पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वराहपिहिर-घरायु उन सब अनुमान वा पाइर मूलमें कुछ भी ऐतिहासिक मठ मायके आधार पर सस्कृत भाषामें रोमसिद्धान्त सत्य है, मालूम नहीं होता। रचा गया था । कि तु ग्रहगुप्तका ब्रह्मसिद्धान्त पढ़नेसे ___घराहमिहिरो तत्पूर्व वत्ती पाच सिद्धार्तीका आश्रय | पैसा मालूम नहीं होता । लार वशिष्ठ, विजयनन्दी ले र पञ्चसिद्धान्तिाको रचना को । उन पञ्चमिदान्त । भोर आर्यभटाचाका गणनारे आधार पर प्राणने के नाम ये है- रोमकमिद्धान्तका रचना की। भट्टोत्पल और अल मोहित रोमक यासिर सौर पैतामहास्तु पञ्चसिद्धान्ता । रुणीने भी पैसा हो रहा है। पोलिस, रोमक पासिष्ठ सौर और पैतामह ।। घराहमिहिरने जिन पाच सिद्धान्तो को मालोचना की यासिष्ठ और पैतामह इन दोनों सिद्धान्तोको भालो , है, उनमें सौर या सूर्याग्निद्धा तका समालोचना करके चना परफे ज्योति शास्त्र इतिवत्तलेखकगण उहे प्र०, ज्योतिपियो ने सावित किया है कि यह सिद्धात शका पूर्व १३वीं शताब्दीके सिद्धात मानते हैं। किन्तु पोलिश | दारम्मके समप सङ्कलिन हुया था। उसके पहले और रोमा इन दोनों नाम देख कर बहुतेरे मनुमान ) पौरिश मोर पोलिशफे पहले रोमक सिद्धात रचा गया। परत हैं, कि वराहमिहिरने माधान पाश्चाय ज्योतिषसे । प्रक ज्योतिया हिपास प्राय ५० वर्ष पहरे जावित थे। महायता ली थी। उनका प्रग्य अभी नही मिलता। उनका परिदर्शन पोलिशासिद्धा तमें ययनपुर पा मालेकान्द्रियासे काल ले कर टलेमाने प्राय १५० ६०में अपने प्रत्यकी दशातर लिया गया है। फिर इधर रोमासिधात गत | रचना की। उनके प्रबफे साथ रोमकसिद्धान्तका मेल जिसण्या निर्णय करनेके लिपे ययनपुरका मध्याह नही है। इस हिसावस उनके बहुत पहले रचित माना गया है (१)। रोमसिद्धात दिपारसा प्रग्य देख कर सङ्कलित हुमा प्रसिद्ध मुसलमान पण्डित पर धोरणीने लिखा है। है ऐसा भी नही कह सकते। कि पीलियासिद्धान्त यूनानी पौरसकी रचना है। परन्तु इन जरूर कह सकते है, किपराहमिहिरने तदनुसार कोह कोई अनुमान करते हैं, कि प्री भाषामें | ययनाचार्यों क मतकी भी उपेक्षा नदी का परन् उनका Paulus Alexnudnnus का जो ज्योतिम्रन्थ है, पोलिश मत प्रहण किया है। पञ्चमिदान्तिकाको छोड रघे सिद्धान्त उसो सस्कृत मनुराद है पितु मिन्हों। वृहस्सहिता, जातक, रघुजातक आदि अने ज्योति ने उच्च प्रोष प्राय मिला पर देखा है पे फहते हैं, कि प्राक प्रन्य मी रच गये हैं। प्रधफे साथ उसका कुछ भी मेल नहीं खाता । विशे पतन्द्रिन मारूढ माता काला, फियाकैरव पत पोलिगसिद्धान्त एक नहीं था । ग्रासिमान्तक , चन्द्रिका, जातकलानिधि, जातामरसी, जातपसार, रोकार पृथदर और भट्टोत्परने पॉलिशसिद्धा तसे या रघुजाता देवशयल्लमा, प्रश्नचन्द्रिका, वृहदष्टयर्ग, कुछ पलोक उधृत किये हैं। उन सब श्गेको साथ वृहदुयाना मयूरचित्रा मुहूर्त नथ, योगयात्रा, योगा पासिद्धान्तिकाके मतर्गत पोलिशसिद्धान्तको कुछ र्णय, पटरिया, सारायला और वराहमिहिरीय TIRE मी पाता नहीं है मौर और मार्गमरसिद्धान्तक मतक का प्रन्य इन्दो क यनाये हुए हैं। साथ मेल भले ही खाता है। पराहमुका (स० खा०) मुनामेन एक प्रकारका मोता। रोमकसिद्धारत नाम सुन कर भी बहुत स्थिर जैस-गजमुना' हाथीसे उत्पन्न मानी जाती है, वैसे हा दिया है कि भारेषजन्द्रियाके प्रसिद्ध ज्यातिबिट टमी यह सूमरस उत्पन माना जाता है। मुका देखो। वराहमूल (सलो०) काश्मीरका पर जनपद । यहा (१) मानापाना नास्य सप्तावन्यास्त्रिमागतायुचा । घराहरूपा विष्णुमूर्ति प्रतिष्ठिन था। कारमीर दो। वाराणस्था विति। साधनमन्यत्र वस्पामि . घरायु (म०नि० ) पराह इच्नु प६ इत्ता जोगारा (सिसान्तिा पौशिरा) मिलपी हो।