पुल।
५.३
वरणक-बरद
यथाविधि वरण कर देनेके याद उसे का अधिकार शिरत। ५ घासका गट्ठर 1 फीलखाने भादिमेकी
होना है, इसी कारण व्रतादिमें पुरोहित मादियो घरण | वह दीवार जादो लसाके हाथियों के बीच लडाईचाने-
करना पड़ता है।
ले लिपे बनाई जाती है।
प्रतिनिधि वा उपयुक्त व्यक्तिनियोगका नाम ही वरण | वरण्डक (सं० पु०) वरण्ड स्वाथै संझायां वा कन् ।
है। जैसे राजपद पर वरण । इसी कारण माङ्गलिक | १ मातङ्गवेदि, हाथोकी पीठ पर कमा जानेवाला हीदा।
कार्यादिमें नियुक्त व्यक्निके सम्मानार्थ कुछ माङ्गलिक २ युद्धमान दो गजोंको मध्यवर्तिनी भित्ति, दो लडाके
द्रव्य द्वारा उसफो सम्वर्द्धना की जाती है।
हाथियोंके वीचको दीवार । ३ यौवनकण्टक, मुंहासो ।
५ वेष्टन ढकने या लपेटनेकी वस्तु । ६ पूजा, अर्चना, / (नि.) ४ वर्तेल, गोल । ५ विशाल, वड़ा । ६ भीत,
सरकार । ७ प्राकार, किसी स्थानके चारों ओर घेरी डरा हुआ। ७ कृपण, कजस।
हुई दीवार। ८ उग्द्र, ऊंट । ६ वरुणवृक्ष । १० सेतु, वरण्डा (स० स्त्री० ) वरण्ड टाप। १ सारिका. मेना।
२ वर्ति, पत्ती। ३ शास्त्रभेद, फटारी।
वरणक ( स० त्रिक) १ वरणकारी, वरण करनेवाला। वरण्डालु ( स० पु० ) वरण्ड एव आलुरल। एरण्डवृक्ष,
(पु०)२ आच्छादन, आवरण ।
रेलोका पेस।
वरणमाला (सं० स्त्री०) वरणाय वा माला। वरणन्नज, वरतनु (स० त्रि० १ सुन्दरी स्त्री। २ छन्दोमेद ।
वह पुष्पमाला जो वरणकं समय पहनाई जाती है। इसके प्रत्येक चरण में १२ अक्षर रहते हैं जिनमेंसे १, २,
वरणसी ( स० स्त्री० ) वाराणमी। (शब्दरत्ना०) ३, ४, ६, ७, ८, ११वां अक्षर लघु और वाकी, समी गुरु
वरणत्रज् ( मं० स्त्री०) वरणमाला। (राजतर० १०६१) होते हैं।
चरणा-१ एक छोटी नदी । यह पक्षाय देशसे निकल कर वरतन्तु-एक प्राचीन ऋषिका नाम ।
सिन्धुनदमें दक्षिण ओरसे अटकको विपरीत दिशासे आ घरतिक्त (सं० पु०) व श्रेष्ठस्तिकस्तिकरसोयस्य ।
कर मिलती है। प्राचीन ग्रीक भागलिफोंने इसका १ कुटज, कोरया ।निम्बवृक्ष, नीमका पेड़। ३ पर्पट,
Aornos नामसे उल्लेख किया है। २ एक छोटी नदी। | पापडा । ४ रोहितक, रोहनका पेड।
यह कामोके उत्तरमें वहती है और वाराणसीक्षेत्रको उत्त-
वरतिक्तिका (सं० स्त्री०) रतिक स्वार्थे फन् टाप मत
रोय सीमा है। इस नदी में स्नान करनेसे ब्रह्म हत्यादि
स्त्वं । पाठा।
पाप दूर होते हैं। विष्णुके दाहिने पादसे असि नामक वरतीया (सं० स्त्री० ) नदीमेद ।
नदी निक्लो है, इसी कारण दोनों नदियाँ पुण्यवर्धिनी
और पापनाशिनी मानी गई है। इन्हीं दोनों नदियोंका
वरत्करी (म० स्त्री० ) रेणुका नामक गन्धद्ष्य ।
मध्यवती स्थान वाराणसी कहलाता है। इसके समान
बरना (सं० स्त्री०) वियतेऽनेनेति य (वृश्चित् । उण ३१०७)
पुण्य स्थान वर्ग, मर्त्य और रसातलमें दूसरा नहीं है।
इति अवन टाप । १ हस्तिकक्ष-रज्जु, हाथी खोंचनेका
(यामनपु: ६०) ।
रस्सा। पर्याय-चूपा, कक्ष्या, फक्षा । २ चर्मरज्जु,
घरणा (सं० सी०) तुवरी, अरहर ।
चमडे का तसमा । ३ वरेत, बरेता।
वरणीय (सं०नि० ) -अनीयर् । १ वरणके योग्य, जिसे | वरत्वच (सं० पु०) वरा हितकरी त्वचा यस्य.। निम्य-
वरण किया जाय। २प्रार्थनीय. जिसे प्रार्थना की जाय।। वृक्ष, नीमका पेड़।
३ श्रेष्ट, वडा।
उरद (सं०नि० ) वर ददातीति दा (थातोऽनुपसर्गति । पा
घरण्ड (सं० पु०) वृणोतीति दृ ( भयडन कृसुभृ वृशः ।। २।३) इति क ! १भीएदाता, वर देनेवाला । पर्याय-
उरण १।१२८) इति अएडन् । १ अण्डरावेदि; बरामदा । समर्द्धक, वांछितार्धद। २प्रसन्न ।
२ समूह। ३मुहरोगमेद, मुंहासा। ४ वंशीको डोर, वरद-१ विन्ध्यपावरियत शोणनद्तीरवती एक गएड-
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५९१
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