसूदन दत्त प्रभृतिने मार्जिन गय गया। कवित्वमे कृष्णकमलको यात छोड देने पर भी साहित्य-मिक्षा गुणसे अपनी अपना पुस्तयोंकी भाषा उसी समय सद्भावगतकप्रणेता कृष्णपात्राण मजुमदार, मी मार्जित करने का प्रयास किया था । लीनाल मेघनादवध प्रणेता माटकेट मधुसूदन दत्त तथा प्रविर मर्यत पुग्नसमटन नांये ढाटी एवं उमरी हेमचन्द्र वन्द्योपाध्याय उमी मार्जिन मापा-जगत्मे माया भी बत्तमान मालिन्यपूर्ण सम्माने परिपूर्ण विचरने देखते हैं। अदरेजी शिक्षित मधुसुदन, हमचन्द्र नही है, नुन उला गयाग कसान राममान से प्रभृतिकी काध्य भागामे मानो अङ्करेजी शब्दरहस्य तथा समय के गयसाहित्य में गग्य हानामा उने विद्या- छन्दोतत्त्व का अम्फुटालाक परिध्यक्त हो रहा है। ईश्वर सागरकं समय माबित नाहित्यके मध्य मनिवेश चन्द्र गुप्त, कृष्णकमल प्रभृति अवियोंकी कविताओं में हम नहीं किया जा सकता। लोग उसा तरह प्राचीन बंगला गाहित्यका छन्दाबध ___यानाकी चाल ढाके परिवर्तन के साथ दो ग्रथिन तथा पूर्ण बंगला छन्दका अविकल चित्र परिम्फुट देखते पाला-समूहका सुधार हुआ एवं यावा नाहित्यका मो मार्जित भाषामे आदर हो चला। उमीके साथ वर्ग- ___इम समय यातासाहित्यमी परिपुष्टिकं लिये प्रय. मान ममयम पांचालो, ऋषि नथा जारी गानदी रचना, कारोंने अपने अपने पालाओसी श्रीवृद्ध के लिये पुम्नक शब्दयोजनाको विशेष परिपाटी भी देखी जाती है। पहले रचना शुरू कर दी। इन सब प्रकारों के मध्य पाचालीका गान जिन रूपमै था, इस समय उससे हम लोग विद्यासुन्दर पालाके रचयिता मैग्व हालदारको भाषा अधिक मार्जित मात्रापन एच रसना सुचि प्रथम नमकते हैं। उसके बाद मदन मास्टर, रामचंद्र सम्पन्न हो चली है। प्राचीन पाचालियों ने दारधि राय मुखोपाध्याय प्रकृति अनेकों कवि यात्राकी रचना कर गये। प्रभृति आधुनिक कवियों द्वारा रचित पांचालियोंमें इस है । शेपोक्त समय कवि ठाकुरदास तथा मनोमोहन वसु तरहको पृथक्ता सुस्पष्ट रूपमें वनमान है। इस समय ने भी यात्रालाहित्यका हुन उत्कर्ष साधन किया है। जिन सब पांचालियोंके गान हम लोग सुनते हैं, उनके प्रसिद्ध यात्राकर श्रीयुक्त मोतीलाल रायके कितने ही गान तथा भाषा अपेक्षाकृत कहीं अधि मार्जित है, गीताभिनय है, उनमें भरतागमन तथा निमाई सल्यास फिन्तु सखीसंवादादिम आदिरस वा अश्लोलताको दौड बहुत बढ़ गई है। विशेष प्रसिद्ध है। संगीत तथा काव्यरचनामे राय ____हन्ठाकुर, नीलमणि पाटनी, भोला मयरा प्रभृति महाशय सुपटु थे। करियोंके गानोंको रचना सुन्दर तथा भावविकाश- मदन मास्टरके समय यात्राका बहुत कुछ सुधार पूर्ण है। दूस