पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५२०

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पगला साहित्य इनके अलावा १८१७६०म शाम्रपद्वति और पाणक्य । मोहन तालवारने शिशुशिक्षाका प्रथम माग, द्वितीय श्लोमा बगानुनाद, १८१८ में साशिक्षाविषयक ) भाग और तृतीय भाग रचे। प्रस्ता, १८१८६०में नोतिस्था, १८१६ इ०में मनोरजन १८५७८०से इश्वरचन्द्र गुप्त द्वारा रचित प्रबोध प्रभा इतिहास, श्रीयुत गौरमोहन विद्यालङ्कार और राजा कर नामक गध म य मुद्रित हुया १८८ इ०को ४६ राधाकान्तरको धनाइ राधाका तनोतिकथा पियनी| चपकी सरस्थामें इश्वरच : इस लोक्मे चल बसे । मृत्यु माहवको रचित घाफ्यारो, मि० टुपारकी ऐतिहासिक के पहले चे मोर मा कितना पुस्तमें लिख गये थे, किन्तु तिगप १८२० इ०र्म राजा राधाकान्तदेव निरचित स्त्री उनकी जीवदशा में प्रसोधप्रभारक सिवा थोर फोह पुस्तक शिक्षापिय १८२१ ६०को श्रीरामपुरसे मुद्रित सद्गुण छपी न थी। गुप्त महाशयको एक दूसरी पुस्तकका और य य और १८२१ इ०को महेद्रलाल प्रेसमें मुद्रित । नाम हितप्रभाकर है। यह भी गद्य पद्यमय है । पोधे दु आत्मतत्कीमुनी, ये मव प्रथ पाये जाते हैं। विकाश भी उौंका पनाया हुआ है । यह सस्रत आत्मनच पीमुदी नाम नथ प्रबोधच द्रोदय नाटक) प्रदोघच द्रोदय नाटकमा अनुवाद है--पारकके माफारम गद्य चगानुपाद है। प्रबोधच द्रोदय नाटके रचयिता हो रचा गया है। इस प्रथा छपन न छपी प्रकार धोरण मिन हैं। रितु इम अनुपादक रचयिता तीन परलोकको सिधारे। उस समय इसक सिप तीन अङ्क ध्यक्ति हैं, पण्डित कानायतपञ्चाशन गगाधर नाय छपे थे। गुप्त महाशयकी गद्य रचनाके मध्य यही पुस्तक उसहै। रत्न और रामार गिरोमणि । तो अनुवादकोंने जिस भावमें इसका अनुवाद किया है उससे नायिका गुप्त महाशयने पसिनाटक नामक और भी पर प्रम या नहीं होता। इस वगाबादसे धगीयसाहित्य प्रय लिखना शुरू किया था, कि तु दुभाग्यवशता ये अकालहास लोकसे चल बस । इनके नावनचरित्र या बहुत लाभ पहुवा है, इसमें जरा भी मन्देह नही । कलिराजानी याला-एक नाटक है। यह १८२४ / क सम्यधर्म अनेक विषय 'इयरवद्रगुप्त' शब्दम लिखे १० रनित और अभिनीत हुआ है। जा चुके हैं। बङ्गला साहित्यके मध्ययुगके सबसे अन्तिम प्रकार श्याचद्र गुप्त है। इनके बाद हो साधन-यह भी राममोहन रायके मभिमतम प्रति यडीय साहित्यके वर्तमान युगमा आरम्म हुआ। कृत रचित ति पाण्डित्यपूण एक घगठा गधर्म प्रतिपाद प्रय है। श्रीमधुसूदन तर्कालङ्कार नामक एक पण्डितने ____ सस्त कालेजके पण्डितोंके द्वारा याला साहित्य यह परिसनेका उद्द। क्या है, इस सम्बध पर को यथे उन्नति हुई है। सस्त कालेजमें भी घटस भाषाके अनुशालनक निमित्त एक समिति प्रतिष्ठित भूमिका रिनी है। हुइ थी। रेमरेएड मोहन प धोपाध्याय उस समिति रामरन-१८५६ ई०में नदिया गिलावासी ए वारेन्द्र के सदस्य थे। उनके अतिरिक्त और भी कितने सदस्य प्राहाणो रामरत्न नाम दे पर देवीमागपत प्रथा वगी- बङ्गलाभापाको गतिक लिपे का एक सार राम प्रस्ता नुषाद पिया। यना तथा प्रदघका प्रचार करत थे। जितु यथार्थमें जीवोद्धार-१८२६ हम यह प्रथ छापा गया है। यह सस्कृत कालेजके कतिपय पण्डितोन ही पङ्गलामापाकी "नित्यकर्म पद्धत्ति है। इसमें कास्न मूल और गायु पुष्टि की। और पया, उहे माधुनिक पगालासाहित्यक याद है। गगारिशोर भट्टाचार्य हमधे प्रणेता है। अमदाता कह सकते हैं । पण्डित तारानटूर विद्यासागर वासवदत्ता मदनमोहन तकालद्वार महाशयका द्वितीय पच नाट्यकार रामनारायण प्रभूतिफे नाम बालाभापाको माय हा पर भी काव्याशर्म, रचना सौदयमें तथा आय | धर्तमान उन्नति के इतिहासमें चिर दिनों सय 147 में यह सबसे बडाह। अक्षरों में लिव रहेंगे। इमफ सिपा छोटे छोट बों को शिक्षाफ लिये मदा सफ सिवा १स्यीं शताब्दीफे आरम्भस हा सामा