पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६५१

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६६६ उद्धमान चन्द्रने घोडे प्रदान कर अङ्रेनों की पूरी महायता की | वर्षको अवस्थामे ही इनके पिताको मृत्यु हो गई पचं ये थी। १७६० ई०में इष्ट इण्डिया पम्पन'ने महाराज तिला इसी छोटी अवम्घामे पैतृक पद नधा सम्पत्तिके उत्तरा- चन्द्र तथा इनके दीवान एवं प्रधान कर्मचारियोंको | धिकारी प, फिन्तु उस समय नितान्त शैशवावस्था ७५२५) रु०को पिलात भेजी। कारण उनकी असाधारण बुद्धिमतो माता महाराणी इट-इण्डिया कम्पनीको महाराज तिलकनन्द्रने महा विपणकुमारी ही अभिभाविका हो कर राजकार्याको यता मी को, किन्तु अल्पकाल के बाद ही कम्पनी महाराज देन भाल करती थी । १७७१ ई० में तेजचन्द्र बहादुरने के दिये हुए उपकारको भूल गई । यहां तक फि, कुछ ही । दिल्लीश्वर शादयालम बादशाहके आशानुसार उनके दिनों के बाद संगतगोलामें अंग्रेजी सेनाके साथ राज प्रधान सेनापति द्वारा महाराजाधिराज यहादुरका खिताव, सेनाओं का एक युद्ध हुश्री एवं सेनपहाडी तथा इष्ट । पाँच हजार जात पचं तीन हजार सवार, नकारा. तोप, इण्डिया कम्पनी की कोठीको मेनाओं के साथ मी दो बार प्रभृति स्पनेका गनुशासनपल प्राप्त किया। तेजचन्द्र युद्ध हुआ। इस समय गृटिश सरकारको १५ सहस्र सेना थालिग हो र अत्यन्त विलासी हुए, इसलिये उनके मौजूद रहती है । उस समय वईमान एक करदराज्य था। गत्यकार्य उचित रीतिसे समान्न नहीं होने थे। मत राज्यकी दिवानी नथा फौजदारी विचार महाराज की एव घोडे हो समयमें उनकी जमीदारोके कितने हो अपनी अदालतमे हो हुआ करता था। दम्यु तथा तम्कर | हिस्से जाना वाली हो जानेके कारण निलाम हो गये। आदि दुष्ट अपराधियों को महाराज अपने हाथ दण्ड | उन्दों मय जमीदारीको सरीद कर इस देशीय बनने दिया करते थे। महाराज तिलकचन्द वहादुरके अगेन | जमींदारोंकी सृष्टि हुई। १७६३१० में दामाला बन्दी- १२ दुर्ग ये, अभी उन बारहों दुर्गाका ध्वसावशेष वर्तमान वस्तके समय महाराज तेजसिह बहादुरको वार्षिक है। १७६७ ई०को वृटिशराजको तालिबासे पता ४०१५१०६) २० राजस्व एव १९३७२१) रु० पृलवन्दि चलता है, कि उपरोक्त १२ दुर्गों में २६ सुदक्ष सवार र्ज हो गये। दशसाला वन्दोवस्तकं याद तक महा एवं १९६१ पैदल सेना मादा किलेकी रक्षाके लिये राजकी कितनी जमोदागे विक चुकी थी, किन्तु इसके नियुक्त रहनी थी, इनके अतिरिक्त और भी कितने हो वाद ही सहसा उनके स्वभावमै परिवर्तन हुआ। वे देशी सिपाही तथा पैदल मेना भी नियुक्त श्री। १७६५ सय राज्यहार्य देखने लगे। उन्होंने सारी जमीदारोगो ६०में महाराज निलकचन्द्रन इष्ट-इण्डिया कम्पनीको पत्तनी उन्दोवस्त करके एक बार हो बहुनसे रुपये इक? ४०६४८६३॥2) रु. राजस्व प्रदान करके जो दाखिला कर लिये। ये विपुल पणराशि ही वर्द्धमान राजधना- प्राप्त की थी, वह अब तक राजप्रासामे सुरक्षित 'गारको नीच हुई । तबसे इस समय तक राजवर्नमे बचे हुए धन उमी धनागारमें सुरक्षित होती चली आ तिलकचन्द्रने बहुत सी कार्तिया स्थापित की थी, रही है। १७६० ई० मे इष्ट इण्डिया कम्पनीने महाराजके बहुतसे देवोत्तर तथा ब्रह्मोत्तर प्रदान किये थे। उनके हाथमे दिवानी तथा फौजदारोको क्षमता, जेलखाना एवं राजत्वकाली सव मिला कर ४ लाख ६७ हजार वोघे १७६३ ६०में पुलिश-विभाग अपने हाथमे कर लिया। सिर्फ ब्रह्मोत्तर प्रदान किये गये थे। ११५७ सालमें उसके पहले तक इन सब विषयोंकी क्षमता तथा उनके ( १७७० ई० ) महाराज तिलकचन्द्रने परलोकको यात्रा पूर्नपुरुप पूर्ण रूपसे उपभोग करते थे। की। उनकी दो मार्याद थी, जिनमें महाराणो विषण- महाराज तेजचन्द्र वहादुग्ने शादियां की थीं, उनमें कुमारी ही पुत्रवती हुई यो. इनके गर्भग्ने महागज नेज । महाराणी नानकीकुमारी हो पुत्रवती हुई थी। सन् चन्द्रने इस ससारमें पदार्पण क्यिा। ११६८ मालमें उनके गर्भमे महाराज प्रतापचन्द्रका जन्म सन् १९७१ सालके ५३ माघको ( १७६४ ई०को हुआ। शेषावस्थामें महाराज तेजचन्द्र बहादुरने प्रताप- १७वीं जनवरी ) नेजचन्द्रका जन्म हुमा था। पांच । चन्द्रको राज्यभार सौंप कर निश्चिन्त होनको प्रतिक्षा है।