पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५४२ वनिपि-वनशल्य यलिपि (म० स्त्री०) एक प्रकारको लिपि ! इन्हें हमरो रसमे 7 दिन घोंट कर आगला, देवनागर शब्द देन्यो । वहेडा सोंट, पीपल, मरिच, प्रत्येक काढे ७ बार वज्रलेप (० पु०) पक ममाला या पलम्तर जिसका भावना दे कर गोली बनाये। अनुणन और श्रापकी लेप करनेसे दीवार, मूर्ति यादि अत्यन्त दृढ और मज मात्रा दोपके बलाबल अनुसार स्थिर करनी चारिये। बूत हो जाती है। यह दो तरहसे बनता है। एकमे ने दमके सेवन के कुष्ट और पामा रोग जाने रहते हैं। और कैथके कच्चे फल, मेमलके फल, गल्लकी (मलाई) (टनेन्द्रसारम० कटगेगाधि०) के बीज, धन्वनकी छाल और जौको ले कर एक द्रोण यवध (सं० पु०) वज्रपनन द्वारा मृत्यु । गुणसाद पानी में उबालते हैं। जब जल कर आठवां भाग रह जाता भेट ( Crose multiplication )। है, तब उतार कर उसमें गंधविरोजा. वोल, गूगल, मिलाव व वरचन्द्र (सं० पु०) उडीसापक गजामा नाम ! कुदरु, गोंद, राल, अलसी और चेलका गूदा घोट कर वज्रवर्मन्-एक प्राचीन करि। मिलाते हैं। दूसरा मसाला इस प्रकार है। लाप, वज्रवल्ली (सं० स्त्री० ) यज मिव कटिना बली। अमिथन- कुंदुरु, गोंद, वेलका गूदा, गंगेरनका फल, मजीठ, राल, हारझलना, हडजोडा नामको लता। बोल और आंवला इन सवको द्रोण भर पानी में उबालते वज्रयारक (गं० पु० पुराणानुमार जैमिनि, नुमन्त ने- । जब अष्टमांश रह जाता है, तव काम में लाने हैं। म्यायन, पुलस्त्य और पुलह नाम पांच अपि । अपने हैं, इसका लेप करनेमे सहस्त्रायुत वर्ष तक वह स्थायी रदता कि इनका नाम लेनेग्ने बज पानमा भय नहीं रहा। है।गाय, भैम और तरीके सी ग, गदहेके रोमैंसे । "जेमिनिश्च सुमन्नम्न वैशम्पायन ए च । के चमडे, गायके घी तया नीम और थके रस चूर | पुनस्त्यः पुनश्चैत्र पञ्च ने वजधारका:" (पुगगा ) करके मिलानेने बज नर नामक लेप बनता है। वज्रवाराही (ri० बी०) मायादेवी । पर्याय-भागैत्री, (वृहत्संहिता ५७ ३०) विमुन्ना, वनकालिका, विकटा, गौरी, पाटीग्था । साधारणतः जो तब प्रलेप वज के समान कठिन (रिका) होता है वा उसकी तरह दृढसंलग्न रहता है उसीको वज्ञ - वज्रवाहनिका (गं० स्त्री०) चक्रेश्वरी विद्या । लेप कह सकते हैं। जेश्वरी चिया देग्यो। वज्रलेपघटिन (सं० वि०) वज लेप द्वारा सम्बन्ध । वाहिका ( नं० बी०) बबाइनित देखो । वज लोहक ( म० क्ली० ) १ कान्तलौह । २ चुम्बक । वनविद्राविणो (सं० स्त्री०) दौर देवीभेद । बज उटमुण्डर ( स ० क्ली० ) औपधविशेष । प्रस्तुत | बविम्भ ( स० पु० ) गरुड़के एक पुत्र का नाम । प्रणाली-गायके मृतमै सोधे हुए कपाम मण्डरचूर्णको वज्रविहत (सं० ति० ) बज पान द्वारा भारत । दूसरे गायके मृतमें पाक करते हैं, पाक शेष डोनेके समय | वज्रवीजक (सं० पु०) वन्धुक्नामक लाभेद । निम्नलिग्निन थ्योंका चूर्ण डाल कर अच्छी तरह घोटने | वज्रवीर (मं० पु० ) महाकाल रुटका नाम । हैं। छे ४ माशेको एक एक गोली बनाते हैं। इनका | वज्रवृक्ष (सं० पु० ) बनिनारदो वृक्षः। सेहुण्ड वन, अनुयान तक है। प्रक्षेप द्रव्य ये सब हैं-पोपलका मूल, थूहर । चई चितामूल, मोठ, मरिच, देवदारु, विफला, विडङ्ग, वज्रवेग (सं० पु० ) १ पक गक्षसका नाम । • विद्या. मोथा प्रत्येकका चूर्ण २ तोला। इस मण्डरका सेवन धरका नाम । करनेसे पाण्डु अर्श, ग्रहणी, उरुम्तम्भ, कृमि, प्लीहा आदि बज्रव्यूह ( स० पु० ) एक प्रकारकी सेनाकी रचना जो रोग नष्ट होते है। (भैपन्यरत्ना० पायदुरोगाधि०) दुधारे बड़ गके आकारमे स्थित की जाती थी। वज्रवटी ( स० स्त्री०) औषध विशेष। प्रस्तुन प्रणाली- शल्य (सं० पु०) वज्रमिव मठिन शल्य गावलोम पारा, चिता, मरिच, प्रत्येक एक भाग, गन्धक २ भाग शलाका यम्य । शल्यक्र, साही नामक जन्तु ।