पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वजूपाणि-बजस्प ५४१ वोधिसत्वोंकी गुप्तमिया मालूम हो गई। वह या घनप्रस्तारिण (म० स्त्री०) तखोर देवीभेद । पाणिसे चुरा पर सव अमृत पो गया ओर पज पाणिके पत्रप्राय (स.लि.) वन की तरह कठिन । परस बहासे चम्पत हुए । पीछे चज पाणिको अमृत चोरी जवाहु (स० पु०) १६।२रद । ३ अग्नि । ४ उडीसा होनेक धात मालूम हुइ । चे राहुको पकडने चले। पहले ये| के एक राजाका नाम। सूर्यलोक गये । सूर्यने राहुके हरसे असल बात छिपा कर वनवीजा (स० पु०) यज मिव कठिन पोजमस्य छन् । सिर्फ इतना ही कहा कि उन्होंने एक मादमाको उधरसे | लतारखा। जाते देखा था। यहासे यन पाणि च लोग आये। पनभूमि (स० स्रो०) नगरभेद । वद्रमाने उनसे सारी बात यह हौं। तुरत हो चज पत्रभूमिरजस (स० क्ला०) चैका त मणि। पापिने राहु पर आक्रमण पिया | उनके घन घातमे | पद्मभृकुटि (स० क्लो. ) तत्रोत देवीभेद । राहुके दो खण्ड हो गये। उसका सिफ मुख हो वा वनभृङ्गी (स. खो०) मधुर तृणपिशेष एक प्रकारकी मोठी रहा, नोचेका हिस्सा गायब हो गया। वितु अमृतफे | घाम । गुण-कटु, उष्ण, शाम, हिका, कम्प, कण्ठरोग, प्रभायसे उसके प्राण नहीं निकले। इसके बाद वोधि | घातगुल्म, पीनस मादि रोगनाशक । सत्वगण पिर इक्ठे हुए। राहुके पेगावसे अत्यन्त | वनभृत् (स० वि०) यत्र विमर्शिम चिप तुक च । इन्द्र। तीक्ष्ण चिप पैदा हुआ जिसने सष्टि नाश यन्न भैरव (स.पु०) महायान शाम्बाके वीद्धो के एक देगा। होनेके लक्षण स्पष्ट दिमाइ पड़ने लगे। बोधिसत्वोंके | इहें भूटान में 'यमा क शिव' कहते हैं । इनके अनेक मुस परामर्शसे घजपाणिने उस मूत्रका पान करके सृष्टिको और हाथ मारे जाने हैं। पैरले नाचे योद्धर्मपी रक्षा की। उस समय वन पाणिक रीरका रग गिल्युट | पहुरासे पापएड पड़े हैं। का हो गया। पद तथा सूराके ऊपर राहुका आन म यत्रमणि (स० पु०) होरक, हीरा। मोध रहा । केवल वन पाणिके कौशरसे यह चन्द्र सूर्ण यज्ञमय (स० वि०) या स्वरूपे मयट । वनस्वरूप को निगलने नहीं पाता है। पत्रके समान। पाणिने जिस समय राहु पर आक्रमण पिया घनमित्र (स० पु०) राजभेद । (भागवत १९) उम समय उसके पटे हुए स्थानसे यमृत वहने लगा। वनमुतुर (स० पु०) राजा प्रतापमुकुटके पुन । यह अमृत-रस पृथ्वो जिा स्थानों पर गिरा यहा नारा | पत्रमुष्टि ( स वि०) १। २५ राक्षमा नाम । प्रकारके भेषज उत्पन्न हुए। भोर देशमैं जितनो पर | ३ मारण्य शरण द, न गो सूग्न । पाणिशे रणवर्ण मूत्तिया है, उनके दाहिने हाथ वन घनमूली (१० स्रो०) वनमिय कठिन मूर पम्या: । माप वाये हाथमें घण्टापाय प्रभृति तथा कमरमें मुण्डमाला | । पी। उगली उरद। यत्रमूपा (स. स्त्री०) अधमूपा यात्र। वनपाणित ( स०क्लो०) यज पाणभाव त्य। वज पाणि धनयोग (स० को०) फलितज्योतिपोक्त योगविशेष । साभाय या धर्म। वज्रयोगिनो (म० स्त्री०) १ तत्रोक्त देवामेद । २ ढाका वनपात (सं० पु० ) यज स्य पात पतन । धज पनन। | जिलेमे अन्तर्गत एक प्रसिद्ध प्राम। प्राचीन बङ्गला यनपाराण (स लो० ) दुग्ध पापापा, फुलडिया। नयम यह घरदयोगिनी नामस प्रसिद्ध है। वनपुर ( स० को०) बन स्य पुर। बननगर । | पनर ( स० पु० ) पत्रमिय रथो गम्य । क्षलिय । यमपुष्प (म० लो०) पन मिय पुष्प । । तिल्पुप !२ गत वरद (मा० पु.) घमिर रोऽस्य । १ शूकर, सूयर। पुष्प, सोया। यमतुल्य दत बनके ममान कठिन दात । यमप्रम (स. पु०) एक विद्याधरका TRI एजरान (रू. को०) नगरभेद । वनप्रभाव (सं० पु.) रुपराजभेद। पन्नरूप (स.नि.) वनका तरद माकृतिघाला । 1ol TV 136