पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७०५

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७३० वाप प्रकार इन सब तोधों का उत्पत्ति हुई, इसका माक्षिम दीका ग्नान रत है, उनका माग पाप दादा परिचय पमपुराण नया स्कन्दपुराणम दिया गया है। जाता है। पद्मपुराणाय तु गाहि-माहात्म्यो लिखा है-अनुर पुर्तगांजोहारा विमलेश्वर प्राचीन मन्दिर लोग बालाटमें ब्राह्मणों ऊपर बहुत अत्याचार करने लिंग यिध्वस्त हो गयेई, अब उनका विमान भी नहीं थे। ब्राह्मण लोग पशुगमकी गरण गये। बामणों की, दीप पदना। इसके पूर्व पथ्यन्त विमलेश्वर कर्णाटक. रक्षा के लिये परशुराम बरलाट प्राग्रे ! सानुग्गा उनके चामियाका एक प्रधान नीबानो नाम प्रामद था , आक्रमण से विहल हो उठे। उन लोगोन नमुग पि,११८३ क ( 0) उकाय चाटुपयशाय कर अपनो आत्मरक्षा को । अनुपनि रिमल तुंगनामर धाकम्मदेव। नाप्रशासन पार करनेसे जाना जाना एक पर्वत ममुद्रम म्यापन पर उसी पर निवास साने कि उस समय भी मिलनाथ ति प्रामामा धीर लगा। वहां वह महादेवको तपस्यामे निम्न मा गिवने कहा लिंगकी पूजा होनी यो। चालुपपराने विलेयर सन्तुष्ट हो पर उसे अमर किया। गित प्रसाद याद' लिंगक उद्देम जानवर नाम, एक प्रामदान किया म्धान नीस्थिान हा गया । विमलने यहां दिश्यलिग था। निर्मल-माहा यहां पहनमे छोटलोटे नाध स्थापित किया, उमीशा नाम तु गेश्वर पहा । सौर युनोचा उल्लंग। पुत्तमीजी, बांधकाग्काल में नु गादि वत्तमान 'तुगार' पर्वत पर वायुसेवन इन मद नीथों सालोप हो गया। उसके बाद मगटा. लिये एक श्रेष्ट तथा प्रमिद म्यान है। इसमें पान हो कर रेलवे लाइन गई है। ने इस धान पर अधिकार का विमलेश्वर मन्दिर ___ पापुराणीय निर्मल माहात्म्यमे लिगा है-असुर । ा पुनः मतार किया पवं लिंगरं. सशान अनाय. पति विमलने तुंग पर्यनस पियोंकि मापसे परशराम: पाचरणाका स्थापित की। उन समय गिनने हा का गुणानुशीर्तन श्रवण किया। अपने शवको प्रशंमा मा िका पुनराधार हुआ। यहाफै अधिवासियोर पिं सुन कर उसे यात क्रोध एया । उमने ऋषियों दवन । हुए धन द्वारा गुरु शकराचार्य स्वामी तयारधान कुपद पर एक बडा-ना पत्थर ला कर दिया। सपियों। । देवसेवाका मर्च चलता था। शंकरम्बामा यहां महान ने महादेवके निकट विमल पर अभियोग चटाया। , मदाने पाया करते थे। इस मन्दिग्के पास हा महाक शिवजीने अपनी प्रतिनि मृत कर विमलको दमन करने प्रथम शंकराचार्यकी समाधि है। यहा नामांक लय के लिये परशुरामको भेजा । परशुराम के नाथ विमल । भोजनालय है। कार्तिक मासफा रक्षकी एकादशा- का भीषण युद्ध हुआ। विमल शिव वरदान अजेय का यदा पक याना वा मेला लगता है। दादर देगा यावालोग इस मेलेमें सम्मिलित होते है। था। विमलका मरता परशराम द्वारा पार बार काटे जाने पर भी उनके धरसे जुट जाता था । अन्त में शिव के परा. शनिदान मनसे परशुरामने परशु द्वारा विमलको परान्त किया। ___यहाका प्राचीन इतिहास अस्पष्ट ।। अनेकनन्दरक विमल सग्राममें पतित हो र परशुगमको स्तुति धरने समयके परियन प्रभृति प्रीक ऐतिहामिण पश्चिम लगा। विमल के नुखसं अपनी स्तुति सुन कर परशगमको भारतका जो ग्मि परिचय दे गये हैं. उसके पढ़नेले दया आई। उन्होंने उसके पतित होने के स्थान पर उसके मान्टूम होता है, कि उस समय यह द्वीप मुराष्ट्र या लाट स्मरणार्थ 'विमलेश्वर' नामक पक शिवलिंगकी स्थापना ! एरियनने लिम्बा ई-प्रोगण अपने की। परशुगमने उसके विमल नामक बदले उसका नाम थमल के बहुत पहलेसे ही कल्याणमें वाणिज्य करने के निर्मल रखा। उसी दिनसे यह क्षेत्र निर्मल नामले लिये माते थे। इतना ही नहीं, किसी किसी ऐतिहासिकों प्रसिद्ध हुया। ने लिखा है, कि प्रोकोंने शालसेटी द्वोपमै सो उपनिधेश निर्मल-माहात्म्यके अष्टम अध्यायमे लिखा है-निर्मल | करनेको चेष्टा को थी। उनका उहे भ्य था दाक्षिणात्य पर शेवक चैतरणी नीमि जो कार्तिक कृष्णपक्षको एका- अधिकार करना एवं उन्होंने सोचा था कि शालसेटोस