पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६८९

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७०४ वस्मोका सन्तानोत्पत्तिका उपक्रम होता है, तब वे एक काष्ठमय ! देरमें वहा और दो तीन पुत्तिकाप ओ जाती है। उसके प्रकोष्ट तैयार करने में प्रवृत्त होती है। राणी जितने अण्डे बाद झुण्टको झुण्ड पुचिकाएं उस वल्मीकसे बाहर निकल देती ह, वे श्रमजीवी पुत्तिकाएं उन्हें शीघ्र हा उठा कर पडती है। इस तरह जितनी देर तक वल्मीकके ऊपर उसी प्रकोष्ठ मे स्थापन करती हैं। आघात किया जाय, उतनी देर तक सैनिक पुस्तिकाएं भारतमै साधारणतः सन्ध्या समय पंचयुक्त पुत्ति बाहर निकलती रहेंगी। इसके बाद वे मय मिल कर एक काएं उडतो देखी जाती हैं। उन्हें बादल-क्रीडा कहते प्रकारकी आवाज फरती, माघानकारी पर याक्रमण करती है। जिस समय वे भूगर्भस्थ निवास त्याग दल बांध है, आपातकारी बों से चिपट कर दशन करती है पर बादलकी तरह आकाशमार्गसे उडनी, है, उस समय पर उसे दूर नगानेकी यथासाध्य चेष्टा करती हैं। जब काक, वादुर प्रभृति नाना जाति के पनी आ कर उनका वलमोमके ऊपर फिर गाधान नही शेतो, तव चे उसी मक्षण करना थारम्म करते हैं। पंपके नष्ट हो जानेमे जो क्षण वल्मीकके अन्दर घुम जाती हैं। इसके बाद महम्र विशिष्ट पुत्तिकाए पृथ्वी पर गिर जाती हैं वे दूसरे दिन सहस्र श्रमजीवी पुत्तिकाएं बाहर निकल कर बल्मोकके प्रातःकाल काकके उदरस्थ होती है, फही कहीं निशष्ट : भग्न म्यानकी पुनः तैयार करने में प्रवृत्त होती हैं। प्रेणानं लोग उनका सचय फर धीमें भुन कर पाते हैं। आश्चर्यका विषय यह दे, कि लन लक्ष पुत्तिकाएं एक उलिखित पुत्तिका-महियो जिस तरह अवस्यान्तर । साथ ही कार्य करती है, अपच कोई किमीके कार्य में तधा रूपान्तरको प्राप्त होती है, उसे सुनकर विस्मित वाधा नहीं डालती एवं एक क्षण के लिये भो अपने कार्य- हाना पडता है। उस समय उसका शरीर क्रममा फूल से मुस्व नहीं मोडनी । एक पक में निपुत्तिका एक एक घर अन्य पुस्तिकामों के शरीर की अपेक्षा १५०० डेढ हजार श्रमजीवी पुत्तिकाओं के दल साथ रहता है, मालूम अथवा २००० दा हजार गुना बड़ा हो जाना है। उसका पड़ता है, किचे पुत्तिकाएं उन श्रमजीवी पुत्तिकाओं के शरीर उस के स्वामोरे शरीरको अपेक्षा १००० एक हजार ! अध्यक्ष वा प्रहरी-म्बम्प उनके साथ रहती हैं। विशेषत' गुना भारी हो जाता है एव श्रमजीवी पुत्तिकाओंके शरीर- एक पुत्तिका भग्नस्थानके समीप खड़ी रहती है, वह एक का सपेक्षा २०१३० हजार गुना विस्तृत हो जाता है। पक पक बार शब्द करती है और श्रमो पुत्तिकाएं उसी क्षण पण्डितने गणना करके देखा था--एफ पुत्तिका-महिपाने एक प्रकारका ऊँची मावाज करतो नई पहलेको अपेक्षा एक समय ५०६० दण्डम ८०००० अस्सी हजार अण्डे । दृगुने उत्साह से काम आरम्भ करती हैं। दिये थे। प्रसव समय कई एक श्रमजीवी पुत्तियार सेनगेल नामक स्थानके समीपवती किसी किसी उसके पास नियुक्त रहती है। वे उन अएडॉो उठा कर स्थानमें बहुतसे वल्मीक एक साथ देखे जाते हैं, मालूम पूर्वोक्त काष्टमय प्रकोप्टरे मध्य स्थापन करती है। इन पडता है, कि उन म्धानों में एक एक ग्राम वस गया है। सद अण्डोंमे जिनने बच्चे पैदा होते हैं, उन सबका सिंहल, सुमात्रा, तथा बोर्नियो द्वीपोंमें एवं भारतके लालन-पालन श्रमजीवी पुत्तिकाएं करती हैं । उनको किसी किसी स्थानम Termes taprobanes नामक रक्षाके लिये जिस समय जिन चीजों की आवश्यकता होती एक जातीय पुत्तिका देखी जाती है। सिंहलद्वीपमें है, उस समय वे उन चीजोंको ला कर आवश्यकता पूरी T. monoceror श्रेणोको पुत्तिकाएँ वृक्षके कोटरमें वास फरती है । ये सब बच्चे इस प्रकार पल कर शक्ति सम्पन्न करती हैं । भी कभी उस स्थानमें गोखुरा सापका वास तथा धमक्षम होने पर वल्मीयरूप सुरम्य राज्य कार्यमें देखा जाता है । मन्द्राज प्रेसिडेन्सीके वसरपाड नामक नियुक्त होते है। स्थानमें जो वल्मीक देखे जाते हैं, उनमेंसे बहुतोंके अन्दर पण्डितोने प्रत्यक्ष देखा है-यदि किसी प्रकार वल्मीक- बहुसंख्यक विषधर सर्प रहते हैं। किन्सलैंडके उत्तरस्थ का कोई म्यान भंग कर दिया जाय, तो उसी समय सैनिक समार्सेट नगरसे एक मीलकी दरी पर आलवानी गिरि पुत्तिका उस भग्न स्थान पर मा उपस्थित होती है। कुछ संकटके सामने १५ फीट ऊंचे बहुतों वल्मीक विद्यमान ९