वर्षकरी-वर्षमवेश
चषकरी (म० स्ना० ) वर्ग सत्सूचन रवेण करोतीति वर्ण | पाठात् वर्षण प समायो थेपा ते पनिर्णितो
हद साप मिल्लिका, मोंगुर।
| वर्षका । (ऋष ३।२६।४ सायण)
यपामन ( स० पी० ) १ वर्गणकार्य 1 २ पत्सरफ्त्य ।। वर्षप (म पु० ) वर्षपति धर्मफे अधिपति प्रह।
पशम ( स० पु.) श्रृष्टि प्रानाकारी, टिकी कामना अर्षपति (स.पु. ) यस्य पति । १ वर्षय अधिपति ।
करनवाला
वर्षप्रवेश होने पर पोहा कोइ प्रद उस वका
चषकामेष्टि (स० पु०) एक यज्ञ जो वर्षाक लिपे किया जाता अधिपति या राना माना जाता है। किस प्रहफे माधि
था । (माश्व० श्रौ० २११३१)
पत्यमें शेन वप कैसा फलप्रद होगा इसका विस्तृत
वर्षकाला ( स० स्त्री० ) जार, जोरा।
विवरण चर्याधिप शब्दमें देखो। २ वर्गशिपति रानगण।
पत्य (स.पु० ) वत्सरमें भाचरणीय शास्त्रविहिन पृथ्वा सात द्वीपों में विभक्त हैं। इन सब द्वीपोंभू
कार्य आदि।
रिमाग भिन्न भिन्न नामोसे बहुत वर्षों से परिचित है
पर्षकेतु (स० पु० ) वर्षस्य श्रृष्ट पतुरिय सति वर्षे | तथा इन सघ वर्षों के अधिपति पति कहलात है।
भूरिश उत्पनत्वादस्य तथात्व । १रक पुनावा लाल
या देखा।
गदहपूरना । २ अलवंशीय फेतुमालका पुत्र । चापद (सक्का० ) पञ्जिका।
(रिख श ३२४०) यापर्यत (स.पु०) वाण भारतादीना विभाजक
पर्णकोप (स.पु.) वर्षस्य घत्सरस्य कोप इस स पनन , मध्यपदलोपा ममास । वर्षनिमाजक गिरि ।
वर्णज्ञानवत्वात् तथात्वमस्य । १ देवा, ज्योतिपो। चपपारिन (स.पु०) वय वर्षावाले पाशोऽस्याम्तीति
२ माप ।
| वर्षपान इमि । आनातक, आमडा ।
वर्णगाठ (दि. सी०) यह छन्त्य जो किमी पुरुपक जम यर्पपुरुष (म. पु०) पृथ्वीको यावतीय वप पासी
दिन पर दिया जाता है। बरसगांठ देखो।
घिमिनधणाकी प्रजा।
पर्णगिरि (म. पु. ) व पर्वत । ष शब्द देखो। (भागवत ५ स्कन्ध १८, २४ २६, २० और २२ भध्याय)
वगन ( स० पु०)१महो। वह योग जिससे घर्षा नए | वर्षपुष्प (स.पु.) भ्यक्तिका नाम । (सस्कारको०)
हो जाती है ।२ परन।
वपुष्पा (संखी) वर्षे वर्षणले पुर यस्या ।
वपन (म० नि०) वर्गत् जातमिति जन३ । १ एिजात | मददयो लता। विस्तृत विरण सहदयी मा दमें देखा।
२ वत्सरजात, जम्यद्वीपज्ञात । ३ द्वापाशज्ञात । ४ मेघ घप प्रवेश (स.पु०) वर्षस्य प्रवेशः। नीलकण्ठनाजिर
के अनुमार एक गणना। इस गण द्वारा का
घर्षण (स० लो०) वृष ल्युर । १ घृष्टि, घरसना । २ वर्षों । प्रवेश स्थिर दिया जाता। जातक्ने जिस लग्नमें जम
पल।
लिया है, दूसरे वर्ष अब उसका वर्ष पूर्व हा पर गये
वाणि ( स०सी०) घुप अग्नि। १ घर्तन 10 प्रति। ३ वर्ष मारम्म हुमा, वह इसरे द्वारा सहजम नाना
कनु।४ चपण, वरसना।
जाना है।
अपघर (स० पु०) १ मेघ, बादल । २ अन्तःपुररक्षक, नपु ___यणप्रयेश द्वारा जातक का शुभाशुभ फर निर्णय
मक सोजा।
किया जाता है, वर्ष प्रवेश रम्न स्थिर एक बार महिनों.
यधर्ष (स.पु.) अरत पुर-रक्षक, पोजा।
मस क्सि महिने में शुभाशुभ क्या फल होगा यह इसके
पप धार (स. ) नागासुरमेद ।
द्वारा अच्छी तरह बोध होता है। ताजिम व प्रवेश
यधाराधर (स.पु०) मेघ, बादल ।
की प्रणाली इस प्रकार दी हुई है।
वर्षनिणि ज् (स.नि.) वर्पणकारी, वर्षा करनेया। जमके समय रवि जिस राशिक नितने अगोम
'निणि काम्दो रूपयाची निणि ग्यविरिति तन्नामसु | भयस्थिति परत है, पुन रवि जिस समय उस राशि
जात।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६६८
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
