वलियर-वल्लूर
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मादि वडे बडे प्रासादोंसे पूण एक सुन्दर नगर था। यह । यलिशाक्टपोतिका (स० स्रो०) परिप्रधाना शक्ट
थेयासी नदीके तौरवत्ती मालपाडो प्रामसे १ मोल] पोतिका। मूलपोडी ।
पश्चिम तथा चित्तारसे १७ मीट दक्षिण पूर्म अस्थित | पब्लिशरण ( स० पु०) बलिप्रधान शूरण । अत्यम्ल
है। पहले यहा जैनधर्मका बहुत प्रचार था। इसके बाद पर्णी रामना।
शैवगणोंने प्रवल हो कर यहा लिगोपासना प्रभाय ) ययल्ली (स० स्त्री०) लि-टोप् । १ लता । २ फैरत्र्तमुस्ता
फैलाया। उन्होंने पर्वतोपरिस्थ प्राचीन जैनमन्दिर पर धेयरी माथा। ३ वाजमादा। मध्य चह। ५ अग्नि
अधिकार जमा कर उसे सुब्रह्मण्य मन्दिर में परिणत कर दमनी, गोला। ६ कालो अपराजिता।
दिया। पठन पर नियोंको कीर्तिका निदर्शनस्वरूप | वल्लोषर्ण (स० पु० सम विषमालपारि कर्ण।
भनेको मर्शिया तथा गिलालिपिया उत्कीर्ण हैं। मन्दिर |लोषदिर (स० पु०) धारक नामक एक प्रकारका रोर।
को गठननिपुणता देय पर मालूम होता कि ४०४२० । इसका गुण-तिक्त, कटु, उरण, पाय, अस्तरम तथा
फीट परिसरयुक्त पक पर्गत-दराके मध्य यह मन्दिर श्वास कासघ्न और पित्त रक विदोपहर । (वैद्यकनि०)
पनाया गया है। प्रवाद है चौलयशके किसी रोजाने इस पल्लोगड ( स० पु.) लिलारा गड । मत्स्यभेद, एक
मदिरका निर्माण किया था। पतिके दक्षिणाशमें पति | प्रकारको माली । यह लघु रूक्ष मनभिष्य दो घायुकर
बएड कार कर समतल भूमिमें परिणत कर दिया गया और कफनाक मानी गई है।
है। उसके चारों ओर दुर्गका घमावशेष देख कर लोग | यररोज ( स० की. ) त्या लता जायने इति जाद।
कहते हैं कि जैन प्रादुर्भायके समय यहा एक छोटा-सा | मरिच, मिर्च ।
गिरिदुग स्थापित था । मगरये प्रधान रास्ते पूर्ण एक | घरलीपञ्चमूल (स० को०) लतापञ्चमूल। परिभाषाप्रदीप
मुहत् दुर्गका ध्यस्तनिदर्शन आज भी दृष्टिगोचर होता है। क अनुसार यह पञ्चमूल कफ्नाश माना गया है।
पहिल्यर--मन्द्राज प्रसिद्ध सीफ ति नेवरी जिला तर्गत | वल्लोपलाशकन्दा (स० स्त्री०) भूमियुग्माण्ड, भा
एक बडा प्राम। यह नानगुनेरी तालुक्के सदरस ४ कोस पुम्हड़ा।
दक्षिण पश्चिम पव कुमारिका भातरीसे तिनेवली | पल्लीफुल (सं० को०) कटिकादि।
मदर आनेके रास्तेको पश्चिम भोर स्थित है। यहा पल्लीवर ( स० का० ) वटयक्षमेद।
एक पुष्परिणाम बहुतसे पत्थरोंके टुक्त पड़े है। उनका यल्लाबदली ( स० स्त्री०) बल्लारूपा चदरी। भूषदरी,
तिरपनैपुण्य तथा उनमें अद्वित प्रतिकृति प्रभृति पर्यावेक्षण | मोरा येर।
परनेसे अनायास ही मालूम पहता रिये पत्थरके | वल्लीमुद्ग ( स० पु०) वरलीपु जातो मुद् । मुउठक,
टुकड़े जैन मन्दिरके धमावशेष है। उन पत्थरों के मध्य | मोठ।
बहुत मी शिलालि पिया उत्कीर्ण हैं। यहा जो जिनमूर्ति वल्लीवृक्ष (स० पु० ) व लोपत् दीपों पक्ष । शालपक्ष।
पाइ गइ थी, उस विशाप सज्गॅण्ट ले कर रक्षा कर वल्लुर (म.ली.) वल्ल्यत यामियने लतादिनति वल्ल
| पाहल कात् उर। १ कुञ्ज। २ मजरी। ३ क्षेत्र ।
इसक अतिरिक्त यहा पुलशखर पाडेयका स्थापित ! ४ निनल स्थान सूत्री जगह । ५ शाहल हराभरा।
किया हुआ एक बिगार मन्दिर है । यिष्णु तथा सुब्रमण्य । ६ गहन, दुगम स्थान।
मन्दिर भी बहुत प्रामीन है। पाण्डेय राजवश स्थापित पल्लूर ( स० क्ली० ) यल्ल्यने सप्रियते इति बल्ल उर
पि हुए ए सुदृढ दुर्गका ध्वमापशेष अब भी दृष्टि (खर्जिपिधादिम्य ऊरोझचौ। उप्प ४६) तपाद
गोर होता है।
। द्वारा शुभक मास, धूपमं सुखाया हुआ मास| माने
परिलराष्ट्र (सं० पु०) जनपदवासी लोकभेद। दूसरा ऐसा मास खाना निषेध बताया है। -शूरा मास।
नाम मरराष्ट्र।
। ३ यनक्षेत्र, जगल । ४ धौरान, उजाट । ५ ऊपर, ऊसर ।
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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७०२
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