पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६६०

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६७५ वर्धापक-वर्मन है। पीछे नागपुर, पर्दा तथा चन्दा जिलेको मोमासे वर्द्धित ( स० लि. ) वृध तृण। यई बहानेाला। होठी हुर पव दरार तथा निजामराज्यको विच्छिन | यदि (स.नि.) पद्ध'नशील, पढनेवाला। करतो यह नदी मन्द गतिसे दक्षिण पूर्वकी ओर ११० वहिष्णु ( स० वि०) पचन इति च ( अननिति । पा मोर अग्रसर हो कर मक्षा० २१ ५० ३० एय देशा० ३३२१३६ ) इति च । यद्ध नशीट, बढनेवाला। ७८ २४ पूल बेनग गामें जा मिली है। इसके बाद चन्दाद (स.हो. )पईते दोनोमवतीति गृध ( वृधिपियां से उत्तर प्रायः २४ मोठ बल पर घेनग गामे मिलतो रन् । उया २२२७) इति रन् । चम, चमडा साल। है। तत्पश्गत् 'प्राणहिता' नाम धारण पर इठलातो | वद्धिषा (स० स्त्री) यदी दखो। इतराती गोदारोम पतित होती है। इस नदामें जल चद्धी (स० सा०) २ नमरज्जु चमडे की रस्सी बद्धी। इतना कम रहना है कि, रोग इमर्म उतर कर मासा | २५ प्रकारका आभूरण जिसे बद्धी कहते हैं। नोसे पार हो जाने हैं। रितु याढी समय अगम्य | Rधम (म० पु०) मनपृद्धि रोग यात उतरनेशा रोग। २ परमे परिपूर्ण हो कर यह नदी भोरण माचार | वह फोडा जो जायके मूल सरि म्यानमें लि आता धारण करता है। उस समय इमको गति इतनी है। यह फोडा कठिन होता है । इसके रोगीको घर माता सीन हो जाती है कि, इसके नलपराहमें असख्य नाय शोर यह मुस्त पड़ा रहता है इसे बद भी रहते हैं। जन्तु बह जाते हैं। घ दा निकटवत्ती सोइत प्रामके | वसम् ( स० को०) घृणात सपृह भवतीति (नन समीप इस नदीको धाराम एक प्रसिद्ध लप्रपात है। शीभ्यास्वरूपातयो पुर च । उप्प . )ति मातुन पुडा यकाल में इस स्थान पर इस नदाका जल ८० गज गमश्च । १ रूप ! • स्तोत्र। (क १।१४०।५) 'य चौहा हो कर एक सुदोष साइमें पतित होता है। स्तोत्र' (सायप्प) इस समय जलो मासित फेनराशि अपूर्ण सौन्दर्यको यपास (म. हो. ) यस देखो । देख कर मा उदी हो जाता हैं । आश्विन मासके शेर धर्म स पु०) वमन देवा। कालमें इम जलप्रपानका दर ३नते ही बनता है। वर्म (म पु० ) १ महाभारत के अनुसार ए पापा फूटगावक निर इम नदो पर एक लोहेका पुर) नाम। इसे ब्रह्मदेश या वरमा कहते हैं। ब्रह्मदेश देखा। है। यह पुल ६. फोट चौड़ा है पर लोहेके १८, २ उस जापदका याशिन्दा। गारक योग दाशय इनिर्मित स्तम्मोंके । यसएट (स.पु.) पर्यटक, पित्तपापहा । कपर सुरक्षित है। वर्धा नदीप्रवाहित उपत्यकाभूमिर्म | यसपा (म. स्त्री०) यर्ग पतीति कप मच टप् । रूह बड्डन पैदा होता है। नदी किनारे स्पन स्थान मप्तला, सातला। पर देवमन्दिर, समाधिस्तम्म तथा मुसामान साधुओं यगण (सपु.) नागरडग्य नोरग का पेड़। पन स्त्री नाती हैं। देउपाढा नामक स्थान में प्रतिपय | वर्मन् (म. का. ) वृणोति माच्छादपति शरीरमिति अप्रहायण मासमं एक बड़ा मेला लगता है। इस मेदेमे | मनिन् । । तनुन तनुत्राण, पर, यवतर। प्राय तीन सप्ताह तक लोग ठहरते हैं। बहुत प्राचीन काल से ही भारतमें परचमनोकी पर्दापक (स.त्रि०)१ कर्णध समयको क्रिया करन रोति चली आती है। इस यातको पहन कर ही धाला।२ उक्त उत्समें प्रदत्त उपहारादि। आय योद्धागण मन के कराल पाणमे आत्म रक्षा पर्दापन (स० शो०) १ गाडीच्छेदन, कण्वेध वनडेदन करते थे। महिना ६मएडल ७५ सूतये प्रथम २महाराष्ट्र देशर्म अभ्यनादि क्रिया जो किमी पुरुषको मर्म रिक्षा है, समास उपस्थित होने पर ( यह राजा) जन्मतिथिको की जाती है। जब म पहन कर रणक्षेत्र चले तब नीमूतकी तरह उनका पदित (१०नि०) वृध-त । १ प्रसूत, उत्पादक | २टिन, रूप हुमा। हे राजन् । तुम अरिद गरीरमे जय प्राप्त परा हुमा । ३ पूर्ण । ४ दिनापित, बदा हुआ। परो। यमकी रद्द मदिमा तुम्हारी रक्षा परे। फिर