पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६३०

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वयाचातु-पापानान भातिमी साता आया तारे धरित किया पिता, इम द्वारा यह नाना माना है कि प्रस्तारये अनुमार माता दोक स्माय प्राप्त करना यह कभी भी बनी। इतन वर्णो वृत्तोंपे नामुष स ध्यफ भेदका रूप रघु मपति गुप्त नारी समाता। तिर्यक योनिमात ध्यान गुरुय हिसाधसे फैमारोगा । जितन यर्णक मस्तार प्रभृति जिस तरह विचित्र वर्णक साथ माता पिताक पिसा भेदका रूप शिरा, उतने लघुप चिह लिख समान रूपमे ही पैदा होत १ क उमा तरा मनुष्य कर उनक सिरे पर प्रमा: योद्दिष्ट (१से आरम्म अपने पिताके पण ही पैर हेता है। पशनोन रप प्रमादून दून लिगे। फिर शनिमक म न हो पर पानिमार होता है, यह मप जिम दूना परफ उममेसे पूछो रमप्पाशे घगये जो पतिक औरमस पैदा दाता है, उसका कुछ न कुछ | १६ धापी यचे, यह जिन जिन उदिरों योगस बना हो चरिय अपश्यी आध्रय करता है। हसिम यस उनम मानेका रघु मानायो तिहीको गुप पर दे। पिरोयाला पति शोममवर्ण है या निट, इसका । जोरप सिद्ध हागा, यही उत्तर होगा। निशाय उस मायने हो जायगा। मणपिम पणना (स. रा.) पर्ण णिच् पुच् याप। गुणाधन । तरह पाहात पठिन होने पर भी काममय मृदाता पयोया , स्तय स्तोत, स्तुति नुति साधा, प्रशसा, है पय मुयण मर्यान् घांगेनिम तरह नियम मृद ही। भर्ष याद । विदग्धा भपि वपन्त बिटव नया स्थिय । पर मी कागफ ममय रग्नि, मुनाल तथा दुज्ञान, (पासरित्सा० ३२११६६) पुरपा मोर गरित मा उमा तह पाते हैं। वण'ना' (म • पु० ) यर्णम्य ना7 ६-तम् । निरन मारजात पर्णकरार नालाय युधि द्वारा मरमा । ' वारय अनुमार Tet frमी पण का T arul स मार नहीं होता, राजगुणा प्रपरता पात . यनीय (म.लि. ) यर्ण कणि मनीया । १ घण्य कालभेदम घुमितिको प्रधानता होने पर भी रारा । यणित, सना योग्य । कस्तया' नप योग्य । वर्णपताका (सरनी। विष्वर या लशारत्र में एक रम्मा स्यत्वा स्पेष्ठत्य, मध्यमस्यर मनुमार जी ममान Pाता रहा प्रमुदिन हुमा परता है। दुसरा म्वत्य प्रिया । (म द्वारा या जाता जाता है, कि वर्णदत्तक उत्पाते दो सरकारने मेघको तद पुगः पिलोर! भेदोममे कौन मा (पहला दूसरा या तीसरा भादि)ऐसा है, जिसम रतन लघु और लने गुम होंगे। हो जाता है। चे पणा का जय साधारसे दूर हो नाप तब उसका मम्मा नदी करना चाहिए और यणात (म.पु.) पणस्य पातः । उधारण समय । दातमन पणश पतन। शट यदि महानारमम्मन तnt धर्म हो, तो उसका घणपानार (स.पु.) पिग- या छाद गार्म पर मम्मान करना चाहिये। मनु शुमामा', सुशी-सा मिया। मा द्वारा यह माना जाता है, कि अमुक सञ्चरिन तथा पुर द्वारा अपनी प्रास्ता रे दुर स एयाये पगों में गिनने पर हो सस्त है और TE हो जाने पर पुरुष अपन का द्वारा पुनः अपना उत्तार उन वृत्तमिसे रित्तोलघ्यादि मौर स्तिने लपत सिने करना है। सब सकोण तथा इतर पोनिका "" } गुयादि और बिजन गुगात तथा तिने सर्वगुरु और पुलोत्पादन नहीं करना चाहिये पटिन लोग इस तरह । पिनने सलघु होंगे। नितने यमों का पाताल बनाना यात्रियों का त्याग परे । ( महामारत अनुसन ४८ म०) तो उन ही मडो रेखाए और अहें कारती हुइ पाच पणधातु (मस्त्री०) गेर गुर मादिरगक कामर्म | आडी रमाए घोचे। इस प्रकार को धन पाने पर मानेाती धातु। कोष्ठोंकी पहली पक्तिमें प्रमसे १, २, ३, ४ आदि सय पणन (स.ह.) पणतुती विस्तारे रञ्जनादी न्युट गरे। दमरा पतिम २, ४, ८ १६ आदि पणसूनार स्तन, गुणीशन । २ विस्तरण, रिमी वानको अहिले। तासरी पतिम सूचीफ गोंधे आधे सविस्तर कहना, अपन। ३/वण रंगना। लिये और चौथी पतिमें पहली और सामरीपतिक वर्णनष्ट (म.पु.) पिङ्गल या छदारम ए प्रिया1 अकांका गुणनफर लिये। Not Y 162