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घट मोर पीपल की छाया घनी और उएटी होती है।। तल्या फट जानेसे अधरा दात पीडा होनेसे इसा दूध
उनकी झालोमेंसे जो जटाएं निकरती हैं ये नाचे मार उस क्षत स्थान पर दोनो की नडमें लगानेसे यातनामा
जह और तनका काम देने लगती हैं निसले वृक्षाा शीघ्र हो हास हो जाता है। इसकी छालका गूदा
विस्तार बहुत नीघ्रतासे होने लगता है। यही कारण है । पौष्टिक पव मूव रोग विशेष गुणदायक है। वोन
कि दरगदक मिमी पई पृथके नोबे सैक्डोंजारों का गुण शोतर तथा घलकर है। पटवृक्षके कोमल पत्ते
मादमी तक पैठ सकते हैं। इसीरिये पे वृश पुण्यक्षेत्र । उत्तप्त करक फोडे पर उगानेसे पुल्टिमका काम करता
रूपमें गिन जाा । छायाफे लिये हा कितन लोग है। गनोरिया रोग इसकी जडका चूर्ण विशेष उप
महाके किनारे अथा पुष्परिणीके तट पर पचरटीश कारी होता है। यह सालसाका काम करता है।
निमाण करत हैं। पजाद ये वृन्न पथिकों को निशा। इस वृक्षसी नइ शाखामोंका काढा रसोकाश
निरिसे रक्षा करत हैं। इनसे एक मोर जितना लाम नाशक तथा जडके कोमल अप्रभाग यमननिवारक होते
है दूसरी मोर उतनी ही हानि भी है। पक्षीसमा यदि । हैं। शक यटका दूध तथा फल स्वप्नदोष ( Sperma
वयक फलो को पा पर किमी गृहकी छत पर या| torrhnea ) प्रमेह (gonorrhaen) नाशर पय कामो
मन्दिरोंके शिखर पर विष्ठा स्याग परते हैं, तो उन विष्ठा ! हापक माना गया है। पच्ची कली तथा दुग्धधारक
गित योजोस पृश उत्पन्न हो पर कुछ दा दिनों में दीपाल गुणविनिए एव अजीण तथा उदरामय रोगमें विशेष
के अन्दर न घुमा देता है। उस समय दीवार तोड ] हितकर है।
पर उस पृषको ममूर म वि विना निस्गर रहीं। दुर्भिक्ष समयमें इसके लाल रग पके हुए फरको
प्रागा करनेम यह वृक्ष शीघ्र हो बढ कर उस गृहो । सा कर दरिद्र लोग अपने पेटवा नालापात करते हैं।
ध्यस कर देता है। हिन्दू लोग पाप होने के मयसे वट दायो, गाय आदि पानयर मा इसके पत्ते पडे चापसे
मयमा मध्य त्या प्रयको नष्ट करने की इच्छा नहीं करते।। नाते हैं। इसका उपडी विशेष उपकारी नहीं होती।
अत्य त यत्नके साथ जीपिन वृक्ष मनमहित उग्बाह पर मिफ पतली पतला सुगी हालिया जलारा (धन)म
इमरे म्यानमें जमा देन है।
काम आती हैं। Ficus elastics या दूधदार घर नामक
दक्षिण भारतके रत्नगिरि जिले में पयसके ऊपर और पफ प्रणीश पटय लेखा जाता है। उसका दूध
पर निर्दिष्ट है। कारण यह है कि पादुर पक्षो माधा | रबरर समान ही गुणयुन होता है।
ग्णत Cilophy tusm anophyllum राशके फो। | गुण-पाय मधुर गिरि, कफ, पित्तग्यरापहा,
के पीजमस्ति विष्ठा त्याग करते हैं। इन नाद तृष्णा, मे, पण तथा गोप |
दोनोंसे नेल निश्लता है। मनेक यशों पर साह भी पक्षोर्म वट तथा अध्यन्य पदो पक्ष ही हिदू-समाज
उत्पन्न होती देखो गई है। यरवे दूधर्म उमका चौथाइ मैं पूजनीय गिने ज्ञाने हैं। विराग घट घसरी रह
भाग सरसों तेल डाल कर आज देनसे एक प्रकारका म्वरूप मानत हैं।
गोंद तैयार होता है। यह गोद विष्ठीमारणे पपी पर । इन पक्षोक दशन, पश नया सेना परोसे पाप दूर
ढनेक काममें आता है। मासामी रोग इमापक होते पर दुख, मापद तथा ग्याधि नाती रहता है। गत
प्रका कागन तैयार करते हैं। कोई कोहयटनकी एव ये यक्षसपनप अशेर पुष्प स य होता है। यमा
नहाप सोप रम्मी पनाते हैं, शिन्तु उससे कोई विशेष खादि पुर मासन यक्षाका जहमें जर देनेस पापों
काम नहीं चलता।
पाना होता है पव नाना प्रकारको मुख मम्पद प्राप्त
दुग्यरत् यत्पशा सा घेदनानाशक होता होती है।
है। पानसे होनेवाला येदनाफे स्थान पर इम पद कोटी। ३ गोला।४ मावशेष, दहा ।
प्रटप करानमे बहुत फायदा होता है। परिश] ५माम्य समाा दोनका मात्र) (को०) ६ घनमएहर के
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५४०
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