पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५७७

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पक्ष वयनविद्या वयनयन्त्र। श्रेणीके सम्भ्रान्त लोग कपास तथा पशमीने कपडे पह- नते थे एवं टन्द्रि लोग एकमात्र पशमीने कपड़ोंसे अपने __ वस्त्र बुनना सीखनमें गिनार्थीको निपुणता, धैर्य- अङ्ग ढकते थे। पशमीने वस्त्रको वहांके पुरोहित सम्प्रदाय शीलता, हस्त-संचाललाटिको पटुना सीखना अत्यन्त भद्दा कह कर लिनेन वस्त्रका ही अधिक पक्षपात आवश्यक है। सहन्नों सूक्ष्म सूने ले कर उनके प्रत्येक करते थे। सूतेको नियमानुसार नियमित स्थान पर रखना चाहिये । हिव जातिके धर्मयाजक तथा पदस्थ सम्भ्रान्त लोग | उसमे किसी तरहकी जल्दबाजी करनेसे या असहिष्णु उत्तम लिनेन कपडे ही व्यवहारमें लाते थे। बाइबिल हो उठनेमे और मो विलम्ब होता है। अन्य अङ्गरेजी अनुवाद उनसे जो रेशमी वस्त्र व्यव हम लोगोंक देशमें हिन्दू ताती एवं मुसलमान हार करनेको बाने लिखी हैं, वे विल्कुल ही प्रामादिक | जुलाहे है, वे अभी भी ऐसे वारीक सूतोरी चादर तैयार हैं, क्योंकि, प्राचीन वित्र वा मासीरीय लोगोंके अन्दर कर सकते हैं, जो चादर आध इंच चौडे एक फूट रेशमी वस्त्र व्यवहारका कोई पक्का प्रमाण पाया नहीं लम्बे चोंगेके अन्दर आसानीले रखे जा सकते हैं। जाता। इलैडके, British Museum नामक जादृघर मैंचेटरके वस्त्रययन-शिल्पके निर्माण होनेके कारण में प्राचीन सूक्ष्म लिनेन वनके सूते थे । १०० लच्छे धीरे धीरे हमारे देशकी शिल्पनिपुणता जाती रही। ( Hank ) एवं १३च स्थानके मध्य ताने में १४० खाई मेंचेस्टरके शुभागमनसे ही हमारे वयशिल्पको इति- तथा घेरे ( moof ) मे ६४ पाई सूता विद्यमान है। श्री हुई पवं अन्नाभावसे जुलाहो तथा तातियोंकी शक्ति थेविस नगर तथा दूसरे दूसरे स्थानों में जो प्राचीन क्षीण हो गई । स्थूल बुद्धि तांताने लाभकी आमासे मित्रोय तातोंके नमूने रखे हुए हैं, उनकी वयन-प्रणाली सूक्ष्म सूतेका आश्रय लिया एव सूक्ष्म-बुद्धि तांतियों ने अविकल भारतीय तांतोंके समान ही हैं, अगर प्रभेद है, मोटे सूतका कार्य आरम्भ किया। आश्चर्यका विषय है, भो तो बहुत घोड़ा । पाश्चात्य पण्डितोंका विश्वास है. कि कि इन दोनों जातियों का व्यवसाय एक होने पर भी स्मरणातीत समयसे मारनीय आर्य लोग जिस रीतिसे कपडा बुनने सम्बन्धम सभी विषयोंमें ही जुलाहों तथा वस्त्र बयन करने आ रहे हैं, वही चिरन्तन प्रथा प्राचीन हिन्दू तातियों ने पररपर विभिन्न पगेका अवलम्बन फालमें पारम हो कर यूगेपमें प्रविष्ट हुई था। भार्टि किया है। नीचे दोनों पक्षके वयनोपयोगी यन्त्रोंका कानके मार्जिल प्रन्यमे मण्टफामोन (Montlaucon) परिचय दिया जाना है। फर्तृक जो मध्ययुगी तांतीके चित्र अंकित है, लोगोंका १ तात (लूम )-तांत भारतवर्ष में स्तिने दिनोंसे अनुमान है, कि वे खष्टीय अर्थ शताब्दीके ही तातोंके | प्रचलित है, इसका पता नहीं चलता। किन्तु प्राचीन चित्र । वे भारतीय तांतोंसे बहुत मिलने जुलते हैं, तब । शास्त्रीय ग्रन्थों में उसका उल्लेख मिलता है। रोतांत हा एक दो स्थानमें सामान्य परिवर्तन भी दृष्टिगोचर बहुत दिनों से इस देश में चला आ रहा है, वह हाथका होता है । चीन जातियोंकि रेशमी वस्त्र वुननेके तात तांत' वा 'चंगला तात' कहलाता है । वह ताल काष्ठ- बिल्कुल स्वतन्त्र एवं स्वरूपोलकल्पित है, उनमें यन्त्र से तैयार किया जाता है, यहां तक, कि एक ही तांत तीन परिपाटी कही अधिक है। सम्मवतः इन बातोंका अनु चार पीढ़ी तक कामयावी रहता है । इसकी ढरकीको करण करके हो वर्तमान हैण्डलूम तैयार किये गये है। एक हाथसे चला कर दूसरे हाथसे पकड़ना होता है। अरिष्टटलमें रेशमका उल्लेग्न देख कर मालूम पड़ता है, उससे अधिक चौड़ा कपड़ा बुनने में सुविधा नही होती; कि ग्रीद, तथा रामर लोगांकी सुग्न समृद्धिके समय उन मिन्तु इस तांतके द्वारा इच्छानुसार मोटे एवं बारीक को बिलाम वामना पूरी करने के लिये चीन रेशम तथा सब तरहके कपड़े चुने जा सकते हैं। इसमें अधिक तांत यूरोप मेजे गये थे। अरिएटलके पहले यूरोपमै सूने नहीं टूटने । जिस तरह इसमे बारीक कपडे रेशमका ऐतिहासिक उल्लेन नहीं देखा जाता। तैयार किये जा सकते हैं, उस तरह हैएडमूलमें तैयार