पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वाला साहित्य गायके कायसे चगगमाहित्यम अप्रेजी प्रभाधको पूर्णता, तरहकी भाषा पाठौके पक्षम अत्यात मोनिकर है। इस झलक रही है। रोतिस घोह कोइ भ्रमणदत्तात लिप कर मा पाठकों इसके बाद भूदेय मुखोपाध्याय, रगलायद्यो । का यथेष्ट मनोरजन किया है। पलत पे दोनों हो पाध्याय, हरिनाभिग्रामनियामी पुगनपुर सरम्य पाट, रातिया पगला गद्य साहित्यम पाइ माती। प्यारी रुपिणीहरण प्रभृति नारपये रचयिता गमनारायण द मिल इम तरहको मापाके आदिमायकत्ता थे। नरत तथा राय दीय धु मित्र बहादुर प्राति नाम सुतरा घगीय माहित्यक इतिहासम इम सम्य धर्म इन यगलामाहित्यम सविशेष उल्लेखनाय है। का नाम चिरस्मरणीय रहेगा। इस वाद व गला साहित्यक एक और प्रतिभाशाली आधुनिक घगीय साहित्य क्षेत्र विश्वविख्यात महा रेगका नाम उत्ते। परने योग्य है। उनका नाम पुरप पक्मिचद्र चट्टोपाध्याय महायने यगीयसाहित्य प्यारोचाद मित्र था। गाय साहित्य जगतम रहोंने गगन में पूर्णच द्रमाफी तरह उदय हो पर जो व गला अप नाम 'टेक्चाद ठापुर" प्रगट किया था। सरल साहित्यम अमृतकी धारा बहा दा है साहित्यफ इतिहास भायम क्योपकशनको रानिसे पारोचादी गद्य लिखने में उसकी तुलना नहीं की जा सकती। पकिमच आधु की प्रथा परिषद की बहनौका विश्वास है कि ये ही इस निक घ गालियोको चिन्ता तथा कल्पना, उधम तथा तरहकी भाषाके आदि प्रवर्तक थे। विन्तु इनसे यहुन । उन्नत यासाफ पूर्ण विकास्थल थे, यही इम देशीय पहर हो परा' साहवये एक प्रथम इस तरहको सपना चिनाशाल सादिगिगोंक मप अनझोंकी धारणा है। का आदश सबसे पहले देगा गया था, मृत्युञ्जय ती। उनका कहना ६ विगदेशका आधुनिक कल्पना उदी सहारकी रचनाफे किसी किसी स्थान "स तरह से प्रकाशित हुई ६ फिर उन्होंने उस पाका मूर्ति भाषा निदर्शन इमसे मिला है। रितु प्रचलित भाषा ! निमाण क्यिा है। व गलामादित्यम व किमच अद्वि पा ऐमा सर्या गसुन्दर प्रथ इससे पहले प्रकाशित नहीं | तोय मदापुरप थे। हुमा था। १वीं शताप्दाके प्रारम्मम यरापियाँके प्रभायस कालीप्रसन्न सिदने मला भाषाफ अनुसरणसे पाश्चात्यमान तथा पाश्चात्य सभ्यताक मालार्म सदसा 'हतो पेनार नपसा प्रणयन करके ममार्म यथेष्ट पश| पग उद्भासित हो उठा। म साथ साथ समाज प्राप्त किया था। उस महाभारतका व गलानुदि तथा साहित्य जिस तरह क्तिने सद्गुणोंसे समु पग मादित्यको १५ द्विताय काति है। मुविण्यात | जनरल हो उठे, उमी तरह भनेको दोपाले परिपूर्ण भी हो पक्मि वायू भी अलारी मापा सशोधित करके नये युग । गये। ममानमें पिश पर हो उठा, फिर ममाजमे में गा मापाश यथेष्ट पुष्टिमाधन परफे ससारमें अमिन परका मारिभाष भी हुमा। यिनीपमायका ममरकीत्ति स्थापन कर गये हैं। अनुकरण और विदशाय थान पानकी प्रति प्रयल हो ____ यतमान समय में गीय गयमादित्यप सेयर उठा, फिर उसके माध माय स्पनियता तथा पदाती मध्य दो घेणाफ ऐना देखे जाते हैं। एक घेणाके तथ्य नागने इच्छा दरमता हान लगी। परस्पर enा तो पयरचन्द्र विद्यासागर तथा अपपयुमारका का प्रतिघातीतरगाम ताय पिता तथा सानायबल रचना रीति अगुगामी हैं। विषयको गुएलार्म मापा जाताय हदय तथा जातीया गातीयपम तथा माताय गाम्मोयी गीप्यमयी मन्ति धारण करती है एवं उत्ते पम, जाताय याचार समा जातीय पयहार प्रभृतिष प्रति पना दिवस पर भा भोजस्थिना मापाको छोट पर सारिरियागणाप जित आए नु । मधुसूदनका रघु-तार गापामे यह उद्देश्य माघिन नहीं होता, इस आनीय साहित्यानुराग इमादो दिशन है। उनका हिमावसे पियासागर या मक्षपकुमार प्रदशित पथ हो जायन विदीप भाय तथा विस्तार माचार रिकारम माया पिर जनमाधारण चित्तरंजा भाच्छन्न होन पर मा उ प्रमिमा गातीय मायादी निमित्ताना भाषा मताय उपयोगिता है। इस पूयियापित हो गया।