पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६७१

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वपप्रधेश एक उदाहरण दिया जाता है। उदाहरण १७५३, इस तरह प्रतिवत्सर जन्मलग्नका संचार होता है, शाकको ७वीं आश्विन बृहस्पतिवार १७३५ पलके समय इसलिये जन्मरागिसे ग्रहगोचरका फल विचार किया धनुग्निमे किसी व्यक्तिका जन्म हुआ। १८०४ शारको जाता है। अभी इस संचालिन लग्न और वर्णनग्नसे अनी आश्विनने ५१ वर्ण अतिकम कर जिस व्यक्तिने ५२ जैग्ने वास्तरित शुभाशुभ फल निणीत होता है, वह वर्षामे पदार्पण किया था, वर्ष तालिका इस अतीत ५१ बहुत स क्षेपमे नीचे लिखा जाता है। वर के सन्दर- ___प्रागण जन्मयालमे शुभ धो कर वर्णप्रवेशकाल में बार, दण्ड, पल, विपल, अनुपल, भी शुभ होने शुभफलकी अधिकता होती है ; किन्तु ५० वर्ष-६ ५६ ५ १०१० जन्मपालमे शुभ हो कर वर्गप्रवेशवालमें अशुभ होनेसे १ वर्ष-॥ १५॥ ३१॥ ३१॥ २४ चके प्रथमा में शुभ तथा शेषा में अशुभ होता है और यदि जन्मकालो अशुभ हो कर वर्षप्रवेशकालमै ___५१ वर्ष-८ ११॥ ४७ ४१॥ २४ होता है। शुभ होता है, तो वर्ष के प्रथमाई में अशुभ तथा शेपार्द्ध में । ____ उसमें उसका 'जन्मवार और दण्डादि ५११३५ शुभ हुआ करता है। जोडनेसे १३ वार, २६ दण्ड, २२ पल, ४१ चिपल, २४ चपलग्न, जन्मलग्न, संचालिन जन्मलग्न और जन्म अनुपल होता है। किन्तु वारका अंक सातप्ले अधिक राशि शुभप्रहका योग या दृष्टि रहने अथवा उनके है, इसलिये इस अंकको ने भाग दिये जाने पर ६ वाकी अधिपति प्रगण शुभग्रहात हो कर शुभयुक्त या दृष्ट वचता है। सुतरा ७वी आश्विन शुक्रवार २६ दण्ड, २२ होनेसे उस वर्गम तरह तरहका सुप्त होता है। पल, ४१ विपल, २४ अनुपल मसयमें उसका चर्पप्रवेश जगलग्न या जन्मराशिम अष्टम रागिने अथवा हुआ था। इस समय गणना करके देखनेसे पता चलता जन्मकार में जिस राशिम शनि कि वा मङ्गल था, उम है कि उस समय मोन राशिका पूर्व ओर उदय हुआ है. रागिरी, वर्ष लग्न किंवा संचालित जन्मलग्न होनेसे सतपय यही मोनराशि वर्ष लग्न है। उस वर्णमे विशेषतः इस लग्नमें यदि पापनाका योग या ___पूर्व ही कह माघे हैं, कि उक्त समयमे इस घ्यक्तिने | दृष्टि रहे तो मानव पीडायुक्त और विपदापर होता है। ५१ वर्ष पार कर ५२ वर्ष में कदम बढाया था। उसका ____ जन्मकालोन अष्टमरथ पापत्रह वर्णलग्नमें रहनेले जन्मफल धनु, ५१ राशि हटानेले शेष कुम्भ होता है तथा विशेष अशुभफल होना है। यदि वर्गप्रवेशके थोडे उसके बादको राशिमोन अतएव ५२ वर्ष के आरम्भमें दिन पहले या पीछे पापग्रहगण वक्र हो तथा वर्गलग्नमें पूर्वोक्त नियमानुसार मीन राशिमें उसका जन्मलग्न पापग्रहका योग या दृष्टि रहे, तो उस वर्गमे नाना सञ्चार हुआ था। किन्तु १८०४ शकाब्दके आश्विन प्रकारवा कष्ट और व्याधि होती है। महीनेमे वृहस्पति अतिचारी हो कर मिथुन राशिमें था, वर्गप्रवेशकालमे चन्द्र जन्मराशिमें जन्मनक्षत्रयुक्त इसलिये इस भाति जन्मलग्न संचालन करनेसे गणनामें हो कर वर्णलग्नके चतुर्थ, पष्ठ, सप्तम, अष्टम किंवा द्वादश व्यक्ति कम होता है। यहां सूक्ष्म गणनाकी आवश्यकता प्रहदो छोड अन्य ग्रहमें अबस्थान करनेसे तथा उसके है। इस व्यक्ति जन्मकालमें बृहस्पति मकरके प्रायः प्रति शुभग्रहका दृष्टि रहनेसे उस वर्ण विविध शुभफल २२ अंशमें उपस्थित था तथा उसका जन्मलग्नस्फुट होता है। नचेन् विपरोन फल होता है। वर्णलग्नाधिपति, ८।११।५० अर्थात् वृहस्पतिसे दक्षिणावर्त के जन्मलग्नका जन्मलग्नाधिपति, संचालित जन्मलग्नाधिपति और जन्म- प्रायः ४० अशको अन्तर था। उसके वर्णप्रवेशकालमें शालीन वलवान् ग्रहोंके वर्ण प्रवेशकालमे नीचस्थ अथवा वृहरूपतिका स्फुट २२८१४० था, अतएव वहासे दक्षिणा- दुर्ग होने रोग, शोक और अर्थ नाश होता है। चत ४० अग अन्तरमे अर्थात् मेषराशिके २७ अशमें | ___ वर्षप्रवेशकालमे धनुर्लग्न शुभग्रहयुक्त वा दृष्ट होनेसे मिलग्न सचालित था। . धनागम, विन्तु पापग्रहयुक्त वा दृष्ट होनेसे धननाश होता