पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६४९

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वद्धमान मी बर्द्धमान परगनान्तर्गत और भी कई स्थान प्राप्त जगनाम राय पैतृक पद और सम्पत्ति अधिकारी टुप । किये। १११२ हिजरीकी ५वी जमादिया अव्वल तारीखको, नथा वावरायकी मृत्युके बाद उनके पुत्र घनश्याम राय दिल्लीश्वरका ४३ वर्ग राज्यकाल व्यतांत होने पर जगत्गम पैतृक पद तथा-सम्पत्ति के उत्तराधिकारी हुए । वईमान- रायने दिल्लीश्वर औरंगजेब बादशाहसे ५० महल जमोदारी के सुप्रसिद्ध श्यामसागर नामक सुविशाल सरोवर धन- पवं जमी दार तथा चौधरीको उपाधि प्राप्त की। उनका श्याम रायकी अतुल कीर्ति है। खीका नाम ब्रजकिशोरी था, उसके गर्भमे कीर्तिचन्द्र घनश्याम रामकी मृत्युके बाद उनके पुत्र कृष्णराम' तथा मित्रसेन नामक दो पुन. पैदा हुए । १७०२ ई०को रायने पैतृक पद एवं सम्पत्ति प्राप्त की। १६६४ ई० कृष्णसागर-मगेवरमें स्नान करने के समय एक गुप्त हन्या- (११०७ हिजरी) की २४वीं रवियल आयल तारीखको कारोको छुरिकाघातसं उन्होने प्राण त्याग किया। उस दिल्लीश्वर औरंगजेच वादशाहक राजत्वके ३८ वर्षमे ' दिनसे राजपरिवारकै कोई व्यक्ति कृष्णनगरके जलको उन्होंने उनसे वर्द्धमानके जमींदार तथा नौधरी पदकी दृपित समझ फर न तो उसका जल पीते है न उसमें सनद प्राप्त की। इस राजकीय आज्ञापत्र द्वारा उन्होंने म्नान हो करने हैं। वर्द्धमान-रामवंगकी जितनी अतुल और भी कई एक जमींदारी प्राप्त की, उनमे सेनपहाडी- कीर्तियां दशों दिशाओंको समुयल बना रही हैं, उन्हें गढ़ विशेष उल्लेखनीय है । उक्त कृष्णरामरायके प्रपौत्र प्रधानतः कोर्शिमती ब्रजकिशोरोने हो म्यापन किया था। महाराजाधिराज तिलकचन्द्र यहादुरके राजत्व कालमे । वर्द्ध मानके मुविस्तृत मागरके नमान कृष्णगमकी मी वह दुर्ग ज्योंका त्यों वर्तमान था। अतुल कीर्ति है। ___कृष्णरामरायके जीवितकालमें वरदा तथा चितुआ जगत्गम रायकी शोचनीय मृत्यु के बाद उनके ज्येष्ठ के जमीदार शोभारिंह, विष्णुपुरके जमीदार गोपाल पुत्र कीर्ति चन्द्र पिताके पद तथा सम्पत्तिके उत्तराधि सिंह एवं चन्द्रकोनाके जमीदार रघुनाथ सिंहने विद्रोही कारी हुए । कोर्तिचन्द्रने छोटे भाई के लिये मासिक यत्ति हो बड़े प्रतापसे मुगलसम्राटके विरुद्ध अस्त्र धारण कर नियुक्त कर दी । १११५ दिजरो २० सवाल ४८ जुल्मको मुर्शिदाबाद, बीरभूम नथा वड मान पर आक्रमण किया। दिल्लीश्वर औरंगजेय बादशाहसे कोर्तिचन्दने पैतृक पद शोमासिहने वद्ध मान पर आक्रमण करके कृष्णगमराय नथा सम्पत्ति प्राप्तिका अनुशासन प्राप्त किया। उन्होंने के साथ युद्ध किया एवं उसी समय कृष्णरामराय मारे , अपने वाहुदलसे वग्दा तथा चितुआके जमीदार शोभा- गये। शोमासिंहने जव कृष्णराम रायके राजमहल पर सिहक माई दिम्मत सिहको पराजय करके वहांको आक्रमण किया, तव उनके परिवारकी १३ रमणियोंने जमींदारी पर अधिकार कर लिया। चन्द्रकोनाके जमो - विप खा कर प्राण त्याग किया। कृष्णरामरायकी कन्या टार रघुनाथसि हने शोभासिहके साथ मिल कर ब- शोमामिहके हाथोंमें पड़ गई । शोभामिहने उग्ने अपनी मान पर आक्रमण किया था, इसका बदला लेनेके लिये अनायिनी बनानेके अभिप्रायसे जिस समय अपने ही कीर्तिचन्द्रने रघुनाध मिहनो परास्त करके उनको दोनों हाथोंको उसकी ओर बढाया, उसी समय वीर- जमीदारी छीन ली थी। पीछे उन्होंने विष्णुपुरके जमी'. वालाने अंगरखेसे छुरी निकाल कर उस दुराचारी दार गोपाल सिंहको युद्ध में परास्त तो किया, किन्तु वे शोमासिक उदमे घुसेड दिया। शोमासिहके पाप- उनकी कोई सम्पत्ति ले नहीं सके। भुरसुट, चावदा मय जीवनका अन्तिम पदा गिर गया। शीन हो उस तथा बेलघरके जमीदारोंको परास्त करक उनकी जमी- वालिकाने अपने वक्षस्थलमें भी छुरी मोंक ली, देखते दारी हस्तगत कर ली। देखते उस ज्योतिर्मयोकी आत्मा भी शर्बदाके लिये कीर्तिचन्द्रने दिल्लीश्वर अबुल फतेह नसरुदीन इस असार संसारले कृत्र कर गई। महम्मद साहसे १५ रमजान १७ जुलुस तारीपको एक कृष्णरामरायको शोचनीय मृत्युफे बाद उनके पुत्र', टानपत्रमाप्त किया। उस दानपत्र द्वारा उन्हें उक्त