पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५७९

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५१० वयन विधा है, किन्तु इसलिये उसे अधिक दिनों तक पानीमें भीगते | के सूना जोडनेकी बातें लिखी गई है। हिन्दू तातो रहने देना उचित नहीं। रंगीन सूतेको ज्यादे भिगोनेकी वांये हाथकी वृद्धांगुली नथा तर्जनीके मध्य दोनों सूतों- जरूरत नहीं। के अग्रभाग ले कर नीचेकी ओर अमेठ कर ऊपरकी ओर ___ सूता लपेटना ( u inding the reels )-चौथे दिन | जोडते हैं। बारोक सूता जोडनेमें तांतियोंकी सूता जोड़ने- जलसे स्ता निकाल कर उसके गिरे पडे लच्छोंको ठीक ) की अच्छी रोनि होती है एवं मोटा सूना जोडनेमें कर लेना चाहिये। इसके बाद उसे एक चरखी पहना जुलाहों को। “फर उस चरखीको डेढ दो हाथकी दूरी पर रखना | सता पर सरेस चढ़ाना ( Sizing)-मोटे सूने में चाहिये ।चरखीके सूनेको दोनों हाथोंसे चीर कर लच्छे भातका मांड अथवा चूड़े तथा लावेका मिला हुआ को विलग विलग कर देना चाहिये । उन सूनेका मांड ण्वं वारीक स ने मे लावेका मोड व्यवहारमें लाते अब एक्से ज्यादा छोर निकल पड़े तब उनमेंसे सिर्फ हैं। कठौतमें मांड रख कर वाये हाथसे सू तमे लच्छे एफ एकको पकड कर नारेको एक पाटोसे पर्व दूसरे पकड कर दाहिने हाथसे उसे विस्वगते हुए मांडमें इस । दूसरे छोरोंको चर्खेकी एक ओर बाँध देना चाहिये, नही तरह डुबोते हैं, कि न ता मांडसे अच्छी तरह तरबतर तो चरखीदे घूमनेके समय सूतेके चार बार टूटनेको हो जाय और विशृङल मी न होने पाये। इसके बाद सम्भावना रहती है। इसके बाद 'घुरनी काटके' मध्य | छोटी चरबीके सिरे पर सूनेके लच्छे लगा कर टेबडना स्थित दवात ऐसे सुराखमे नारेने दण्डका अगला के द्वारा पूर्ववत् नराई करनी चाहिये । देवल भातके हिस्सा रस कर एवं उसके दूसरे छोरको दाहिने हाथसे मांडसे सूत पर सरेस दिया जाता था, इसलिये आज पकड कर वृद्धागुली द्वारा बाईसे दाहिनी ओर तथा भी कितने कारीगर इस कार्यको 'भातान' कहते हैं। अन्यान्य उंगलियों द्वारा दाहिनीसे वाई ओर अमेठनेसे तंतुको सुखानो ( Drying )-नराई हो जानेके नारा खूब जोरों से घूमने लगता है। उस समय बाये | वाद उन्हें धूपमें सुखाना पडता है । सूख जानेके हाथकी वृगुिली तथा तर्जनी द्वारा सूतेको आसानोसे | वाद पहलेको तरह सूतेको बोल कर एक वांस पर सजा पकडे रहना चाहिये। इससे सतेमें किसी तरह की कर रख देना चाहिये । इन सब कार्यों में जितनी खला गडवडी नही मचती। रखी जायगी उतनी ही जटिलता कम होगी। यदि आकाश पौवन्द लगाना ( Piecing )-बीच बीचमे सूता टूट वादलोंसे आच्छन्न रहे अर्थात् धूप, सूता सुखानेकी जानेसे उन्हें नीचे की ओर वा ऊपरकी ओर पारीसे बांध सुविधा न रहे, तब अग्निके तापमें सूता सुखाया जा देनेके अलावे निम्नलिखित रीतिसे जोड़ लेना चाहिए । सकता है । वदलीके दिनोंमे कारीगर लोग प्रायः सूरे में दो सूतोंके अग्रभागको बांये हाथकी वृद्धांगली तथा सरेस (मांडो) नहीं देते। नजनी द्वारा पकड़ कर दाहिने हाथको उन्हीं अंगुलियों छोछी (नरी) भरना ( Winding the bobbins)- द्वारा दवा कर वांये हायकी अंगुलियोंसे अमेठना चाहिए, सूतेके सूरव जाने पर उसके लच्छेको वाये हाथके अंगूठे- फिर उसे नीचेकी ओर घुमा कर दाहिने हाथके सूते में | से दवा कर एवं दाहिने हाथसे धीरे धीरे अमेठ कर मिला कर एक बार अमेठ देना उचित है। इस तरह जोड़ने अच्छी तरह उलटा देवें, इससे मांडसे चिपके हुए सूत से सतेमे प्रन्थि नही पडती, अथच वे दोनों इस तरहसे परस्पर रिखर जायेंगे। इसके बाद उन लच्छोंको जुट जाते हैं, कि दूसरी जगह भले ही टूट जाय किन्तु चरखीमें पहना देवे । फिर सूतके लच्छेमें जहा छोर वह जोड नहीं विस्वर सकता। सूतेको खूब अच्छी तरह वधा रहता है, उसे खोल कर नाटेको नरीमें (छोछी ) में नही जोड़नेसे कपडा बुननेके समय बहुत टूटते हैं। चिपका देवें एव दाहिने हाथसे चर्खा चला और वाये सूता जोडनेमें भी जुलाहों एवं तांतियोंमें भेद है। उन. हाथको दोनों अंगुलियोंसे सूत पकडे हुप नरी भरे । की प्रणाली परस्पर विपरीत होती है । ऊपर जुलाहे- नरोके मध्य भागमें मोटा एवं दोनों किनारे पतला करके