पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/६९३

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७.८ वल्लभ-वल्लभता तया नायक। ४ सुलक्षणाकान्त अश्व, सुन्दर लक्षणोंसे युक्त वल्लभगणि-हेमचन्द्रशन अभिधानचिन्तामणिफे सागे- घोड़ा । ५ पति, स्वामी । ६ कृष्णागुरु । ७ राजशिम्वी, एक द्वार तथा शेषसंग्रहकी टीका प्रणेता। पेशानविमलके प्रकारको सेम। शिष्य थे। वल्लभ-१ एक राजा । ये दलपतिराजके पिता थे । २ एक 'वल्लमी-१ हरनश्राद्धके रचयिता। २ नागरखण्डके राजकुमारका नाम । ये सुप्रसिद्ध रूप और सनातन सारश्लोक और अध्यायानुक्रमणि, महाभारताध्याया- गोस्वामोके भाई थे। सनातन देखो। । नुक्रमणि, महाभारतोद तसार तया वृत्तमालाफे मट्टल- वल्लभ-बहुतेरे सुप्रसिद्ध प्रन्थकर्ता-१ वल्लभाचार्य। , यिता। २ एक वैयाकरण। मल्लिनाथ और रायमुकुटन इनका वल्लभजी गोम्वामी-एक प्रसिद्ध पण्डित । मत प्रहण किया है। मोक्षलक्ष्मीविलासके प्रणेता। वल्लभनम ( स० लि. ) अनिशय प्रिय, घटा प्यारा। ४ विहजनवल्लभ नामक ज्योतिर्गन्धके रचयिता । 'वल्लभता (सं० रा०) वरमस्य भावः धर्म चा तल ५ शब्देन्दुओवरटोकाके प्रणेता । इनका प्रकृत नाम था | राप् ' प्रियता, वल्लभका भाव या धर्म । हरिवल्लम् । ६ समपंणगधार्थके रचयिता 1 ७ वधवल्लभ वल्लभतातिया-महाराष्ट्रका एक प्रधान व्यकि। ये सिन्द- नामक प्रन्थकार। राजकं प्रधान अमात्य थे । १७६५ ६०मे पेशवा मधुराव- यल्लभकघृत (सपु० ) हृदरोगमें फायदा पहुचानेवाली । को मृत्यु के बाद पेशवाशी गद्दी के लिये गोलयोग उपस्थित एक प्रकारको औषध । इसके वनानेकी तरकीव-हरीतकी । हुया । इस समय विधवा राजमहिपी यशोदाबाईने दत्तक- ५०, सचल लवण २ पल एकत्र घृतपाक करके सेवन पुत्र प्रहण करनेका सक्ला किया। बल्लभ उसमे वाधा करनेले हल्लास, मूल, उदररोग और वायुनाश होता दे कर मी कुछ कर न सके । अन्तमे उन्होंने १७६६ ई०- है। (भैपन्यरत्नावली हद्रोगाधिका०) के जनवरी मासमे वाजीरावके पडयन्तरे योग दे कर चललभगढ़-वम्बई प्रेसिडेन्मीक वेलगाम जिलान्तर्गत एक उन्हें हो राजा बनाने की व्यवस्था की। किन्तु बाजोराव. गिरिदुर्ग। यह चिकोडीसे १५ मील दक्षिण-पश्चिममें ! के पूना आ र नाना-फडनवाससे साक्षात् करने पर अवस्थित है । शैलशिखर अपरका दुर्गा प्रायः गोला। दोनोंका पूर्वमनोमालिन्य मिट गया एवं कई राजमन्त्रियों- कार ( २७५४२०० ) है तथा कहीं कृतिम और कहीं के सामने बाजीराव पेशवा होनेकी बात पक्को हुई । इस पर्वतगालने इसे प्राचीररूपमें घेर रखा है। उसके दो , सम्मिलनको विशेष आगाप्रद न देख घर वल्लभतातियाने प्रवेशद्वार, चार करने, एक दडा कृआं जो अभी एक्टम दोनोंके गुप्त परामर्ग से विपरीताचरण करनेकी चेष्टा नष्ट हो गया है, मौजूद हैं। मरम्मत न होनेके कारण दुर्ग- की । उन्होंने अपने बुद्धिवलसे चिमनाजी अप्पाको यशोदा भाभी अधिकांश ध्वस होनेका उपक्रम हो गया है। वाईका दत्तत्पुन बतलाया और कौशलस परशुराम बल्लभगढ दुर्ग १६८० ईमें महाराष्ट्रदेशरी शिवाजीके । भावको म त्रो-पद स्वीकार कराया। इसके बाद ये सब मातहतमें था। यह वेगामके १० प्रसिद्ध दुर्गा से एक मिल कर बाजीरावके सर्वनाश-साधनमें प्रवृत्त हुए। है। १७८६ ई०में नेसगोंके सामन्त सरदारने कोल्हापुर नाना फड़नवोश म तो हुए एव परशुरामने राज्य चलाने. राजके विरुद्ध अस्त्र धारण कर उनसे वह भगढ़, गन्धर्व का भार ग्रहण किया । इस समय दौलतराव सिन्दे गढ़ और भीमगढ़ ले लिया; किन्तु कोल्हापुरपतिने राजविद्रोही हो उठे। उनके प्रतिविधानके लिये वल्लभने दूसरे वर्ष ही विद्रोही सामन्तहो हरा कर दुर्ग पुनः अपने | नानाके परामर्शानुसार दोनों पक्षमें मेल करानेकी कब्जे में कर लिया। १७६६ ईमें जय परशुराम माय चेष्टा की। पूनामें रहने थे, नव कोल्हापुरराजके शनु उपरोक्त सर इस समय चिमनाजी अप्पा, बाजीराव तथा नाना दारने फिर बल्लभगढ़-दुर्ग छीन लिया। फडनवीश और परशुराम भावको ले कर महाराष्ट्र सर- वल्लभगणक-गणितलताके प्रणेता। कारमे जो घोर राजविप्लव सूचित हुआ था, वह महाराष्ट्रक