पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५३७

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वनादित्य-वज्रेश्वरी विद्या मन्तगुरु है । एक एक विहार एक एक वज्राचार्य के प्रधान , वज्रान्यास (स० पु० ) गुणकभेद ( Crossnuultipli- है। नेपालमें पहुत-से विहार हे, अतएव बहुत से बत्रा- cation )। चार्य भी देखे जाते हैं। नेपाल क्या वड़िा, क्या साधा- वज्राभ्र (स० पु०) एक प्रकारका अवरक जो काले रंगका रण बौद्ध गृहस्थ सभी अवनत मस्तकसे वज्राचार्यके | होता है। आदेश और उपदेशका पालन करते हैं । नेपाल देखो। । बजाम्बुजा ( स० स्त्री०) तन्तोक्त देवीमेद । नेपालके साधारण मुण्डितकेश बौद्धगण वज्र धारण बज्रायुध (सं० त्रि०) चन आयुधो यस्य । १ इन्द्र । २ एक नहीं कर सकते। जो यह वज्रधारणके अधिकारी है, वे प्राचीन कवि । ही बज्राचार्य कहलाते हैं। नेवारियों के निकट वजावायं वज्रावर्त (स० पु०) एक मेधका नाम । 'गुमाजु' वा 'गुमाल' नामसे भी प्रसिद्ध हैं । बज्राचार्यका बज्रागनि (स० पु०) बत्र । अनुप्ठेय वा प्रवर्तित मत ही वज्रयान कहलाता है। यज्रासन (स ० श्लो०) १ हठयोगके चौरासी आसनों से भूटान और नेपालके दौद्ध अभी बयान मनावलम्बी पक। इसमें गुदा और लिङ्गके मध्यके स्थानको वाएं घोर तान्त्रिक है। अभी वज्रयान निम्नोक्तरूपमे विभक्त पैरकी एडीसे दबा कर उसके ऊपर दाहिना पैर रख कर पालथी लगा कर बैठते हैं। २ वह शिला जिस पर बैठ वज्रयान कर बुद्धदेवने बुद्धत्व लाभ लिया था। यह गयाजोमें वोधिढ़ मके नीचे थी। निम्नतन्त्र उत्तरतन्त्र वत्रास्पिटङ्खला (स० स्त्री०) कोकिलाक्ष दृक्ष । वज्राहत (स० त्रि०) वज्राघात द्वारा मरा हुआ। क्रियातन्त्र चायनन्त योगतन्त्र अनुत्तरतन्त्र वाहिका (स० स्त्री०) कपिकच्छु. केवांच । वज्राचार्य पञ्चमकारके कट्टर भक्त है। चत्राव (स० लो०) तगरपादुक । वनादित्य-काश्मोरके एक राजाका नाम { उनके पिताका वनिजित् (सं० पु०) १ इंद्रविजयी। २ गरुड़। नाम ललितादित्य था। ये कुवलयादित्यके छोटे भाई | यत्रिणी (सं० स्रो०) वज्रवारी। थे। भाईके मरने पर ये काश्मोरके सिंहासन पर अधि | वन्नियस् (सं० त्रि०) वज्रधारी ! मढ़ हुए । वज्रादित्यके दो नाम थे-वप्पियक और ललि- वत्री (सं० पु०) वज्रोऽस्त्यस्येति वज्र , थत इनि ठनौ । पा तादित्य। वज्रादित्य वडा ही दुराचारी और क्रूर था। ५२।११७ ) इति इनि । १ वज्रधारी इंद्र। २ वुद्ध वा इसने परिदासपुर नामक गांवले अपने पिताका वहुत-सा जैनसाधु । ३ इष्टिकाभेद, एक प्रकारकी ईट । ४ स्नुही, अमूल्य धन हरण किया था। इसके राज्यमे सर्वत म्लेच्छा- थूहर । ५निधारी, नरसेज । चार हो गया था । म्लेच्छांके हाथ इसने अनेक मनुष्योंको वजेश्वर (मं० पु०) नेपालस्य तीर्थभेद । यहां प्राचीन वेचा था। यह पापो राजा सर्वाटा रानियोंके साथ रह हिंदू और वौद्धमिश्रित तानिकाचार विद्यमान है। कर अपना समय बिताता था। इसने ७ वर्ण राज्य किया | वज्रेश्वरी (म स्त्री० ) वाग्देवोमेद । था। अन्तमे क्षयरोगमे इसका देहान्त हुआ। वज्रेश्वरीविद्या-गुप्त विद्याभेद । इसका दूसरा नाम चाभ ( स० पु०) बनस्य होरकस्य आमा इव आमा वज्रवाहनिका विद्या है। नियमपूर्वक वज्र निर्माण यस्य । १ दुग्धपापाण, फुलखडी। (त्रि०) २ हीरकतुल्य करके इस विद्या द्वारा अभिषेक करना चाहिये एवं काञ्चन दीप्तिविशिष्ट, होरेके समान चमक दमकवाला। द्वारा उसमें मन्त्र लिखना चाहिये। पीछे किसी जिते वज्रामिपयन (सं० पु०) प्राचीन कालका एक प्रकारका न्द्रिय व्यक्तिको चाहिये, कि वज्र ग्रहण करके एक लाख अनुष्ठान। इसमें तीन दिन तक जीका सत्तू पी कर जप कर वज्रकुण्डमें घृतादि द्वारा उसका दगांश होम करे रहते थे। इससे वज्र सर्वशत्रु-विजयकारी वन जाता है । इस प्रकार