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वनाहिर-बनाद
वनाहिर (सं० पु०) वनस्य आहिरः । शूकर, सूअर। वनीवन (सं० त्रि०) वननविशिष्ट, इच्छा करनेवाला ।
वनि ( स० पु० ) यन (खनिकपिधजियसिवसिसनिध्वनि ग्रन्थि बनावादन (म.की.) इतस्ततः सञ्चालन या ग्धान
वनिभ्यश्च । उण १११३६ ) इति । अग्नि, आग। परिवत्तंन, पर स्थानमे दूसरे स्थान पर लाना ।
पनिका (सं० स्त्री०) कुसवन ।
वनु (सं० पु०) हिमा।
बनिकायाम (म० पु०) १ उपचन मध्यस्थ कुञ्ज । वनुप (म त्रि०) १ हिंसक मारनेवाला १२ समक्ता।
२ प्राचीन नामविशेष ।
बने-किंशुक ( स० पु०) बने किंशुक इव । अयाचित
चनित (स० त्रि०) वन-क्त। १ याचित, मांगा हुआ। प्राम, वह वस्तु जा मे ही बिना मांगे मिले जैसे वनम
२ मेवित, सेवा क्यिा हुया ।
किंशुक बिना मागे या प्रयास किये मिलता है।
वनिता (१० स्त्री० ) वन-क्त-टाप् । १ प्रिया, अनुरका स्त्री, | चने-शद्र (सं० स्त्रो०) बना दा आलुक समासः । कर।
प्रियतमा । २ स्त्री, औरत । ३ छः वर्णों की एक वृत्ति । इन्ने
(रत्नमाला)
'तिलका' और 'डिल्ला' भी पहने हैं। इसमें दो सगण बने चर ( मं० वि० ) बने चग्नीनि चर शनि ट, तत्पुरुष
होते हैं।
कृतीत्य लुक । अरण्यचार', वनमे फिरनेवाला मनुष्य,
जंगली आदमी।
वनिताद्विप् (सं० पु० ) स्त्री पी, वह जो स्त्रीसे इर्ष्या
करता हो।
बनेजा (सं० पु०) बने इज्यः । १ वदरसाल, आम ।
निताभोजिन् ( स० पु०) १ सपंवत् करा स्त्री।
२ पटक, पापड़ा।
२नागकन्या।
बनेवल्पक (स० पु०) वह वस्तु जो वैसे ही दिना माने
वनितामुख ( सं० पु०) १ पुराणानुसार मनुष्योंकी एक
मिलता है।
जाति । (मार्क०पु० ५८३० ) (को०) २ स्त्री मुखमण्डल। बनेयु (सं० पु०) गैद्राश्च के एक पुत्रका नाम ।
वनिताविलास ( स० पु०) १ स्त्रियों की भोग करनेकी
(भागवत ६।२०१५)
इच्छा । २स्त्री-सम्भोग करनेकी इच्छा।
वनेराज (स० स्त्री०) वने राजते राज छिप, यलुक समामः।
वनितास ( स० क्ली० ) प्राचीन वांगभेद ।
दावानलकी तरह जगलमें विराजमान । "तेजिष्टा यस्या.
वनित ( मतियाचा मांगनेवाला अधिकारी रतिर्वनराट" (ऋक् ६।१२।३ ) वनेगट दायरूपेणारण्ये
राजमाणा' (सायण)
बनिन् (सं० पु० ) वन आश्रयत्वेनास्त्यस्येति वन-इनि ।
वानप्रस्थ
वनेरुहा (सं० स्त्री०) विपणों कन्द, तिलकन्द ।
नेन ( स की वनजात पलाश आदि। (
लिवनेशय (सं० त्रि०) वनवासी।
२ वारिदानकारी, जल देनेवाला। ३ वनवासी, जङ्गल में
बनेसम ( स० पु०) बने मर्ज इव । अमन वृक्ष ।
रहनेवाला । ४ वनोद्भव, वनका। ५ इच्छाशील, इच्छा
वनैकदेश (सं० पु०) वनका पक भाग।
करनेवाला । ६ पूजा या स्तुति करनेवाला ।
वनोत्सर्ग (स.पु.) १ देवमन्दिर, वापी, कृप, उपवन
घनिष्ट (म०नि०) दातृतम, वडा भारी दाता ।
आदिका उत्सर्ग जो शाखविधिसे किया जाता है मन्दिर,
वनिष्ठु ( स० पु०) यज्ञ पशुकी आंत, स्थावरान्त्र ।
कूओं आदि वनवा कर सर्वसाधारणके लिये दान करना।
वनिष्णु (२० पु० ) अपान, गुदा।
२ ऐसे दान या उत्मर्गको विधि ।
चनी (सं० स्त्रो० ) वनस्थली, छोटा वन ।
वनोत्सव (सं० पु०) आम्रवृक्ष, आमका पेड ।
वनाक (सं०वि०) यावक मांगनेवाला।
वनोत्साह (स० पु०) गण्डार, गैडा।
वायक ( स० त्रि०) वनिं याचनमिच्छतीति क्यच ततो
वनोद-१ वम्बई प्रेसिडेन्सीके झालावार प्रान्तस्थ एक
पबुल । याचक, मांगनेवाला।
छोटा सामन्तराज्य । भू परिमाण ५८ वर्गमील है। यहांक
चनीयस् (सं०नि०) वन-ईयसुन् । अतिशय याचक, बहुत । अधिवासी लोग अगरेज राजको सालाना १.५०) रु० कर
मांगनेवाला।
देते हैं । २ उक्त राज्यके अन्तर्गत एक गण्डग्राम ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५६३
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