पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६८५

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चरख-बल्कलदेव दोक्त मैपच्यतत्त्वमें इनके अतिरिक्त और भी कई प्रकारके | यह समुद्रपृष्ठसे प्रायः तीन हजार फोट ऊंची है पेडॉकी छालका रस औषध चा अनुपानरूपमें व्यवहार तथा अक्षा० ३६३० उ० तथा देशा०५४.३० पू० पर फरनेको विधि बताई गई है। Oaks, Rhus, Eucaly- अवस्थित है। यहां नाना प्रकारका खनिज मणिरत्न ptus तथा बावन्ना (Acacia Arabica) प्रभृति व क्षाको मिलता है। छाल चमडा परिष्कार करनेमें tanning विशेष उपयोगी परिकल (सं० पु०) वत्कोऽस्यास्तीति वल्क इतच । होती हैं । Acacia leucophloco वा सफेद कीकर नामक कण्टक, कांटा। वक्षकी छालसे वर्क चुला कर कार्यमें लाते हैं। इस वकृत (सं० क्ली० ) वल्कल, छाल। Acacia श्रेणीभुक्त अष्ट्रेलियाके mattle वृक्षकी छाल वल्ख ( वालग्न )-अफगान तुर्किस्तानके अन्तर्गत एक मो चमडा परिष्कार करने में काम आती है। एक प्रकारके सुप्राचीन नगर । यह अक्षा० ३६४८ उ० कावुल राज ओक वृक्षको छाल बाजारमें विक्री होती है। धानीसे ३५७ मील उत्तर पश्चिम, कुन्दुजसे १२० मील ____ भोजपत्र नामक और भी जो एक प्रकारके वृक्षको | पश्चिम एव हिराटले ३७० मील उत्तर-पूर्वमें अवस्थित छालका सूक्ष्म अंश देसा जाता है, उसकी भी गिनती है। इस नगरके उत्तर पूर्वमे रक्ष नदी, पूर्वमें कुन्दुज, वल्कलमे हो होती है। उस पर पापग्रहोंकी अशुभ दृष्टि | पश्चिममे खुरासान एा दक्षिण-पश्चिममें हजारा तथा दूर करने के लिये स्तवकवच आदि लिख कर शरीरमें | मेमुनार पर्वतमाला हैं। धारण किया जाता है। प्राचीन शास्त्र प्रत्यादि भी रामायणादि प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में वाल्हीक नाम- मोजपत्र लिखे जाते थे। इस समय इसका विशेष से इस सुविस्तृत नगरका उल्लेख है। उस समय आर्य प्रचार नहीं है। पार, गन प्रभृति भी वल्कलज तन्तुओं हिन्दुओंके साथ वाल्होक-नगरवासियोंका जो घनिष्ठ में गिने जाते हैं। सम्बन्ध था, वह भारतयुद्ध पाठ करनेसे स्पष्ट मालूम वरलक्षेत्र (म० पु०) एक पवित्र स्थानका नाम । ब्रह्माण्ड होता है । पीछे इसी नगरसे भारतमें शकका अभ्युदय पुराण बार अध्यात्म रामायणके अन्तर्गत वल्कलक्षेत्र हुआ था। वाल्हीक तथा शक शब्दोंमे विस्तृत वर्णन देखो। माहात्म्यमे इसका विस्तृत विवरण है। इस जनपदका दक्षिण-पूर्व भाग शोतप्रधान तथा चल्मलयत् (म० वि०) वल्कल अस्त्यर्थे मतुप मस्य वः। पर्वतमय है एवं उत्तर-पश्चिम भाग बालुफापूर्ण होने के बालविशिष्ट, वल्कलधारी। कारण अपेक्षाकृत उणप्रधान तथा समतल है। यहां का सम्बित (रा०नि०) वल्कलाचत । प्रीष्मकालमें अत्यन्त गमी पडती है । यहा उजवेक, अफ- चलाला (ग. लो०) चल्कल-टाप् । १शिलावल्का, गान, मुगल, तुर्क तथा ताजक जातिके लोगोंको संख्या सफेद रंगका एक प्रकारका पत्थर । इसका गुण-शीतल बहुत कम है। कितने लोग छोटे छोटे ग्रामों में श्रेणीवद्ध और शान्तिकारक माना जाता है। २ नेलवल। हो कर वास करते हैं । अनेकों पुरुप गो आदि पशुओंको यत्कलिन ( रां० पु०) श्वेत लोध्रपृक्ष, सफेद लोधका एक स्थानसे दूसरे स्थानमें ले जा कर चराते हैं। इन पंड। (नि.)२ बालधारी, वल्कल या पेडको छाल | लोगोंका परिवार भी इन लोगोंके साथ ही रहता है। पहननेवाला । उजवेक जातिके लोग सरलचित्त, साधु प्रकृति एवं दयालु वल्कलोध्र (पु० ) वल्कप्रधानो लोध्रः। पट्टिका लोध, होते हैं। ताजक लोग शगवी तथा पापरत, दुई, वज्र. पठानी लोध। हृदय एवं भ्रष्टाचारी होते हैं। बल्कयत् (गं० पु० ) यलका मल्कोऽस्त्यस्येति वल्क मतुप वर्तमान वल्ल नगरमे १० हजार अफगान, ५ हजार मारवा1१मरस्त, मछली। (वि०)२वल्कयुक्त। कपचक एवं कितने ही उजवेक, हिन्दू तथा यहृदी लोगों- घलकप-मध्यमारतके मातर्गत एक छोटा हृद। का निवास है। बलख नगर उनना श्रीसम्पन्न नहीं घलकान--काम्याय सागरोगकूलके पूर्वदिकस्थ शैलमाला। है। इस नगरसे थोडी दूर पर २० मील परिधिविशिष्ट