पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६०५

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वराह-वराहकों छनाग मार फर नदी पार करने है एवं पुनः सुसजित बोरगण वामन्ती महोत्सव मत्त हो कर जंगली वराहों- मेगकी तरह कतार वाध कर अपने गन्तथ्य पथकी ओर का शिकार करते थे। इस दिन ये जीवनको मोह माया प्रसर होते हैं। यदि रास्ते कोई बनाजसे भरा हुआ , छाड कर घराहका शिकार करने जंगल में जाने थे। वेत दिखाई पड़ता है, तो वे खेतोंकी उपजको सम्ठ नए चराहम शिकार न कर सकने पर राजपूत-जातिका करके विचार गृहायोंका सर्वनाश कर डालने हैं। जब दमन होगा, ऐसी ही उन लोगोंको धारणा थी। इस देवी चलने समय किसी प्रकारकी अस्वाभाविक घटना होनेसे | घटनासे वे समझने थे कि, जगन्माता उमादेवी उन चे चकित हो उठते हे पत्र भयसे विद्धल हो कर वे अपने लोगों पर क्रुद्ध हो गई । गजपूत जातिके आहेरिया अपने दांतोंको कड़कड़ा कर उस मयावनी वस्तुको देखने उत्सवमे भी गोरीके सामने वराहको वलि चढ़ानेकी की प्रतीक्षा करते है । जब भयका कोई कारण दृष्टिगोचर राति है। नहीं होना नव शीघ्र ही उस स्थानका परित्याग करके ___घसन्तकालमे वराह-शिकार शफजातिकी एक प्राचीन दुसरी ओरकी यात्रा करते हैं। यदि कोई शिकारी ऐसे प्रथा है। स्कन्दनामवामी अमिजाति मध्य वसन्त- समय उनके सामने आ जाय तो ये उन्हे चारों ओरसे ऋतुकं समय "क्रिया" देवाके मदोत्मवमे वराहके वलि- घेर कर अपन ताखे दांतोंके आघातसे टुकड़े टुकडे प्रदानको गति देनी जाती है । उस देशके रहनेवाले कर डालते हैं। 0, Labtatus वराह साधारणतः उमे एम महोत्मय दिन मैदे नथा नाना प्रकारके ममालेसे ॥ फीट तक लम्बा एवं १०० पौंड मारी होता है, किन्तु तैयार किये हुए वराहका मास भक्षण करते थे। इस तरह D, torquatus वगद३ फीटसे अधिक लम्ना नधा फारस देगमे भी वर्षारम्मके प्रथम दिन "Co Chelin" ५० पौडसे अधिक भारी नहीं होता। ग्जेिंट पार्कके (वराह ) भून कर खानेको प्रथा है। हेरोदोतामकी चिडियाजानेमें Chotropotamus Africanus नामक विवरणीमें मिश्रदेशवासियोंके मसालोग्न तैयार किये हुए और भी एक प्रकारका वराह रखा गया है। सूअरमाम खानेका उल्लेख है। बहुत प्राचीनकालसे ही संसारमें वराहको निदर्शन भारतमे दुसाध जातिके लोग सूअर पालते थे। वे पाया जाता है। हिन्दु शास्त्र में विष्णुके, तृतीय अवतारमें लोग शलेसकी पूजामे सूअरकी वलि देते थे। इसका वराहमृत्ति धारण करने और पृथ्वीके उद्धार करनेको मांस भी वे लाग नाते थे। किन्तु उनके नेताने उन्हें कथा पहले ही वर्णन की गई है । पृथिवी देखा। राजपूतवंशी यता कर सूअर पालने तथा उसका मांस भूतत्वको आलोचना करनेसे जाना जाता है कि, खानेस रोका, अतः अब वे लोग इसका मांस भक्षण नहीं सार्सियारि भूपचरसंस्थित जानवरोंके शरीरकी पहियोंके करते। मध्य प्रायोमिन युगके द्वितीय विभागमें तथा प्लियोसिन वराह-एक अभिधानके प्रणेता। ये शाश्वतके समसाम- युगके तृतीय और चतुर्थ विभाग, वराहका अस्थिनिदर्शन यिक थे। पाया जाता है। श्रीक जातियोंके इतिहासमें भी टायफान वराहक (स० पु०) १ हारक, इौरा । २ शिशुमार, सूस। देवके पवित्र वराहका उल्लेख है । चीनदेशीर एक प्रयम ४६०० वर्ष पहले के बराहका वृत्तान्त लिखा हुआ | वराहकन्द (स० पु०) वराहप्रियः कन्दः । चराहीकन्द । है। मनुस दिता मी वराह मांसको निषेधविधि लिम्वी वराहकर्ण (स० पु०) १ एक यक्षका नाम । एक वाण. है। महाभारतमे वराइके आकारसे रणक्षेत्रमें सेना का नाम । सजानेकी कथा लिखी हुई है। गुजरातके चौलुफ्यवंशीय वराहकर्णिका ( स० स्त्री०) युद्धानभेद, लड़ाईका एक गले राजचिह स्वरूप वराहलाछन घ्यवहार करते थे। इस हथियार | राजवनको चलाई हुई स्वर्णमुद्राओंमें चराहके चित्र अङ्कित घराइकणी (स. स्त्री० ) अश्वगन्धा, असनध। ( Phy. रहने थे । वह बराहमुद्रा कहलाती थी। भारतीय राजपूत . salhs flexuosa )