पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८१ गोत्र कहते हैं। दूसरे मरे पाठों वर्ग म्वोय | जो पुरुष भूल पर यदा भात है, घे नौ रूपर्म परिणत हो गों पुष्पकार उपभोग करनेक म्य न हैं। जाते हैं। इस वर्ष में भगवान् भयको सेगा भवानी जम्माप भारत अतिरिक्त अन्यान्य माठौं चरों में तथा उनके अधीन पदुसख्यक नियां किया करता है। जो पुषय वाम करते है, उनकी पुरष परिमाणम अयुत । भद्राश्य यप में घमपुत्र मद्रथया नाम वर्षपत्ति एय या परमायु, अयुग तोके तुल्य 4 पर यनयम् उनके प्रधान प्रधान सेवकोंका वास है। पे लोग भग मुदत शरोर गठन होता। उना गरार इस तरह पान् हयप्रोष मूर्तिकी भाराधना करते हैं। पठ योग तथा आनन्दम परिपूर्ण र उनके द्वारा हरियपमें भगवान नृसिह मूत्तिम मस्थित है । परम महासुन प्यापारमे रखोपुर अत्पन्न आनन्दित होते है । भक्त प्रहाद इस वषयासो प्रजाओं के साथ गत्यात भकि पय मम्मोग न ग आयु शप रहने पर उनको से उनकी उपासना करते हैं। स्त्रियां मिपाएर पार गर्म धारण करता है। इस तरहसे तुमाल व भगगन काम करने निराममान है। विषम मुसका उन्नतिके कारण इन सब चर्या के लोग लक्ष्मो सवत्सा पर उनकी कन्या रानपभिमानिनी देवता लेतायुगकी तरह अत्यत आमोदप्रमोटर्म जाधन तथा उन पुत्र दिवसाभिमानी देयोंका प्रियसाधन दी विताने हैं। उनको इच्छा है। उन सर दिवमामिमानो देयोती इन सब यों में देशाधिपतिगण अपने मपने भनुपर सख्या ३३६ सदन है। इस यपफ मधिपति महापुर A परिचारको पे द्वारा पूजित होने हैं। घेडा के चारोजम नियसामिमानिती न्यामोंके मन उद्विग्न नुमार साप्रमो में पर गिरिगहर तथा ममल जायादिमें होते हैं उसमे उनक गर्म न होकर सवत्सरफे मत्तमें प्राधा करपे समय बिताते हैं। यहागे सुरसुन्दरियो की पतित हो जाते हैं। पाहा तथा अन्याय कामोग्मादिनियों के मक्लिाम ) स्यायर्प अधिपति मनु हैं। भगवान उन्हे मत्स्य दाम्प पय ठालालित णिनिक्षेपस यहाके पुरुपोका चित्त तशात्र आएष्ट हो पाने हैं मूत्तिमे दर्शन देन हैं। मनु अमो भी अत्यन्त भनिसे इन सब आश्रमायतों में जिन पुस्पोक विहार) उसी मूर्शिका उपामना करत है। । परोको पात निधी गइ है उनी गोमा अवणीं। हिरण्मय या भगरान हरि धर्मशारीर धारण करके पाके वृक्षो। शायामशाखा ममा मृनुओं में पुष्प पिचमान है। पितृगणके अधिपनि अयंमा इस प्रर्ष फलि फली तथा नपे पलपक बोम्स मुही रहती है। यासी प्रजामो साथ निरन्तर उनकी उपासना करते है। 37 नाबामो पर बहुत मा ताप महलहा रही है। उत्तर पुरवर्षमें भगवान PRपुगर दो घराहमत्ति किरायदा जलाया की शोभा देख घर आँखे तृप्त नहीं धारण करक यिराममान है। देयापृष्यी कुरुगण साथ होतीन प सुमिष्ट सरिल के मध्य TT कमल मत्यरत मनिस उनकी पूजा करती हैं। विमुरुपवर्ष में यिल, उनक गीय मौरमस यह स्थान सुमपूर्ण परम भत हनुमान इस यपयासी प्रजामोंके सापभगवान् हो उठता है। रामहम जरभट तथा कार दर प्रति धीरामवन्द्रजाकी उपासना करते है। पनि कमलाप एव प्रमरीका मधुर म कारस यहा (मागयत ५ स्कन्ध १ १६ म०) बिग बरोराले शधिपतियो के मन मनायाममय जम्बूद्रापस्थ परिमार्गाशक्षिप्त विवरण पूर्णम छा गाते। पिया गया। भय मागरत मतातुमार भन्याग्य बोपस्प ___उल्लिवित नयो घों में भगवान् नारायण वयिमार्गोषिप्त वृत्तान्त वर्णन किया जाता है। प्रिभि मूर्तियो में गिराम न है। उन इलायत जम्बूद्वापर वाद सोर। राप सम्योप परम भगगन भय' हा एकमात्र पुग्प हैं। यहा मौर। पारामपेक्षा दो गुणा दहादा हम दोपौ ए सुराणमय पोरापुर न रणयाको रक्षक्ष है। प्रिययतये द्विताय पुत्र इध्मनियम नीप भपानी पापमै शान ये भी गौं पाते।' प राजा है। उन्होन म दापको मान भागों में विमग ____lot U 11