पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५२८

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वचनसहाय-बचा पचनसहाय (स.नि.) जो किसी मनुष्यके साथ यात | आकारसे पर उससे कुछ बड़े होते हैं। इस फूल चित करने के लिये विाया और मिष्टमापी व्यक्ति को अपने | नरगिमके फूल की तरह पोले होते हैं। पत्तोकी पाल साथ ले नाता हो, वातचीत करनेवाला साधा। लम्या होता है । पत्तोंसे एक प्रकारका तेल निकाला जाता वचनानुग (म • त्रि०) वचन अनुगच्छति गम-। है। यह तेल सुला रहनेसे उड जाता है। इसकी जड पायका अनुगामा, जो वचनके अनुसार चलता हो। लाली लिए सफेद रंगकी होती है । जडमें अनेक गाठे वचनापत् ( स. त्रि०) १ यशर, वोल्नम चतुर। होती हैं। २ सुवता, अच्छा दोलनेवाला। ३ प्रशसावाक्पकथन सस्थत पर्याय-उप्रगधा पड प्रथा, गोलोली, शत शाल, वडाइ करनेशला 1 8 अध्यक्त श दकारा। पकिा , तीक्ष्णा, जटिला, मगल्या, निजया, उमा, पचनारन ( स० वि०) तिरस्टत, लाच्छित । रक्षोना, घच्या, लोमा भद्रा । गुण-अति तीक्ष्ण, चपनीय सं०नि०) यच अनीयर । १ स्थनीय । २ निन्दा, | कटु, उष्ण पफ, माम, प्रन्पिशोफ, वातज्वर और अति शिकायत। सार रोगनाशक । (राननि० ) वचनायता (स० स्त्री०) वचनीयस्य भाव तल राप। ____भारप्रकाशके मतसे वच, पुरासानी वन और महा लोकापवाद। मरीयच यही तान प्रकारको घच है। वचक पयाय- वचनस्थित (स० वि०) वचने तिष्ठति स्मेनि म्याक्त। उप्रग घा, पडन था, गोलोमो, शतपत्रिका पपनो, (तत्पुरुष कृति बहुत । पा ६.३।१४) इति सप्तम्या भलुक् । मगल्या, जटिला, वमा और रोमशा । गुण-उप्रगधा, जो वचन पर शटल हो । पर्याय-वचनस्थ विधेष, पटुतिक्तरस, उष्णवीर्य, वमिजनक, अग्निमृद्धिकारक, मत विनयमाही, आथन मूवशोधक तथा विव ध, आध्मान, शल, अपस्मार,सफ. वचनोपकर (स.पु.) वचनस्य उपप्रम वाक्यारम्म उमाद, भूतदोप, पृमि गौर युनार | पयाय-उप यास, वाइमुख। सुरासानी वर-खुरासानो बचशे पारसीक वर घचर स० पु०) समातरे चरतीति भय चर अच् अल्लोप ।। कहत है। यह बच सफेद होती है। इसका दूसरा १कुट । २ शठ। नाम मचता है। इस पचम पूर्वोक्त सभी गुण हैं, विशे वचनु (स० पु०) ननु । पतः घायुनाशक के पक्षम यह सर्वश्रेष्ठ है। यस् ( स० क्ला०) उच्यते इति च (सर्वधातुभ्योऽसुन् । महामरी यच-पश्चिम दगम कुलिअन नामसे उण ४११८२) इति मसुन् । वाक्य । प्रसिद्ध है। इसका दूसरा नाम सुग धा भी है। गुण- वचसापति (स.पु०) वधमा वाया पति पष्टया अलुक ।। उप्रगविशिष्ट विशेपन कफ और कासनाशक, स्वर गृहस्पति) प्रसादक सचिननक तथा हृदय, एठ और मुखशोधन । पचार (सं० त्रि०) रोतीति अच् यचसः ।। इसके सिवा स्थुरथिविशिष्ट एक मोरप्रसारकी सुग बचनपरस्थित, घानानुसार काययकारी। धित वच है। यह यच पूनार घचसे होगुणविशिष्ट है। वत्रस्य ( स० वि०) पचनयोग्य, प्रशसनाय, विग्यात । तोपचीनाको द्वीपातर पर रहते हैं। अन्यद्वीपम घचस्या ( स० स्त्री०) स्तुतिको इच्छा । उत्पन्न होनेक कारण इसका द्वापा तर नाम हुआ है। वचस्यु (स० वि०) स्तुतिकाम स्तुतिका अमिलापो। गुण-इपन् तितरम, उष्णचीये अग्निदीप्तिकारक और यचा (स० स्त्री० ) याचयतोनि यच् णिच् अच, निपात मलमूत्रशोधक, विरध, भा-मान, शल, वातव्याधि, अप नात् हम्ब , यदा अन्तर्माविण्यर्थात् वचोऽच । श्रीपध स्मार, उमाद और शरीरवेदनानाशक, विशेषत फिरंगी विशेष। यह काश्मोरसे आसाम तक और मणिपुर तथा | रोगर्म यह बहुत उपकारा है। (मावप्र०) घमाम दो हनारस छ हजार फुट तक ऊचे पहाड़ों पर गरुडपुराणम लिना है, कि एक मास तक पका जल, पानी किनारे होता है । इसके पत्ते सीसनके पत्ते के | दूध वा घृतके साथ सचन करनस स्मरणशक्ति बढती