पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६४३

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६५८ नई किन् "हरभगे बलमेटा नेम्या नाशा बलन्य विनवः। पढार्थीको छूने तक नहीं । सोझा दलके लोग जनेऊ पह थर्थक्षयोऽनभग तथानिभगे च पर्ट किनः ॥" नने। (वृहन्म० ४३३२) सेनुबन्ध-गमेश्वर नामक वर्द्धकी लोग केवल काठ वर्तमान समय बढई, विहि, वद्धि, वद्धिक या यहि को देवमृतिं दना कर बेचने है। जातीय व्यवसायमे नामसे विख्यात हैं। उत्तर पश्चिममे ये लोग अपनेको उय स्थान के अधिकारी होने पर भी समाजके मध्य विश्वकर्माको सन्तान बताते है। इस समय प्रतमित्र नाम नाच श्रेणी में गिने जान है। खाटी वर्द्ध की जाति नहीं देना जाता । मध्यन कई श्रेणियों के लोग सिप गाडाके पहिये बनाते हैं पर दिलीवासी लोगों के बढ़ई का काम करनेले इस नामकी एक स्वतन्त्र । काका लोग टेबिल, कुसों प्रभृति तैयार करते हैं । ढांक. प्रेणी पैदा हो गई है। उकाट, दिमान तथा जंघार राजपूत जातिको पर दूसरी विहारके बर्ड की लोग छः दलमें विभक्त हैं। वे गाग्वा गिनी जाती है। चुनिझाम, कुला तथा फुटा लोग परम्पर थादान-प्रदान नहीं करने । इनमे कनौजिया। था। प्रभृति पर्वतयासी बढ़ई लोग डोम जानिले समान है। दलके लोग काठका काम करते है एवं मगहिया लोहे । तथा डाटको पिडकी क्विाड प्रति तयार करते हैं। महिया जानिके अन्दर से ५ वर्गके भोनर' ही भागलपुग्मे इन जातिका लोहार नामक एक दल है। वे बालिकाओंका विवाह हो जाता है। किन्तु उन्नर-पश्चिम लोग प्रकृत लोहार जातिसे पृथक है। कमारकला दलके । अञ्चलमे बालिकाका ७ले ११ वाईके अन्दर एवं दालय- वो लोग काठक पुनले नचा कर वा तमाशा दिखा का इसे १३ वर्ष के मध्य विवाह हो जाता है। उनमें कर अपनी जीविका चलाते हैं। । धनियोंके यहा 'चारहीवा' प्रधान, निर्धनों के यहा 'टोला' उत्तर-पश्चिम भारतके हिन्दू तथा मुमलमान बढई प्रथासे एवं 'बदल यदल' तथा सगाईको प्रयास विवाद: जानिक मध्य कई गानाए है। उनमें हिन्द्र विभागके । होता है। इस समाज में विधवा-विवाद भी प्रचलित है। वीच ७६ दल है। उनमें निम्नोक्त दल स्थानमेदसे । विधवा स्त्रियां देवरके अतिरिक्त दूसरे व्यक्तिको द्वितीय विख्यात है। बार पतिरूपसे ग्रहण कर सकती है। विनोंके आचरण सहारनपुर-बन्दरीया, ढोली, मुलतानी, नागर, तर भ्रष्ट होने पर समाज उन्हें जाति के बाहर कर देते हैं। लोइया , मुजफ्फरनगर-हलचाल, लोटा, मेरठ-जघार; यदि वे इस समाजदण्डके बाद पुनः धर्म तथा सम्मान बुलन्दशहर-मील, अलीगढ-चौहान , मथुग-वान्यन की रक्षा करते हुए जीवन व्यतीत करती हैं, तो लोग सागनिया, आगरा-नागर, जघार तथा उपरीत;/ उन्हें फिर समाजमें स्थान देने . । समाजमे मिल जाने- फर्क स्त्रागाद-पारीतिया, मैनपुर-उमरिया; एटा- के बाद वेलियां सगाईको रीनिमे फिर विवाह कर अगरिया, दरमनिया, विशारो, जलेश्वरिया ; बलिया- मकता है। पुरुषों के पारोंका नायश्चित्त ब्राह्मण-भोजन गोकुलवंगी; वस्ती जिलेमें-दक्षिणास्थ, सरवरिया, करानेसे, अमोध्यानार्थ जानेले अथवा गङ्गा वा सरयूमे सरयूपारी; गोएडा-कैरातो वा सण्डी, लोहार, बढई, म्नान करनेसे होता है। कोकणव शो, तथा मन्दी; बाराबंकी-जैसवार ; मिर्जा ! वे लोग वीराबारी शैव है। ये मद्य मास नहीं खाते। पुर-कोकग मी, मगधिया वा मगदिया, पूर्णिया, उत्त, पाचपोर, महाबीर, देवी, दुन्हाच, दिवियादेव, विश्य- रिया और क्षत्री वा बारी दहमान, मथुरिया, लदोरी, कोकग का प्रभृति देवनाओं की पूजा वे लोग बडो भक्तिसे इत्यादि। इनके अतिरिक्त महर. ढांक, ओझा, वामन करते है । वे लोग चिताक अन्दरकी वत्री खुची मृतकको बढई तथा चमार यई प्रभृति दल देखे जाने है। वारा हडियां बटोर कर गला वा और किनी नदामें फेक आते णसी विभागमें जनेऊधारी नामक एक दल है। ये लोग है।माधु पुरुपोंके समाविस्थानों पर वे लोग महालया- घटोपयात धारण करने है और मद्य, मांस प्रभृति अखाद्या ने दिन जर बढ़ाते हैं तथा नयोगी तिथिको उन स्थानों