पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६३७

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६५२ वर्णश्रमधर्म शास्त्रधर्म सभी धर्मों का मारभूत है । एक राजधर्मके घातुका घर्जन कर घेश्यके बगदायिको व्यवसायसे प्रभाव होमे मभी मनुष्य प्रतिपालित होते है । दण्ड जीविका निर्वाह कर सकते हैं। नीति नहीं रहने वेद और धर्म एकदम नष्ट हो जाना । __सब प्रकार के म, तिल, प्रस्ता, मिहान्न, लवण, चार धिमो के धर्म, यतिधर्म, लोकाचारप्रथो और मभी पशु तथा मनुष्य इन गय द्रव्योंका चेचना निपिई है। कार्या पक क्षत्रियधर्मरे प्रभावसे जनसमाजमे प्रतिष्ठित कुानुम्भादि द्वारा रक्तवर्णमूव-निर्मित सभी प्रकार के हैं। (भारत शान्तिपर्ण वर्णाश्रमयम ६०७०८०) यस पटमन और नामोके रेगेका बना हुआ बत्र नया भगवान मनुने वर्णाधमधा इस प्रकार निर्देश रक्तवर्ण न होने पर मो मेप टाम बने हुए कम्यरादि, किया है। ब्राह्मण माइवेट ध्ययन, अध्यापन, पजन, इन सब वस्तुगोंका विरुप निपित है। नट, शत्र, विष, पाजन. दान और प्रतिग्रा ये छ: गर्मो को परके जोबन मास. मामरम, सब प्रकार से गधदथ्य क्षीर, दधि, माम, याता निः । इन छ काँ के मध्य साध्यापन. याजन घृत नेल मधु गुर, कुश, ममा प्रकार के जंगली पशु तथा मत्प्रतिप्रापेनोन र हाणी उपजीविका पिन्त विशेषतः दोनचाहाची विना गु' फटे तुप घोडे, पक्षा, याजन, अध्यापन तथा प्रना ये तीन क्षत्रपों के लिये नल गय और सह इन मय अग्तुओंा वना निपिद्ध है। केनठ दान, अध्ययन और याग ये तीन ब्राह्मणों के लिये निषिद्ध है। उन कर्तव्य है। क्षत्रियकी तार के लिये भी __स्वयं जमीन जोन कर थोडे दो दिनों के मध्य विशुद्धा याजनादि निषिद्ध है। प्रजाओंकी रक्षाके लिये अयशत्र वस्थामें उसे वेव मकते हैं, किन्तु लामनी आगामे कुर धारण क्षत्रियकी वृनि है , पशुपालन, कृषि और वाणिज्य दिन ठहर कर चेचना मना है। भोजन, मईन तथा दान. वैश्यको उपजीविका है तथा दान, याग और अध्ययन को छोट कर दि फोरे तिल विक्रय करे, नो वे पितृपुरुषों दोनोंका ही अवश्य कर्तव्य है । म्वधर्म के मध्य ब्राह्मणका के साथ कृमित्व को प्राप्त हो कर कुत्तेको विष्ठामें निमग्न वेदाध्यापन, क्षत्रियका प्रजापालन और वैश्यका वाणिज्य | रहने हैं। ब्राह्मण यदि मांस, लवण और लाह आदि तथा पशुपालन श्रेय है। वे, तो वे पतित होते है, किन्तु क्रमागत तीन दिन दूध ___ यदि इन सव स्व मं द्वारा जीविका निर्वाह न हो, नो , बेचनेसे वे शूद्रत्वको प्राप्त होने हैं। मानादिको छोड़ निझोक्त आपद्धोक्त विधानानुमार चार वर्ण जीविका पर अन्य कार्ड निपिन तथ्य इच्छापूर्वक लगातार सात निर्वाह कर सकते हैं। यदि वाह्मणका परिवार वडा हो दिन घेचनेसे ब्राह्मण वैश्यत्वको प्राप्त होते हैं। एक और यथोक्त अध्यापनादि अपनी वृत्ति द्वारा जीविका न प्रकारके रमठपके बदले में दूसरा रनद्रव्य लिया जा चला मरने हो, नो ये प्रामनगरपक्षादि वियति द्वारा माता है, किन्तु रसदय के बदले में नम का वा नहों जोवर्जन र नाते।ककि यहो उनको आमत होता। सिद्धान्तके बदले मान्न तथा धान के बदले घन है। निजातीर क्षत्रिवृत्ति इन दानों मं द्वारा मे तिर लिया जा सकता है, किन्तु ममान परिमाण । भी यद जीविका न चले, नो वे कृषिमाणि न्यादि वैश्य ब्राह्मणके बापतकाल जिस प्रकारको ज्ञायिका वृत्ति छ । जं वनयात्रा कर सकते हैं। वैश्यवत्ति द्वारा बताई गई है. क्षत्रिय मो उम' प्रकारको त्ति द्वारा जावका चलाने वाग और क्षय दोनों को हिमा- जायका निर्वाह करे । साधर्म य द निकृष्ट हो, तो वहुल गादि पश्वाधीन कृपार्य छोड देना चाहिये । भी उमरा त्याग नको करना चाहिये । परधर्म रवयम्से यदि कोई कोई कृपिजीविकाकी प्रशंसा करते भी हैं, तो उत्कृष्ट होने पर भी यदि कोई उRET आचरण करे, तो भी विद्वान् इसकी निन्दा करते हैं। क्योंकि, उम उपलक्ष गजा उसे दण्ड देवे। स्वधर्म निकृष्ट होने पर भी वह में हल कुदाल आदि चलाने भूमिस्थित कितने प्राणियों अनुप्ठेय है। दूसरेके धर्म द्वारा जीवनयापन करनेसे फा प्राणनाश होता है। ब्राह्मण और क्षत्रियको निजवृत्ति- मनुष्य उस समय स्वजातिले परिभ्रष्ट होते है। का यसदभाव नया धर्मनिष्टाका व्याघात होनेसे निपिद्ध। वैश्य स्वधर्म द्वारा अपनो जीविका न चला सके,