पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वचण्डी--बचनशत पाणिग्रहण किया। कुछ ही दिनोंके बाद राजपुत्र दलपत भारतेश्वरी, बाच, बाचा, वाग्देवी, वर्णमाका, मापिन, शाहको मार कर वे वहांके राजा वन बैठे। उक्ति. व्यवहार, लपिन, वचस् । _____एक समय अयोध्या प्रदेशमें इन वगोति राजपूतों को। वैदिक पर्याय-धाग, ला, गौः, गोरी, गान्धी प्रधानता फैली हुई थी। उन्नाव राजवंशका इतिहास | गभीरा, गम्भीरा, मन्द्रा, मन्द्राजनी, घाशी, वाणी, वाणीत्र, पढ़नेसे जाना जाता है, कि अयोध्याके प्रसिद्ध राजा वाण, पवि, भाग्नी, धानि, नाली, मेना, मेलि, सूर्या, तिलकचांदने समय तक वचगोतिगण वहाक राज | सरस्वती. निवित, म्याहा, बग्नु, उपढि, मायु, काहुन्, समाजमें रिशेप आदर पाते थे। नये राजाके अभिपेकके | जिहा, योप, खर, शब्द, स्यन, ऋक, होला, गीः, गाया, समय वे राजकुमारके मस्तक पर राजतिलक लगा कर गण, धेना, न्माः, विपा, नग्ना, कगा, विपणा, नी: AAP, जव उन्हे राजा मान लेने थे, तब उनको राजमर्यादा मही, अदिति, मची, वाक्, अनुष्ट प, धेनु, वलगु, गलदा, सार्थक होती थी। कुर्वारके राजा एवं हसनपुरवांधुमाके सर, सुपी , वेदुरा। दीवान इस वंशले प्रधान सामन्त कहलाते हैं। २ प्यारणमें शळक रुपमैं बह विधान जिमस्ने हसनपुग्व धुथाके सरदार इस समय इम्लामधर्ममें एकत्व या बहुत्यका बोध होता है। हिन्दीमे दो ही बचन दीक्षित हो कर खान्जादा नाममे परिचित होने पर भी होते हैं-एकवचन और बटुवचन । पर कुछ और वनौधाके राजाओंको राजतिलक करने के अधिकारी है। प्राचीन भाषाओं के नमान संस्कृ में एक तीमग बचन अरोरले सोमवंशी सरदारगण, रामपुरके विपेनगण, | | भी होता है। शुण्ठी, सोंठ। अमेठीके बन्धट गोतिगण एवं तिलोई-बासी कन्हाई बचनकर ( स० त्रि०) बचकर, जो अपने वचन पर पुरियागण जब तक इनसे राजटीका नही पा लेने, तब अटल हो। तक वे अपने अपने पूर्व पुरुषों के पदके अधिकारी नहीं हो वचनकारिन (सं० त्रि०) मानाकारी। सकते। वचनगुप्ति (सं० स्रो०) जैनधर्म के अनुमार वाणीका मुलतानपुरके वत्स्यगोत्री लोग विलरबरिया, तयां | ऐमा संयम जिससे वह अशुभ वृत्तिो प्रवृत्त न हो। च्या, चन्दौरिया, कठवांग, डाले सुलतान, रघुवंशी तथा वननगोचर (सं० वि०) वचनेन गोचरः। प्रत्यक्षीभूत, गर्गचंगी प्रभृतिको कन्याओंका पाणिग्रहण करते हैं एवं जो वचनले प्रत्यक्ष हुआ हो । तिलकचांद वाई, मैनपुरी चौहान, सूर्णवंशी, गौतम, | वचनप्राहिन् (सं० नि०) वचनं गृहातानि ग्रह णिनि । विपेन नया वन्धलगोनि प्रभृनिके हाथ कन्यादान करते वचन पर स्थित, बचनके अनुमार काम करनेवाला । है। जौनपुरले वचगोति लोग रघुवंशी, वाई, जौपताम्ब, वचनपटु (सं० त्रि०) बचने पटुः । वाक्पटु, वास्फुशल । निकुम्भ, धनमन्त, गौतम, गहरवार, पणवार, चन्द्रेल, वचनमात्र (सं० वि०) भित्तिहीन वाक्य । शौनक तथा दृगवंशी प्रभृतिकी कन्या ग्रहण करने वचनलक्षिता (सं० स्त्री० ) यह परकीय नायिका जिस- एवं कन्हन, सरोति, गौतम, सूर्यवंशी, राजवाड, विपेन, की वातचीतसे उसका उपपतिले प्रेम लक्षित या प्रकर कन्हाई पुरिया, गहरवार, बवेल, वांग प्रमृतिको अपनी होना हो। कन्या देते है। वचनविदग्धा (ले० स्त्री०) नायिकाओंका एक भेद, वह वचएडी (सं० ली० ) १ सारिका, मैना । २ एक शस्त्र परकीया नायिका जो अपने पचनकी चतुराईसे नायककी का नाम । ३ वत्ती। प्रीतिका साधन करती हो। वचन (सं० ली० ) उच्यतेऽनेनेति श्लेष्मनाशकत्वादस्य वचनविरुद्ध (सं०नि०) शास्त्रविरुद्ध । नथात्वं, वच युट्। १ मनुष्यके 'मुहसे निकला हुआ वचनविरोध (सं० वि० ) प्रमाणविरुद्ध शास्त्रवान्य । माथक मन्द, वाक्य । पर्याय-इरा, सरस्वती, ब्राह्मी, वचनम्यति (स० त्रि०) मालिक कथा। भाषा, वाणी सारदा, गिरा, गिर, गिरोदेवी, गीर्देवी, 'वचनशत ( स० वि०) बहु वाक्य ।