पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७२१

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७४६ वसन्तरोग मध्य लिम्फ किचित् गाढ़ा मालूम पड़ता है। अणुवी-1 गांवोंकी देहर्स निकाले गये लिम्फ द्वारा टोका देनते अणयन्त्र द्वारा देखनेसे उनके अन्दर सचल पदार्थ दृष्टि प्रायः शरीरमें पाटनिका, शैवालिका, वा रसपूर्ण गोटियां गोवर होते हैं । उले डाक्टर बिल (Dr Beale ) ने बाहर निकलते देखो जाती है। इस अवस्थाम ज्वर व्योप्लाजम रुद्र कर उल्लेख किया है। दो दिनों तक निवारणार्थ १ दाम कप्टर आयल तथा सामान्य धर्म- एरिटोला ( Areola ) बढ़ना रहता है पत्र उमका व्यास! कारक औषध देनी चाहिये । हायोंके प्रदाह निवारण से इच पय॑न्त बढ़ता है । क्रमसे इसके चारों योरका करने के लिये आई वस्त्रखड, गोलार्डस, लोपण वा म्यान स्फीत तथा दृढ़ हो जाता है । १. दिनके बाद कोल्डक्रिम् अथवा चन्दन लेपन करना चाहिये। फाटक क्रमशः शुष्क पड जाते हैं एवं सव इकटे हो पुनटीका प्रदान ( Rer accination )-टीका देना र चौदह वा पन्द्रह दिनों के मध्य एक वृहत् लोहिताम किंवा असम्पूर्ण होने पर अथवा वसंतरोगके प्रादुर्भाव- छिलका उत्पादन करने है । यह छिलका २१ से २१ दिन के समय फिरसे अंग्रेजी टोका दी जाती है । सभी जगह के मध्य गिर जाता है। टीका देना सफल होने पर चयःप्राप्तिके बाद फिरसे टोका दी जाती है। कोई कोई उसका दाग गोलाकार बनवणं एवं चमडे की अपेक्षा ग्रन्थमार कहते हैं, कि ७ वर्ष तकके भीतर टीका देना किचिन निम्न दिग्नाई देता है। उसका व्यास तृतीयांश उचित है, किन्तु दूसरी बार अच्छी तरह टोका देने इसे कम नहीं होता एवं उसके नीचे मागमे छोटे छोटे पर फिरसे टीका देनेको कोई आवश्यकता नहीं रहती। गर्त दिखाई पड़ते है। इनके अतिरिक्त मध्यस्थलसे ले। पहली बारको टीकाकी गोटियोंसे दूसरी वा तीसरी वार- कर चतुपाश्य पर्यन्त रेखावत् चिन्ह दृष्टिगोचर होता है। की गोटियोंमें बहुत विमिन्नता रहती है । इसका म्फोटक इस प्रकारका दाग रहनेसे टोका सफल होनी है। दाग शीघ्र वहित होता है एवं -४१५ दिनों में ही रसगोटियाँ इस तरह बड़ा किंवा पूर्वोक्त प्रकार चिन्हयुक्त न होनेमे ( Vesicle ) परिपूर्ण हो जाती है। सह दिनों में ये असम्पूर्ण वा सन्देहजनक एवं दाग बिल्कुल छोटा होनेसे शुष्क पड जाती हैं। पुनार टीका नेके बाद भी ज्वरके विफल कहा जाता है । कभी कभी गोटियाँ उक्त नियमा | सभी लक्षण प्रायः प्रबल हो उठते है एवं कमी कमी नुसार बहिर्गत न हो कर भिन्न स्थानमें २ वा ३ किंवा परिसिप्लेस उपस्थित हो जाता है । पुनर्टीका प्रदान- उनसे भी अधिक मेसिकल निकलने देखे जाते हैं। के समय कभी कभी कोई दुर्वलचित्त व्यकि मूच्छिन हो अपरिवत्तित गो-वीजसे टीका होने परदा दिनों तक जाता है। पैप्युपल उत्पन्न नहीं होते , वरं १४ किंवा १५ दिनोंके एक वार टोका देनेके वाद जिन्ले दूसरी बार टीका बाद बैंगनी रंगका परियोला नजर आता है । इसके यनि दी जाय, उसकी देहमें फिर वसन्तरोग होनेको सम्भावना रिक और भी कई एक परिवर्तन देखे जाने हैं। नहीं रहती। कमो कभी यदि बसन्तररोग होते देखा __रीका देनेके बाद पहले ज्यर नहीं होता, किन्तु भी जाता है. तो उसके सभी लक्षण मृदु होते हैं एवं गोटियों परिपक होने समय यर तथा समी दूसरे शरीरमे दाग नहीं पड़ते। टोका देनेकी प्रथा प्रचलित दुसरे लक्षण प्रगट होते है। शरीरमें १०४ डिग्री पान्त होनेके बाद वसन्तकी संक्रामकता कम हो गई है। उत्ताप रहना है इस समय टोकाकै स्थानमें खुजलाहट, पानी-वसन्त वा क्ल-वसन्त । ( Varcela ) उष्णतर, वेदना तथा आकृष्टता अनुभव होनी है एव ___ अंग्रेजीमें इसे Chicken-pox कहते हैं। यह एकसंक्रा- कांग्त्रोंमें ग्लाण्ड-ग्नमृद्द म्फात तथा वेदनायुक्त हो जाते मक तथा स्पर्शाक्रामक स्फाटक घ्याधि है। यह रोग कमी है, जिसने बचोंको हाथ हिलाने दुमानमे वही पौड़ा कमी अधिक स्थानको घेर कर गरीरसे बहिर्गत होता है। होती है। कभी कभी एरिसिप्लस वा सत एवं दुर्बल उक रोग एक वार होनेसे दूसरी बार नहीं होता, ऐसा वयों को अस्थिरता, उदगमय तथा अन्यान्य कठिन लक्षण संस्कार है सही, किन्तु कभी कभी एक व्यक्तिको दो उपस्थित हो जाते हैं। किसी किसी समय खास कर वार भी होते देखा गया है। यह रोग प्रायः ४ वर्षके