पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७१४

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वसन्तपुर-वसन्तराय (राजा) ७३६ वसातपुर-१ पर प्राचीन विशाल जनपदधे अन्तगत एक जद जाते रहते हैं । यह पश्चिम प्रदेशको नामी दवा है। नगर। (भविष्य ब्रह्मग्य०३६।२३)२ मलभूमिके अतर्गत | बस तमालिका (स. स्त्री) छन्दोभेद । एक गएहप्राम। यह यिष्णुपुरके उत्तर उपकण्ठमें भर । यस तयाता (स० सा०) वस तोत्सव । स्थित है। चस तपोध (स.पु.) कामदेव । वसन्तपुष्प ( म०पु०) १ घूलिकदम । (क्लो०)२ वसात | सतराज-एक प्रसिद्ध वैयाकरण । । होंने प्राकृतसजी कालोत्पल कुसुम। वनी नामक प्रास्तप्रकाशका परीमा लियो। पसातवधु (स० पु. ) कामदेय। घस तराजकुमारगिरिके एक राजा । प काटयचेम यस तभानु (स० पु०) राजपुनमेद । मामक पण्डितवरफे प्रतिपालक थे। इनका लिखा सतभैरवा (म. स्त्री०) पक रागिणीका मI घस तरानीय नाट्यशास्त्र नामक एकप्रय मिलता। यस तमण्डल (स० स्रो०) १ सिन्दूर। २ रतपा, मलिनाथने शिशुपालवघटीमें इस प्रथमा उल्लेख लाल कमल। किया है। वमातमहोत्सव (म. पु० ) वसन्तोत्सव । इस दिन , वसन्तराजभट्ट-शकुनार्णव या शाकुनशास्त्रक मणेता। जगत्फे यावतीय देशवासी माप्यसमाज शीनकी जहता होने मिथिलाधीश्वर चद्रदेवके अनुरोधसे यह प्रथ परित्याग पर घसतका आगमन शापनाथ मानन्दसे | रचा। इसके पितारा नाम विजयराज और जेठे भाइका उत्फुल हो इधर उधर घूमते हैं। प्राचीनकालमें हिंदू गियराज था। समाजमें मदनमहोत्सर प्रचलित था। आन कर यह यस तराजाय (सहा०) बस तराजा बनाया हुआ एक घाम्मतिक होलीपर्व पर्यायसित हो गया है रितु यथा | नाट्यशासन। शामें यह श्रीपञ्चमी पूजाके दूसरे दिन ही प्रथम पसतो | वसन्तराय (राजा)-बनके स्वाधीन यगालो-घोर प्रतापा स्सव होता है। इस दिन सभी प्रदेशों में शोतमास दित्यके चचा । यगन कायम्ययुलमें गुदयशमें गुणानदके परित्याग कर शुम्र या यसतो रंगमें रंगा हुआ कपड़े औरससे ये पैदा हुए थे। इनश प्रश्न नाम पानको पइन कर सभी इधर उघर परिभ्रमण करते हैं। गन्दा | पलभ था, कितु पे यसतराय नामसे ही माधारण परि चन माज मा ऐसा दृश्य देखा जाता है। इस दिन चित थे। गुणान के जेडे मनान दके पुत्र विक्रमादित्य पर्व होलीपर्वके दिन रातमें भोजन और मामोदको ज्याददी ही प्रतापके पिता थे। भी नितान्त कम नहीं है। राजपूत नातिके मभ्य | पचपनसे ही विझम और यम तरायर्म घडा सद्गाघ यस तोत्सबके दिन उमा या गौरीकी पूजा और मृगया था। राजम त्री पद पर नियुक्त होने के बाद दोनों भार को रोनि है। मनमहोत्सव देखो। गोडमें रहने लगे। इस समय विक्रमने बाद पा नाम यसतमारू (स. पु०) सम्पूर्ण जातिका एक राग। इसम जागीर पा कर वहा यमुना और इच्छामतीक संगम पर सव शुद्ध सर लगते हैं। नगर और गढन्थापन क्यिा पर यहा पुन और परिवा समालतीरसास एक प्रकारको औषध। | रादिको भेज दिया लेकिन दोनों भाइराजधानी में ही इसके बनानेका तरीका-साना १ भाग, मुना २ भाग, मुनाइम पाके चगाल पर आक्रमण के समय यद्यपि गीह होग३ भाग, मिर्च ४ भाग पर कपूर ८ भाग इन सर्वो चासो राजधानी छोड चल गये, तो भी दोनों भाइ छन् को पहले थोडा मपखनके साथ मईन कर पीछे नीचूके | वैशर्म वहीं ठहरे रहे। दाउदकी मृत्युके बाद टोडरमल रसमें अच्छी तरह घोटे जिसस मपवन एकदम मिर को यगारका राजस्व विषया कागज पत्र समर्पण कर जाय । इस तरह पना कर २ रत्तो परिमाणम मधु और देने पर वे दोनो ही मुगल सरकारके अनुगृहीत हुए। पोपरके चूर्ण के साथ सेवन करे। इसका सेवन करनेसे दिल्लीयरपी मोरस राजा टोडरमाने विक्रमादित्यको जीर्णचर, विषम ज्वर, उदरामय और कास आदि रोग महाराजको एव यस तरायको राजाकी उपाधि मजूर करा