पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६६४

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६७६ हिरणमय, बुध, मद्राश्व तथा पैतुमाल । अग्नाधफे पे घपके पूर्व तथा पश्चिमको ओर यथाक्रमसे माल्यरान् सष लडके माता अनुग्रह म्वगाता हो दूढदेह तथा तथा गधमादन पयत मयस्थित हैं। ये दोनों पर्वन उत्तर पलशाली हो गये। पानीध्रने इन पुत्रोंके बीच यथा मनील तथा दक्षिण में मिषध पर्वत तक लम्बे एन दो समय पर पृप्तीका हिस्सा लगा दिया। उन पुत्रोंने ! सहन योजन चौडे हैं। ये दोनों पचत ही यथाक्रमसे विभागक्रममे अपने अपने रामानुमार हो जम्पद्वीप | पतुमाल तथा भद्गाश्वरपके सीमापर्पत हैं। एक एक एपको अधिकार कर लिया। उक्त उपाधि सुमेरुक चारो ओर मदर, मेकम दर, सुपार्श तथा पतियों की पत्नियों के नाम यथानमन मेरुदेवी प्रतिरूपा, कुमुद नामक चार अपएम्म पर्शत विद्यमान हैं। इन सब उप्रष्ट्रा, लता, रम्या, श्यामा, नारा, भद्रा तथा ददोधिति पगतोम प्रत्येकको भायत तथा अचाइ दाजार योजन पे सदरमणिया मेरुकी याये थीं। हैं। उक्त चारा पतिके मध्य पून तथा पश्चिमके पर्गत द्वापोंक मध्य जम्य द्वीप ही सबसे पहला डोप है। दक्षिणोत्तरमें विस्तृत है पर दक्षिणोत्तरके पर्वत पूर्ण इसकी लम्याइ नियुत योनन और चौडाइ लाखयोजन पश्चिमम पैले हुए हैं । उक्त चार पतोंके ऊपर यथाक्रम है। इस द्वीपम द वर्ग हैं। इन घरों में मध्य मद्राश्य तथा स आम, जामुन, कदम्ब तथा वट पे चार वृक्ष नजर मात फतुमाल वर्षों के अतिरिक्त दूसरे प्रत्येक का विस्तार है। इन सव वृक्षांका विस्तार सौ योजन है। दे पात्य सहस्र योजन है। ये यो पट मोमा पवतोम विमत पतासरूप ग्यारह सौ योजाऊचे हैं। उनसरी शाखाप उमो तरहसे सी योजन तक पैलो हुइ हैं। उक्त इन सब वर्षों में इलाइन या सव यान है । उस चारों घृक्षोर निकट चार सुदर तालाव हैं। आप मध्य के मध्यभागमें पर्वत पुर के राजा रणमय सुमेरूगिरि पर्म दुर रजट दूसरेम मधुरजल, तीसरे दस रसाल विराजमान है। इस समेहका नाइ द्वापोंका चौडा पव चौथेमें शुद्धजल है। इन चारों तालायका जल अति के बराबर एक ठाव योजन है। उसका विस्तार मनोहर है। उपदेयान इन सब तालायोका नल सेवन मस्तककी ओर द्वानि शन् सहन योजन पर जहम सहस्त्र परफ स्वाभाविक महिमा प्राप्त की है। इन स्थानोर्म योजन है । भूमिक मध्यभागम भी उतने ही सहस्त्र योजन उहि खित चारो तालाबोक अतिरिक्त चार उद्यान भो का फैलाप देखा जाता है। है। उनक नाम दिन, चित्ररथ, पैनाज तथा सहनो ___इलायत के उत्तर मागर्म उत्तरादि दिगाक्रमसे भद्रा क्रमश: नोल, शेत, गृहमान ये तान पर्वत है । ये ताना इन सब उद्यानार्म देवता लोग सुरसुदरीके साथ यधारमसे एमक, हिरण्मय तथा कुरु नामक तान वर्षो । विहार करते है। इस तरह विहार करतक समय गर्ग क सीमापर्वतस्परूप है। उक्त तोना पर्यत पूर्वको लोग इनका गुणगान करते है । गोर अधि पैल हुए है । इनव दोनों पायोंमें सारसमुद्र मदर पगत पर एम देवच्युत नामक प क्ष है। लहरा रहा है। इनका फैलाव दो सहन योजन है। मप्र , उमकी ऊचाइ ग्यारह मी योजन है। इस क्षकी डालियों स्थित पतसे परयती पर्वत पचल एकादश म श लम्बाई से नियमित परिमाणस अमृतफल टपकते ६ । घे फल में कम है। पातको चट्टानका तरह बहुत बडे पहाते है । जब वे इसी तरहसे इलाइनवर्षये दक्षिणमं निषध, हेमकूट | पल पनि पर गिर कर पट जाते हैं, तब जाके भीतर और हिमालय नामक तीन पयत विद्यमान हैं। इन तीनों | एक प्रकारका मीठा सुगन्ध निरल फर दूर दूर ता फेल पर्वतीको भायत उलिखित नोठि पचतीक समान है जाती है जिससे यह स्थान सुग धमय हो जाता है। उन और इन तीनों प्रत्येक तीन सहन योजन ऊचा है। फले सुगधित अरुणरससे एक धारा यह मिली है। उत तीनों पयंत यधानमसे हरिचप, किम्पुरूप वर्ष एच | इस नदीका नाम अरुणोदा है। यह नदो म र पातक मारतयके सीमापयत है। इस तरहसे उt इलायत | शिप्परसे होती हुइ पूरी भोर इलामृत यको सींचता