वनमालाधर-बनलक्ष्मी
११, १३ और १६ वर्ण लघु तथा ६, ८, १२, १४ और वनमृग ( स० पु० ) हरिणविशेष ।
१५ लघु होते हैं।
वनमेथिका (स० स्त्री० ) आरण्यमेयिका, बनमेथी।
वनमालाधर (स० त्रि०) १ श्रीकृष्ण | २ छन्दोभेद ।। वनमोचा (स० स्त्रो०) चनोद्भवा मोचा काष्ठकदली,
वनमालिका ( सं० स्त्री०) १ आस्फोटा, चमेली। २ वन, वनकला।
मल्लिका, सेवना। ३ वाराहीकन्द ।
चनयमानी ( स०सी०) स्वनामख्यात छोटा पौधा, वन-
वनमालिदास-बनमाला नामक ग्रन्धके प्रणेता।
अजवायन ।
वनमालिन् ( सं० पु० ) वनमाला अस्त्येति इनि । १ श्री- वनयिन ( स० त्रि०) हारयिता।
कृष्ण । २ नारायण । ( लि०) ३ वनमाला धारण करने- वनर ( स० पु०) वानर-पोदरादित्वात् आकार हम्यः ।
वाला ।
वानर, वन्दर ।
वनमालिनी (स० स्त्री०) १ द्वारकापुरी २ वाराही। | वनरक्षक (सं०नि०) वनकी रखवाली करनेवाला ।
धनमालिभट्ट-गीतगोविन्दके टीकाकार |
वनरम्भा ( स० स्त्री०) काष्ठकदली, वनकेला।
वनमाली (सं० पु०) वनमालिन् देखा।
वनरसी दाक्षिणात्यके महिसुर राज्यके कोलार जिलान्त-
चनमाली-१ अद्वैतसिद्धिखण्डनके प्रणेता। २ चण्ड र्गत एक गण्डग्राम । यह अक्षा० १३१४३०“उ० तथा
भारत और मारुतखण्डनके रचयिता। ३ द्रव्यशोधन- देशा० ७८ ११३१“पू० तक विस्तृत है । यहा हर साल
विधानके प्रणेता। ४ प्रायश्चित्तसारकीमुदीके रचयिता। वैशाख महीनेमें इरोलप्पदेवके उत्सव, एक मेला
५ भक्तिरनाकरके प्रणेता । ६ भगवद्गीताके एक लगता है । इस मेले में पक लावके करीव गाय आदि पशु
टीकाकार । ७ मुक्तावलो नामक वेदान्नग्रन्धके रचयिता। विकने हैं।
८ वेदान्तदीप और स्फुटचन्द्राकी नामक ज्योतिःशास्त्रके | वनराज (सं० पु. ) वटपक्ष, वरगद ।
प्रणेता । ६ एक प्राचीन कवि।
वनराज (सं० पु० ) वनस्य वने वा राजा, इति वनराजन्-
वनमाली मिश्र-१ वैयाकरणभूपण-मतोन्मजिनी और टच (राजाहःसखिम्पष्टच । पा ५।४।६१) १ सिह । २ वनका
सिद्धान्ततत्त्व विवेक नामक ग्रन्धके रचयिता। ये कोण्ड- अधिपति, वनका मालिक । ३ अशमन्तक वृक्ष ।
मट्टके छात्र थे । २ सारमञ्जरी नामक ज्योतिर्गन्धके वनराजि (सं० स्त्री०) १ वनको श्रेणो, वन समूह । २ वनके
प्रणेता। ३ ब्रह्मानन्दनीय सण्डन और वनमालिमिश्रीय बीच गई हुई पगडंडो। ३ वसुदेवकी एक दासीका नाम ।
नामक वेदान्तके रचयिता।
वनराजी (० स्त्रो०) वनराजि देखो।
वनमालीशा (सं० स्त्री० ) श्रीराधा।
वनराट (स० पु०) वट वृक्ष, वरगद ।
वनधुच ( स० पु०) वन जलं मुञ्चतीति मुच् कि । वनराष्ट्र (स० पु०) जनपदभेद और जाति विशेष ।
१ मेघ, वादल । (लि०)२ जलवर्पणकारिमात्र ।
(मार्कण्डेयपु० ५८४६)
वनमुद्ग (सपु०) वनोद्भवो मुद्गः। १ मकुष्टक, वनमूग । | वनराष्ट्रक (सं० पु०) वनराष्ट्र देखो।
पर्याय-बरक, निगूरक, कुलीनक, खण्डी । २ मुद्गपणी, वनरुह (सं० क्ली० ) पद्म, कमल ।
मुगानी।
वनर्ग, (सं० त्रि०) वनगामी।
बनमूत (सं० पु०) वनजलं मृतं चद्ध येन, वनं मुञ्च | बनर्ज (सं० पु०) Zङ्गीवृक्ष ।
तीति वा । मेघ, बादल।
चनर्द्धि (सं० स्त्री०) वनको समृद्धि, वनसम्पद् ।
वनमूईजा (सं० बी० ) वनस्य मूर्ध्नि जायते इति जन- वनपद् (सं० लि०) १ वेदोक्त वनविहरणकारी। (पु०)२
इ। १ वनवीजपूरक, जङ्गली विजौरा नीबू । २ कर्कट- वनवाहो वायु।
शृङ्गी, काकडासिंगी।
वनलक्ष्मी (सं० स्त्रो०) वनस्य लक्ष्मी शोभा। १ कदली,
घनमूलफल (संक्ली० ) वनजात कन्द और फल। । वेला। २ वनश्री, वनकी शोभा।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५५९
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