पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५९५

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वरयानिन-वररुचि ६०६ गण अवस्थानुसार परिकार परिच्छन्न वेशभूषा करके भो नाना नगी च यस्यां वरयुतिरियं ।" वरके साथ साथ पैदल चलने हैं। साथमें तरह तरहफे । (चन्दोमचरी) बाजे और रोशनी रहती हैं। धनीकी बारातम आशा रूपयाचनमम्पन्ना स्त्री। मोटा बलम बळ लिये, ढाल तलवार लटकाये, शिर पर बरयोग्य (म ति०) १ वर, आशीर्वाद या उपहार पाने. भिन्न भिन्न रंगको पगडी बांधे, कतार लगाये, बाजेके के लायक ।२ वरणीय, घरण करके योग्य । ताल पर पैर उठाये अनेक मुसजिन अनुचर चलते हैं। वरयोनिक ( म० पु०) फेसर। कागजका हाथी, ज्ञागजका घोडो, फागजकी नाद और वररुचि (स.पु.) वरा रचिर्यस्य । एक प्राचीन चैया- उसके ऊपर वाई-नाच, खेमटा-नाच आदि रंग बिरंग करण और प्रसिद्ध कवि । ना दूसरा नाम पुनर्वसु तमाशे बारातकी शोभा बढाते हैं। भिन्न भिन्न तरहको । है । अष्टाध्यायीनि, एकाक्षरकोप, पानरनिघण्टु, रोशनी लोगो को चकाचौंध कर देती है। इस प्रकारका काक्षरनाममाला, एकाक्षगभिधान, पेन्द्रनिघण्टु, कारक जुलूम देखने के लिये रास्ते के दोनों किनारे लोगों की चक्रकारिका, दशगणकारिका, पत्रकौमुदी, प्रयोगविद्यक, भीड लग जाती है। प्रयोगवियेकम ग्रह, मानप्रकाश, फुल्लमूत्र ( पुष्पसूत्र ), वारात जब कन्याके घरके पास पहुंचती है, तब मन्या योगशनक, राक्षसकाव्य, राजनीति, लितुनिशेधिषि, पक्ष के लोग बडे आदर-सत्कारसे उन्हें दरवाजे पर लाते । लिङ्गत्ति, लिदानुशासन, वररुचिवाक्यकाव्य, वाद. तरङ्गिणो, वार्शिक, शब्दलक्षण, अयोध और समास वडालके वाहाण, कायस्थ, वैश्य और शद्रादि जोधनी , पटल यादि ग्रन्थ इन्दी के बनाये हैं। किन्तु मनमुन है, उनकी दारात इसी प्रकार सजधज कर जाती है।पर इन्दनि उक समी प्रन्यों की रचना को थी या नहीं इसमें जिनको अवस्था कल का बहुतोंका स देव है। क्योंकि, अपने अपने अन्य प्रचारके लिये बहुनौने वररुचिका नाम छाप दिया है । महाकवि कालिदासके नाम पर भी दूमरोंके रचित अनेक ग्रन्थों का भारतकी, केवल भारत ही क्यों कहें-पृथ्वीको प्रचार देखा जाता है। एकमात्र पाण्डित्यपूर्ण प्राशन सम्म असभ्य समृद्ध असमृद्ध सभी जातियोंको वरयात्रा प्रकास तथा वाफ्यपदीप आदि वररुचिकी रचना है, ऐसा' व्यापार इसी प्रकार थोडे वहुत आमोद उत्सव और समा. । बहुतेरोका विश्वास है । भोजप्रबन्धमें इनके रचित अनेक गेह आडम्बरसे परिपूर्ण रहता है। परन्तु जातिविशेष __ वा सम्प्रदाय विशेषको रीति-पद्धतिमें बहुत पृथक्ता देखी श्लोक उजत है। जाती है। विगह देखो। ___ मोमदेव भट्टके कथासरित्सागरमें लिखा है, कि वर वरयात्रिन ( स० वि० ) वरयात्रा-अस्त्यर्थे इनि । वह भीड । रुचिका दूसरा नाम कात्यायन है। वे वैयाकरण पाणिनि- के सहपाठी थे। इसी कारण दो अथवा इनके नामसे __ माड जो दूल्हे के साथ चलती है, दरात । प्रचारित वा इनसे प्रकाशित अष्टाध्यायी पाणिनिसूत्रकी वरयितव्य (सं० त्रि०) वर-णिच्-तथ्य । वरणके योग्य ।। वृत्ति और चार्त्तिकादि नाना व्याकरण ग्रन्थ देख कर दो वरयित (सं० पु०) वर-णिच् तृच् । १ भर्ता, पति । २ वर- पण्डितसमाज इन्हें बाह्यमा यशोद्भव सोमदत्तके पुत कारयिता, वरण करनेवाला। कात्यायन मानते हैं। किन्तु पाणिनिके सूत्र और वरयु ( स० पु० ) महाभारत वर्णित एक व्यक्ति। वार्तिकी आलोचना करनेसे सूत्रकार और वार्तिकारको (मारत उद्योगपर्व) कभी भी पक समयका आदमी नहीं कह सकते। वर वरयुवनि (स० स्त्री०) १ छन्दोभेद । इसके प्रत्येक चरणमे सूत्रके सैकड़ों वर्ष बाद बार्तिक रचा गया है ऐसा प्रतीत १६ अक्षर होते हैं। उनमेंले १, ४, ६, ८ । और . १६ होता है। पाणिनि देखो ! अक्षर गुरु और वाकी वर्ण लघु होते हैं। इसके लक्षण- वार्तिक और प्राकृतप्रकाशकारको भी हम दो व्यति