पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७४२ वसन्तरोग भिल्ली आक्रान्त होने पर मूनत्यागके समय बडी ज्वाला प्रभृति कठिन नायविक लक्षण पूर्वकी भांति यत्तमान पैदा होती हैं एवं कभी कभी रक्तस्त्राव अर्थान् हिमेट्यु रहते हैं। यह दात्यन्न सांघातिक होता है । एव इसमें रिया ( Haematuria ) हो जाता है। न थारक्तिम, नाना प्रकार के कठिन उपसर्ग भी उपस्थित होते हैं। मजल, वेदनायुक्त एवं रफीत हो उठता है। रोगीको दाफ्टर कोली ( Colli )का कहना है कि यदि गोटियोंके प्रकाश देखने में कष्ट होता है। कभी कभी रोगीके शरीरसे मध्य मवाद पैदा न हो तथा रोगीले मुखमंदलका एक प्रकारकी दुर्गन्ध निकलनो है। स्फोटक निकल जाने रद्ध मैदेकी तरह दिखाई दे तय सममना चाहिये, कि पर ज्वर कुछ क्म जाता है, किन्तु मवाद पैदा होनेके | यह मांघातिक रोग है। समय फिर शीत तथा कम्पके साथ उपर उपस्थित होने ३ अर्द्ध मयत (Semiconfluent); यह उपरोक्त देखा जाता है। उसे द्वितीय ज्वर या सेकेंडरी फीचर | दोनों प्रकार के कंडओंका मध्यवती है। इसमें गोटियां Secondary Fercr कहते हैं। इस समय ज्यरको सलग अलग, किन्तु वहुत सघन होती हैं। इममें प्राण मात्रा १०४से ले कर १०५ डिगरी तक बढ़ जाती है पर जानेका कोई भय नहीं रहता। वह धीरे धीरे कम जाता है । नाड़ी नेजीसे चलने लगती ४ दलबद्ध ( Cory mhose ) अर्थात् इनमें गुच्छेको है, प्यास बाहुत बढ़ जाती है, जीम तथा मुय सपने तरह गोटियाँ निकलती है। यह नात्यन्त सांघातिक लगता है। रोग कठिन होने पर विकार सभी लक्षण | होता है। उपस्थित हो जाते हैं। ___५ मेलिगनेन्ट ( Malhgnant ) अर्थात् साघातिक । ___ इसके पंडुए नाना प्रकार होने हैं। जैसे-१ डिस इनमें गोटियां देखने में फालो होती है, किन्तु रक्त परि- क्रीट (Discretc) अर्थात् असंयक्त। इसमें प्राण जानेका पूर्ण रहती है। कभी कभी कई स्थानोंसे रक्त वद्दता भय नहीं रहता। इसके लक्षण भयंकर नहीं होते। वो रहता है पब मुखमण्डल में मलिनता . अमिधरता, के दांत निकलनेके समय इस रोगके होने पर कुछ बुराई- प्रलाप, अचेतन्य प्रकृति लक्षण मान रहते हैं। की संभावना रहती है। चमडे में क्षत विगलन या पेटिक दृष्टिगोचर होता है। ___ २ कन्फ्लूपेन्ट ( Confluent ) अर्थात् सलिष्ट ; पंप्युल, भेमीफ्युल किया पष्टियुलकी अवस्थामें गोटि- इसमें पहले शरीरके मध्य बहुलायक छोटे छोटे तथा| योंके मध्य रक्तस्त्राव होने पर यथाक्रमले भेरिखोला, हेम- कुछ ऊचे पैप्युल निकल आते हैं एवं उन्हें गोत्र ही रेजिना, पंप्युलोजा, भेसीफ्युलोजा अथवा पष्टियुलोजा परस्पर मिलते देखा जाता है। मेसिवेल तथा पष्टि प्रभृति नाममे अभिहित होता है। इस प्रकार वमन्त- युल अवस्थामें घे बहुत मिल जाते हैं। गोटियां देखने- रोगाक्रान्त व्यक्तियोंके शरीरले एक प्रकारको दुर्गन्ध में ता छोटी दिन्तु बहुत दूर में फैली हुई एवं जलके निकलती है। मल मूत्रके माय रक्तस्राव होने देखा समान सिरम्, मवाद किंवा रक्तसे परिपूर्ण रहती हैं। जाता है। एवं छठे, सातवें वा गाउवें दिन रोगीकी मस्तक, मुरत्रमंडल एवं कंठमें ही ये अधिक निकलते देखो मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त भेरिओला निना जाती हैं। उनके शुष्क हो जाने पर मुम्बके ऊपर एक ( Variola Xigra ) लेक स्माल पौफ्त (nlack इहाकार शुक चर्मखंड नजर आता है, उसके उड़ जाने smrill pox ) एक अत्यन्त सांघातिक वसन्तरोग है। पर मुख पर कुछ कुछ गहरे बहुत-से दाग दिखाई पड़ते इसकी गोटियां बैंगनी रंगकी मांति अथवा काले दागको हैं। गोटियोंके मध्यवती स्थानमें रेखा नहीं दिखलाई तरह दिगई पडतो हैं। इसमें नेत्रकी श्लैमिक मिल्लीसे पडती। समूचे मुनके चमड़े का रंग कुछ काले रंगकी रक्तस्राव होता है नया कनीनिकाके चारों ओर रक्त आमा लिये हुए लोहेके रंगकी तरह हो जाता है। इकट्ठा हो जाता है। इस रोगमें मृत्यु पर्यन्त मान सम पहला ज्वर आराम नहीं होता किंवा दूसरे ज्वरका रहता है। तृतीय वा पांचवें दिन रोगीकी मृत्यु विशेष रूपसे विकाश नहीं होता। अस्थिरता, प्रलाप | हो जाती है।