पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६१८

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देवत परणतीर्थ, परुणादिया वरुणतोटा (स. लो० ) , तोमेर कालिकापुराणम वरुणमति (स ० पु०) एक, बोधिसत्वका नाम । । लिखा है, कि दर्पटनदके पूरव अग्निमान नामक पर्वत यरुणमित्र (स • पु०) गोमिलभेद । है। उसके.. मम्मुखमागमें कसकर -पतिके, नीचे यरुणमेनि (ससी० घरुणका क्रोध, घरुण कुएड नामका पवित्र सरोवर है। यहां जलाधिप T... : ... . (शिरीयस० ५।९।५।३), घरुण सदर वास करते हैं 1, कसकर पर्वत पर वरुण यणराजन (स: नि० ) वरुण,जहा राजरूपमें अधिष्ठित वेरकी पूजा करके , वारुणकुण्डमें स्नान करने से घण है। (त्तिरायस० ३५।८९) लोधी प्राप्ति होती है । म से, पञ्चम सण व कारमें | घरुणलोक ( स • पु०) १पक लोक। (कौशिकी उप० अनुम्बार लगानेसे वरुणयोज होता है । उसो घोज ११५) काशीखएडके १०८वे मध्यायमें इसका विवरण मनसे घरुणदेवको पूजा करनी होती है। है।-२ घरुणका अधिकारस्थान घा जल।. . . ।।। - (कालिका ७५१०१७) ft-rr . (सम्समद ५०), घरण र ( को०) परुणा,भाय या,ध। . - घरुणशर्गन (स.पु०) देवता और असुरको लडाइमें वरुणदत ( म०पू० पाणिनि यणित एक व्यक्ति । देवपक्षाय एक सेनापतिका नाम। (पा० ५३८४) यरुणदेव ( म०नि०) यरुण जिसफे देवता हो। (बु.) परुणशेषस (स० त्रि०) १ वरणका अपत्य । (ऋक् ५६५ सायण) २ रक्षाकारो पुवादिविशिष्ट!, . शतामा नक्षल । (हत्व० ३२२२०४३ घरुणानाद्ध ( स ० को. ) श्राद्धरत्यभेद। . वरुणदेवत'( स०पु०) शतभिषा नक्षत्र। । - - वरुणमव ( स० पु०) वरुणका भभिप्रेत या। वरुणभूत् (स. त्रि०) १ वरण प्रयञ्चना या लोभ यरुणसेन (स.: पु०) शिलालिपि-यर्णित, एक राजाका दिखानेवाला। २ वरुण द्वारा हि सित, घरुणस मारा। न । .. या। F r पक्षणसेना (सखी०) राजकन्याभेद। वरुणपाश (स० ० १ वरुणका मन पशिफा कदा ... (कथासरित्सा. ww!, वरणस्रोतस् (स.पु०) पर्वतमेद। २मक नाक नाम ल ज तु।' ! . . परुणपुरुष (स.) वरुणा मृत्यया मौकर । पक्षणासह (सपु०) १ वरुणका पशधर । अगस्त्य " . . (पाश्च० एम ११११५) | पिके गोत्र में उत्पान पुरुष। घरुणप्रधाम (स.पु०) पर घत या प्रत्ययहाआपाट घरुणात्मजा ( स० प्रा०) वरुणस्य जनस्य आत्मना। या श्रायणकी पूर्णिमाके दिन किया जाता है। इसमें तदुद्भयत्वात् । पारुणो, मदिरा, शराय । - - लोग जौका-मत्त बार रहते हैं। इस प्रनका फल वरुणादिकाध (स.को०) वरुणकी छाल, सौट, गोखरू यह कहा गया है कि प्रत करनेवाला,जल में पता नहीं। कुल मिला कर २ तोला, जल ५० सेर, शेप आध पार, भीर उसे मगर, घडियाल आदि जलजंतु नहीं पड़ता। । प्रक्षेपार्य यवक्षार २ माशा पुराना गुह २ माशा। इस वरुणप्रशिष्ट स० वि० वरुणके द्वारा शासित या परि काधका पान करने से पुराना वायुन, अश्मरीकी शान्ति चालिन!- , - -- ! IT । - घरुणप्रस्थ (स.पु.) पर प्राचीन नगर जो कुरुक्षेत्रके हदयरुणादि-परुणको छाल, मीठ गोखरूका, पश्चिममें था! ( म० बमख० ५७१९४) याज तारमूली, कुलुयो,, कलाय कुशादि तपञ्चमूल कुल वरुणभट्ट (सपु० ) एक प्रसिद्ध ज्योतिषो pe / मिला कर २ तोला, जल ।।० सेर, शेष आध पाय, प्रक्षे, घरुणमण्डल (स.पु.) नक्षत्रों कम दल। इसमें ! 'पार्थ चीनी २ माशा, यवक्षार २ माशा। इससे अश्मरी, रेषता, पापाढा, आढा, अश्या, मूला उत्तराभाद्रपदा मूबरच्छ, यस्तिशूत्र और लिङ्गशल जाता रहता है। - और शतमिपा है। पा हैं। .... , . ( . . . . यरुणी छालके का वा फलफ साथ पुराना शुद्ध Vol 1 15s CURI . .