वनवृन्ताकी--बनस्पतिशास्त्र
__एम धायका प्रकृत नाम था पन्ना। यह उस बारी- वनसंप्रवेश (२० पु०) लग्दीको देवमूर्ति यनाने के उद्देश
को दृढते राजमहलसे बाहर निकली और पूर्वनिर्दिष्ट सं लकदीमे लिये बन जाना।
स्थान पर उसने राजकुमार तथा वारीको पाया। धायने । वनम् (मं०बी० ) बननीय तेन और धन ।
कमलभीर नामफ म्यानमे पहुँन राजकुमारको आमा-बनरा ( स० पु०)नुच्छा । २ भानुरक्ति। वन ।
साह नामक एक जैनीके घर रय दिया। गजकुमार वनमहट ( मं० पु०) बने लहटो बाहुल्य याय । ममूर।
वही फलने फलने लगे। मामन्त मरदारोने राजकुमार बनगद (मं० वि०) १ बनवानी। (पु.) यहि ,
को अपना राजा मान लिया। जब वनवीरको सभी
रनवर लगी, तब वह बहुत चिन्तित हुया लेकिन अब यह । वनसमूह ( म० पु० ) बनाना ममूरः । १ अरण्यमति,
चिन्तित हो कर कर ही क्या सकता था। मग्दागने
र वनांश। पाय-यगा, जान्या । २ जलसमृदा जलकी
कौशलसे राजकुमार उदयसिहका अभिषेक किया
बनसगेजिनी (मत्रो०) बनम्य मरोजिनी पग्मिनीव
और वनबीर माग कर दक्षिण की ओर चला गया । नाग ।
शामाकरत्वात । वनकामी, जगाठी कगाम ।
पुरके मोंसले उम्मीको सन्तान हैं।
वनमाहया मक्षी वन्य उपोटकोन्ता ।
वनवृन्ताकी (स० स्त्रो०) बनरय गृन्ताको वार्ताका।
वनातम ( म० पु० ) गदक पक पुत्र का नाम ।
वृइती, वनभंटा।
'बनम्थ (नपु० ) बने निष्टनीति स्था-क। १ मृग ।
वनबीहि (म० पु०) वनग्य ब्रीहिः। देवधान्य, धार।।
• वानप्रस्थ। गृहस्यों के छिगुण, ब्रह्मचारियों के त्रिगुण
वननिम्विका (सन्त्री०) अरण्यगिम्बी, वनलीमी।
__। और वानप्रस्थ यतिओंके चतुगुण शौच होता है । (त्रि०)
वनशकरी (स ० स्त्री०) वनम्घ करीब रोमगत्वान मास : ,
स वनवासी।
लत्वाच। १ फपिकच्छु, केवाच। २मारण्यवराही, , वनस्थली (सखी ! वनभूमि, अरण्यदेश, जदली
जगली मादा सूचर।
बनशरण (म० पु०) नजातः श्रारणः । वनोद्भवील, वन । बनम्या ( स ० खो०) बने तिष्ठतीति म्या-क-टाप् । श्व
ओल। पर्याय-सितारण, वन्य, वनमन्द, अरण्य- त्यन, पोपटका पेड।
शरण, वनज, श्वतशरण, वनकण्टुल । इसका गुण- बनन्यान ( म० क्ली० ) जनपदभेद ।
रुच्य, कटु, उष्ण, कृमि, गुन्म और मालादि दोपन्न तथा वनम्नेटफा ( R ० स्त्रो०) हन्यदनी, डोटो कटाई ।
सर्व अरुचिकारक।
वनम्पति ( स ० पु० ) वनरय पतिः। पारम्बगदित्वात्
वनदार (स० पु०) वनस्य शृद्धार इय, एटकावृतत्वान्। लुट । १ पुष्पहीन फलवान वृक्ष, वह पेड जिसमें फुल न
गोक्षुर, गोबरू । पर्याय-अरक, त्रिकाएट, स्वादुक एटक, हो केवल फल ही हो। नन-गू ठर, वड, पीपन आदि
गोन एटक, गोक्ष रक, बनगाट, पलड़या, स्वदंष्टा और बट वर्ग के वृक्ष । २वृक्षमात्र, पेड। ३ स्यालीपल, पाडरका
उनुगन्धिमा । (भावप्र० १म भाग)
पेड़। ४ वटवृक्ष, बरगद । ५ धृतराष्ट्र के पक पुनका नाम ।
धनशोजन (स० को०) वनं जल शोमयतीति शुभ-णिन् ।
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(भाग०11००२१)६धृतप्रष्टके पक पुतानाम ।
ल्यु। १ पद्म, कमल । (त्रि०) २ वनकी शोभा बढ़ानेवाला।
वनम्पतिकाय ( स० पु०) जागनिक वृक्षोंका समूह ।
वनश्चन् (स ० पु०) वन वा श्वा कुक्कुरः । १ गन्धमार्जार, :
वनस्पतिशास (म" पु०) बह शास्त्र जिसके द्वारा यह
जाना जाता हो, जिपौधों और चलों आदिके क्या क्या
नधबिठाय। २ चञ्चक, गाल| ३ ध्यान, वाघ।
रूप और कौन कौन-सी जानिया होती हैं, उनके भिन्न
वनपण्ड (स० पु०) कमलशा वन या अडल ।
भिन्न अगोंकी बनावट कैमी होती है और कलम आदिके
चनपढ़ (सं० त्रि. १ वनवासी, बनमें रहनेवाला । (पु०) द्वारा किस प्रकारके नये पौधे या वृक्ष उत्पन्न होते हैं,
२ रुद्र। (पार० गृ०३/१५ ) वनसद देखो।
वनस्पतिविज्ञान।
। जमीन।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५६१
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