पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६२३

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वर्गलाना-वर्गीय गुगा-६४ वग राशिका घनफल होता है। इस प्रकार | इसके बाद कन्याके पिता भात , और वरके पात्रों पर राशि-इसका मूल ३ और धन २७ है। इसका वर्ग- हाथ रख कर कन्या सम्प्रदानका अनुरोध करते हैं एवं ६ का घन ७२६ अर्थात् ३४२७४६= ७२६ । इससे जान | दानके दक्षिणाम्वरूप जामाताके हाथमे एक फल देन हैं। पडता है, कि जो वर्ग राशिधन है, वही वा मूलधन वर्ग इसके पश्चात् घर तथा कन्याके वस्त्रों के टोंका 'गेट ३४३४३=२७४२७= ७२६ घनमूल निकालने के लिये बन्धन करते है एवं वर और कन्या मण्डपके चारों ओर करणसूत द्विवृत्त भी है। घन और घनमूल शब्द देखो। । मात बार घूमते हैं। इसके बाद कन्याफे पिता वरने वर्गलाना (फा० फ्रि०) १ कोई काम करने के लिये उभारना | ललाटमें हल्दी और नावल छुलाते हैं। इसके उपरान्त उकसाना । २ वहकागा, फुसलाना। जामाता तथा कन्याका कोहबर घाम ले जाते है। वर्गवर्ग (सं० पु०) वर्गका वर्गफल (Biquadratic यदा यहुत-स। दूसरी दुसरी रमणियां उपस्थित _number 1 रहती हैं। वे वरके साथ नाना प्रकारको दाम परिदास वर्गशस् ( स० अय्य० ) टल दलमे । फरती हैं। इस जानिमे विधवा तथा देवर-विवादशी वर्गस्थ (रां० लि०) दल मध्यक्ष, खदानुरक्त । प्रथा नहीं है। महावीर और पांचपार इनके प्रधान वर्गा (वर्गाह, वर्गादि)--उत्तर-पश्चिम भारतको एक नोच उपास्य देव हैं। टस जातिके वानसे लोग कृषिकार्य जाति । इस जातिके लोग खास कर राजपूतों के यहा । | · करके अपनी जीविका चलात हैं। 'नोकरी करके अपनी जाविका चलाते हैं। इस जानिकी वाइयां राजपूत जातिका एक नाबा। गाजीपुरमें इन रमणियां भी गृहस्थों के परिवारमें विशेषतः राजपूत लोगों का बासस्थान है। ये लोग अपनेको मैनपुरी जिला- सर्दारों के घर गजकुमारोंझी धाय बन कर वाम उरतो . वासी चौहान जातिको एक दुसगे शापा बतलाते हैं। एवं अपने स्तनका दूध पिला कर उनका लालन पालन | वर्गाला-बुलन्दशहर जिन्लावासी राजपूत जानिकी एक करती है। इस जातिके लोग अपनेको कन्नौजके आदि शाखा। ये लोग अपनेको चन्द्रवंगा बताते है। निवासी बताते हैं। उनका कहना है कि, वे गहरवाड , इस जातिके अन्दर विधवा विवाहकी प्रथा है। इस राजपूतौके साथ मादिनिवासस्थान परित्याग कर कई कारण थे लोग अपनेको गौडिया जातिको समश्रेणी स्थानोंमें जा बसे है। वे ग्वाल, अहीर आदिके सम्बन्धो कहने ई। इन लोगोंका कहना है, कि ये लाग दिक्पाल गिने जाते हैं। तथा भट्टिपाल के चंशधर है। इनके वातिहासमें लिखा वे अपनी जातिके अन्दर ही आदान प्रदान करते हैं। है कि, ये दोनो भाई इन्दौरसे मालवा आ कर बस गये । गोत्र विभाग न रहने के कारण पिडदोष होनेको सम्भा जिस समय महम्मद गोरोने पृथ्वीराज पर आक्रमण चना रहती है। इसलिये वे लोग कई पुरुपे वाद दे कर किया था, उस समय इन दोनों भाइयोंने दिलोको सनाओं. अर्थात् जितने दिनों तक कि मी परिवार की पूर्व आत्मीयता के अधिनायक वन रणक्षेत्रमें वडो वीरताके साथ युद्ध को स्मृति विलुप्त नही हो जाती है, उतने दिनो तक वे किया था। सम्राट औरगजेमके राज्यकालमें इस जाति- लोग उस परिवारमें अपने लडके लडकियों का विवाह के बहुतसे लोगोंने इस्लाम धम खीकार कर लिया। नहीं करते। उनकी विवाह-प्रथा साधारण हिन्दुओंकी निन् (सं० वि०) दलभुक्त। तरह ही होती है। इन लोगोंमे पूर्ण योवनप्राप्त लड़के वर्गी-मथुराके आस पास रहनेवालो एक जाति । इस लडकियोंका विवाह होता है। तोन दिनों तक विवाह, जातिके लोग दासवृत्ति, कृषि अथवा जगला पशुओंका का उत्सव मनाया जाता है। तृतीय दिन वरके यहासे शिकार कर अपनी जीविका चलाते हैं। वरात सजधज कर कन्याके घरकी ओर यात्रा करती है। वगोंण (सं० त्रि०) दलभुक्त, वंशगत । ____ वरके घर आने पर कन्याके आत्मीयजन शुभलग्नमें | वर्गीय (स. त्रि०) वर्गसम्बन्धीय । जैसे,—कवीय, घर और कन्याको मण्डप नामक छत्रके नीचे बैठाते हैं। चवीय आदि ।