पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६७५

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वर्षाकाल-वर्षाधिप जातो, अदम्ब देत, मांजानिल, निन्नगा तथा हलिप्रीति करनेमें अधिक समर्थ नहीं होतीं। शीतकाल में भी इन सबोंका वर्णन भी करना होता है। सूर्य अपनी प्रखर किरणोंमे दिगदिगन्तको तप्त कर नग्नते ____ यह शब्द सदा बहुवचनान्त है। 'टारादेनित्यं इस हैं। पर्वनोपम मेघराशिमे अधिक वर्षा नहीं होती। सूत्रके अनुसार दार, अप, वर्षा घे तीन शब्द मर्चदा ही आयाणमे टिमटिमानेवाले तारागण, यहां तक कि, ताराके वहुवचन होते है। इन सब शन्दोंके मागे एकवचन वा पनि चन्द्रदेव भी दोमिहीन हो जाते हैं। गो नया तपस्वी द्विवचन नहीं होता। विपादग्रस्त होते हैं। हमनी, अश्य, पदानि प्रभृति वल. ___२ पानी बरसनेकी क्रिया या भाव, वृष्टि। वाहनों के साथ नरपतिगण अनुचर सचर ममभिव्या. वर्षाकाल ( स० पु०) वामृतु, वरसात । हास्ने वरत वाण, धनप तथा तलवार प्रति अस्त्र शस्त्र वर्षाकालीन ( स० ति०) वर्षासमयोपयोगी, वरमातके । ले कर देश ध्वंस करने को तैयार हो जाते है । लायक चन्द्रमाके वर्षाधिप होने पर पर्वतोपम मेघरागि, कृष्ण वर्षागम (म० पु० ) वर्षारम्भ, वर्षा ऋतुका आगमन ।। सर्प, जल, चमर वा महिप के समान कृष्णवर्ण हो कर वाघोप ( स० पु० ) वासु घोपो महान् शब्दोऽस्य 1: आकाशमंडल को आच्छादित कर देती है। निर्मल सहामण्डूक। । जलमे पृथ्वो परिपूरित हा जाता है। सरोवरसमूह पद्म, वर्षाङ्ग (स पु०) वर्षम्य वत्सरस्य अनामिव अभिधानात् : उत्पल तथा कुमुद पुष्पोंसे जगमगा उठने है। उद्यानोंमें पुंस्त्वम् । मास, महाना। पुष्पवृक्षकी शाम्बाए फूलोंके भारसे झूम जाता हैं, उन चर्पाङ्गी (म० स्त्रो० ) वासु अद्यस्याः तत्र जाताद र. कुमुमों सौरभन्ने भ्रमरममुदाय मदमत हो कर वाणा. दर्शनात् तस्यास्तथात्वम्। पुनर्नवा । विनिन्दित स्वरमे गान प्रारम्भ करने है, उनका मधुर वर्षाचर ( स० त्रि०) वर्षामे विचरण करनेवाला ।। म कारसे दिशाए गूज उठती हैं। गो स्तनासे दुग्धको 'वर्षाचरोऽम्नु भृतकः' ( भारत १३ पर्व ) धारा वहने लगता है। सुन्दरा रूपवनसम्पन्ना वर्षाज्य ( स० त्रि०) वर्षात्पन्न घृतमम्बन्धी। कामिनियां अन्यन्त अनुगगने सपने पतिके साय विहार (वय १२।१।४७ ) करती है। पृथ्वी गाधूम, शाल, यब, उत्तम धान्य तथा वर्षानि (म० वि० ) १ वर्षाकाल-सम्बन्धी । (पु०) २ इक्ष से परिपूर्ण हो कर अनेकों नगर तथा मन्दिरोंसे सुनो. वह वस्त्र जो वर्षाकाल में पहना जाता है। ३ वह रोग ! भित होता है, उस समय चारों ओर होमकी ध्वान युनाई जो वादे कारण गाय और घोड़े का होता है। पडती है। नरपतिगण तन्मय हो कर अपनी प्रजाओंका वर्षाधिप (सं० पु० ) वर्षाणामधिपः ६ नत्पुरुषः। १ वर्ष लालन पालन करते है। समूहके अधिपति । वर्ष देखो। मंगल वर्षाधिपति होने पर पवनसे अग्नि पैदा हो कर २ वर्षाधिप ग्रहगण। प्रत्येक नव वर्पके बाद एक ग्राम, वन तथा नगर दग्ध करनेको उद्यत होती है, पृथ्नी एक प्रह अधिपति होता है । प्रहानुमार वर्पका फलाफल | पर मर्त्यवर्ग दस्युदलसे आहत हो कर हाहाकार कर स्थिर करना होता है। इस वर्षफे फलाफलके ऊपर हो उठते हैं, पशुकुलका नाश होता है, मेघराशि जलहीन हो पृथ्वीका मगलामंगल निर्भर करता है। जाती है, कहीं भी अधिक चर्पा नहो करती, उपज मारो वराहमिहिरने इस सम्बन्धमे वृहत्संहितामे लिया जाती है। मगलके वर्पमें राजाओंके चित्त प्रजापालनली है,--सूर्य जिस समय वर्षाधिपति, मासाधिपति वा दिना ओर अनुरक्त नहीं होते। घर घरमें पित्तरोगका प्रकोप धिपति होते हैं, उस समय पृथ्वोके प्रत्येक भागमें उपज होने लगता है। सर्प द्वारो वहुतसे लोग फराल कालके कम होती है। वनविभाग वुभुक्ष दष्ट्रिगणसे पूर्ण हो गालमे समा जाते है। इस तरहने प्रजाएं शस्यहीन, उठता है, नदियोकी जलधाराएं शुष्क पड़ जाती हैं, विपन्न तथा उपहत हो उठती हैं। भोपधियोंकी शक्ति द्वास हो जाती है। वे रोग दूर । वुधके वर्षाधिपति होनेसे माया, इन्द्रजाल तथा