पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५९८

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वराटक-चरान मराटक (१० पु.स्त्री०) पराट पार्थ कन्। १ कपईक, घरावर विहारप्रदेशके वर्गत एक वडो शैलणी। यह कोही। लोठायतीमें परारकको सख्याके भेदसे इस / गया मिलेके जहाशावाद उपविमागमें अवस्थित है। इस प्रकार नामनिरुक्ति देवनेम भाती है-वोस कौडीका शैलफ ऊपर एक प्राचीन मन्दिर है जिसमें सिद्ध श्वर म काकिणी चार काकिणीका एक पण मोठह पणका नाम शिगलिङ्ग प्रतिष्ठित है। प्रशाद है कि दिनाजपुर पुरम्प और मोलह दम्पका नाम नि है। (मीलारती), क श्रीकृष्णविठे यो असुरराजने यदा यह देवमूर्ति स्थापन प्रायश्चित्ततत्व में लिखा है, कि अस्सा वराटकका एक को था। इसके दक्षिण पर्वतके नाचे सातपरा' नामक पण, मोलह,पणका एक पुराण और सात पुराणका पक, एक पडी गुहा देखो जाती है। उनमेंस चार गुहामें कर्ण रजत होता है। छोपर, सुदामा, लामशपि और विश्वामित्र के नाम देखे भिणमें राटक हुने व्यवस्था है। नीव प्राण | जाते हैं। उसमें जो पाली मक्ष लिमित ग्लिालिपि को ज्ञान और दक्षिणादोन यज्ञ नष्ट हो जाता है इस कारण है, उमस जाना जाता है कि सबस प्राचीन गुहा इमा पकौडी वा एक पण कोडी अथवा एक फल या पर जम्मस पहले ४थो शताम्दोम और सबसे माधुनिक पुष मी ममे कम दक्षिणाम देना चाहिये। २६४ इम उन्कीर्ण हुइपी। इसके पास हो पातालगडा (पु.१२रज, रस्सी। ३ पद्मरोन । और नागार्जुनी नाम लधारा है। उस धाराये तफ्ट पराटारजस् (० पु.) वगट व रनो यत्र । नाग | गोपो, पापीय और वादियो रामकी दूसरी तोन गुहाए केसरका पेड। है। ये तोनों गुहार इ०सन्स पहले ३रो सदोम अशोक घरारविष ( को०) पराटश नामक स्वासारनि.सि के पुत्र दारथ द्वारा प्रतिष्ठित हैं। गाप गुहाम पिप। (सुश्रत कप० २ म०) सघ्र र अशोके समयका प्राचीन पाली अपरम उत्तीर्ण पराटको (स० वि०) वाटर सम्बग्यो। पक शिगरि है। वरावर देखा। परारिका (स. खा.) यराट वायें क्न् ततप्टाप् अत वराल (१० पु. ) माऽम्लाऽन, रस्प लत्यम्। फरमद, इत्वञ्च । १ पईक, कीड़ो। २ तुच्छ वस्तु । ३ नाग | रोंदा। फेसरका पे। थरारक ( स० लो०) पर श्रेष्ठ निनम् इति गच्छति पराही (स० स्त्री० ) रागिणीमेद । राग भौर रागिणी देखा। ऋण्वुल् । हारक हारा। घराण (T० पु०) नियते इति पृ युन पृपोदरादित्यायुत | परारक्षक-विरव्यपवतपाश्वस्थित एक प्राम। वीर्घ। १ इन्द्र। २ घरुणा यस वरना। (भावष्य बह मव०८४३) यराणम ( स० वि०) यरणा और असिमायो। वरारणि ( स० पु.) माता। घराणमो ( स्रो०) काशी, वाराणसा! परारोह ( स० पु०) हस्तिन उच्यत्वात् आयनपृष्टत्वाश्च वाराणसी वा कागी देखो। पर आरोहो यन । १ विष्णु। २५ प्रकारका पक्षा। परात ( स० को) बौद्रभेद । (लि०)२ श्रेष्ठ सवारवाला। धादन (सालो०) धरै राजमिरयते इनि अदल्युट । वरारोहा (स खा०) पर मारोहा नितम्यो यस्य । राजादन टेसू। १ उत्तम स्त्रा, खूबसूरत औरत । २ कपि, कमर । ३ सोमे पगनना (म. ग्बो०) र आनन यम्याः । सुन्दरी स्रो। वरात्यत दाक्षायणा मूत्तिभद। परात्र (N० ० ) पर मन | भर्जिाधान्य दा ! रार्थन (स० वि०) आशापर्यादाकाइ क्षी, इप्सित यम्तुफे उत्तम मग्न। माघान अश्या मुंग मसूर, उडद आदि, पााकी इछा परनव ला। को भयो तरह भून उमो दल ले। पीछे नलमें यद्धय र २० हो०) पूनाको एक सामग्री । इसमें अच्छी तरह पाक कर समिद्ध होने पर यान' चन्दन 4(म और जट ममभाग होता है। हलाता है।

वराह (10 त्रि०) वरपाके उपयुक्त।

परामिद (म० पु०) अम्लयेतन, अमल्पेत । वराल (स पु० ) यह लौंग। Vot x 131