६३६ वर्जनोय-वर्जित ग्राममें यास करना निपिद्ध है। जिस स्थानके लोग। देकर तैयार किये हुए पदार्थों का भोजन कराना, नंगे बहुत दिनों से किसी रोगसे आकात हो, उस स्थान पर सोना एवं जूठे मुग्न कहीं जाना वर्जनीय है। भो वास करना उचित नहीं। अकेला अधिक दूरको पतित, चंडाल, पुरण, मूर्ग, धनमें मदग्ने मत्त तथा याता फरना, अधिक समय तक पर्वत पर वास करना, धोबी आदि नीच जातिके लोगोंके साथ ब्राह्मणों को एक शूहके अबोन राज्में बसना एवं नास्तिकों के द्वारा क्षणके लिये भी नहीं बैठना चाहिये। आक्रात देशमे वाम करना निषेध है। जिन मब पदार्थी वर्जनीयअन्न-मत्त, कद तथा रोगी व्यक्तियों का का सार निकाल लिया गया हो, उनका भोजन तथा अन्न नहीं ग्वाना चाहिये । केशरीटादियुक्त अन्न, इन्छा- अति प्रातःकाल वा सन्ध्याकालमें भोजन करना वज-1 नुमार पावसे स्पर्श किया हुया अन्न, भ्रूणपातीका देवा नीय है। जिम कार्याके रनेले किसी तरहका फलन हुया अन्न, रजम्यला स्त्री द्वारा छुपा हुया अग्न, पक्षियों- निकले, उस कर्याका करना मना है। यजलि द्वारा । म मा अन्न, कुत्तोंसे छुआ अन्न, नायका छुघा पानी पीना तथा जघे पर रम फर कोई वस्तु भाजन हुभ पन्त, यागन्तुकोंके लिये तैयार किया हुया अन्न, करना वर्जनीय है। बिना प्रयोजनके अधिक उतावला मा मेयोंका अन्न, वेश्यका अन्न, इन सब प्रकार के न होना चाहिये। अन्नोंको भोजन करना निषेध है। इनके अतिरिक्त चोर, शास्त्रविरुद्ध नाच गान करना निषेध है। कांन्न । गवैया, चढई, सबसे जीविका चलानेवाला, इन मबोके वजाना वा ऊपर हथेली रख कर ध्वनि करना, दांत | अन्न, कंजूमका अन्न महापातकी, हिजड़ा, प्यभिचारिणी क्टिकिटाना, अथवा गधेको तरह चिल्लाना निपिद्ध है। स्त्रो तथा ढोंगीका अन्न, पे सय अन्न त्याज्य है । यामी कांके वर्तनमें पांव धोना, दृटे फूटे वर्तनों में भोजन अन्न, द्रका अन्न, निर्द'ईका अन्न, जूटा अन्न, वैयका करना वजनीय है। दूसरेके व्यवहार किये हुए जूते, अन्न, ध्याधका अन्न, जूठाग्लानेवालेका अन्न, निर कपडे, जनेऊ, माला तथा अलंकार नहीं पहनना चाहिये। कर्मचारीका अन्न, अशौचान्न, ये सब अन्न पदापि भोजन बदमाश, भूबे, रोगो, स्टे हुए सिंघबाले, अधे, वा फटे | नहीं करना चाहिये। पतिपुदविहीना स्त्रीका अन्न, खुग्वाले किसी भी पशु पर सवारी नहीं करनो उपकारीका मान, शत्रुका अन्न, पतित व्यक्तिका अन्न, चाहिये । प्रथमोदित सूर्य की धूप, चिताका धुआं और जो आदमी परोक्षामें दूसरेको निन्दा करता है, जो झूठी दृष्टे फटे आसनों का परित्याग करना चाहिये। अपने | गवाही देता है, जो धनके लालचसे यशफल विक्रय हाथसे नख वा वाल काटना तथा दाँतों से नख कुतरना करता है, उनका अन्न ; नटवृत्त्युपजीवीका अन्न , दोप माना गया है। मिट्टी वा ढेलेका व्यर्थ मईन दजों, कृतन, लोहार, निषाद, रंगरेज, सोनार, बाँस फाइने- करना, नत्र द्वारा तृण खोटना निष्फल कार्य करना एवं वाला, लोहेका व्यापारी, कुत्ता पालनेवाला, शौण्डिक, जिम कार्याके फरनेसे भविष्यमे दुःख प्राप्त होनेकी वस्त्रधारक तथा निष्ठुर व्यक्तियोंका अन्न नहीं खाना सम्भावना हो, उमे करना पाप बताया गया है। क्या चाहिये। जिस पुरुषकी ली उपपत्ति रग्दती है, उसका लौकिक, च्या शास्त्रीय किसी तरदकी वात सौगन्ध खा | अन्न वजनीय है । ( मनु० ४।५ अ०) कर नहीं कहनी चाहिये । गलेका माला चादर आदि वर्जयितव्य (सं० पु० ) वृज णिच्-तथ्य । वर्जनीय, छोड़ने- किसी कपडे के ऊपर पहनना, गो वा चैलकी पीठ पर के योग्य । सवारी करना,दिवारों से घिरे हुए ग्राम या घरमें दरवाजे- वयित (सं०नि०) वृज णिच् तृच । वर्जनकारी, को छोड़ पर दूसरी ओरसे प्रवेश करना, रात्रिके समय त्यागनेवाला । वृक्षों के नीचे सोना, बैटना या गमनागमन करना, व्यव- वजित (सं० त्रि०) वृज क । १ त्यक्त, त्यागा हुआ, छोड़ा हार किये हुए जूतेको हाथमें ले कर राम्ता चलना, शय्या हुआ। २ जो ग्रहणके अयोग्य ठहराया गया हो, निपिद्ध । पर बैठ कर भोजन करना, रातिके समय तिल वो तिल| जैसे फलिमे नियोग वर्जित है।