पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७३५

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७६० तथा मुनि। ध्रुबके पुत्र लोकान्तकारी माल • लोमके ध्यान करके मालूम किया, कि वनुओंने उनके आश्रमका पुत्र वाः, धरके पुत्र द्रावण, हुन, हव्यवह, निगिर, प्राण धेनु नन्दिनीको अन्याय पूर्वक हरण किया है। इस पर तथा रमण ; अनिलके पुन पुगजव तथा अविनान ; अग्नि मुनिके मुपले अमेचि यभिशाप निर्गत हुआ। ऋपिने चा अनलके पुत्र कुमार , न सोने परम्तम्ब जन्म प्रदणः कहा-मेरी अवमा को बमुने जम मेरे आश्रमका किया था। शात्र. विशाल नया नगमे ये नीन जुमारके, धेनु को चुरा कर ले गया है, तब उन्हें यहुन जल्द मनुष्य पृष्टज थे । उक्त कात्तिय नथा यति सनत्कुमार कृत्तिका योनि जना लेना पटेगा। द्वाग उत्पन्न हुए। प्रत्यूपरी देवल पवं प्रभासने यमिष्ठने इस तरह माप दिया। उस समय इस विश्वकर्मा जन्म हुआ। ये विश्वकर्मा ही देवभिपी श्रापका विवरण मालूम होने पर अभिशन बसुगण दुःखित है। इनके द्वारा नाना प्रकार मिल्योंका आविष्कार मनने यसिष्ठये माश्रममे आ कर उनके चरणों पर गिर हुधा है। गये एवं अपिके शरणापन्न होकर अननय विनय कर देवीभागउनमें अष्टयसोका विवरण हम तरह पाया उन्हें बुश करने की चेष्टा करने लगे। नव ऋपिने उनले जाता है-एक समय अष्टवमु अपनी अपनी पत्नियों कहा-'मेरे प्रमादसे सम्बत्सरके मध्य हो तुम लोग माथ म्वेच्छाविहार में वाहर हो कर घटनाक्रमसे मिष्ट मापसे मुक्त हो जाओगे। गिन्तु तुम लोंगोंके मध्य जिम के आश्रममें पहुचे। पृथु प्रभृति वसुओंके मध्य द्या वसुने मेरा नन्दिनीका हरण किया था, उसे दीर्घकाल नामक प्रधान वमुको पत्नाने सिष्टकी नदिनो धेनु तक मनुष्य-लोरमें वास करना पड़ेगा।' देव कर अपने पनि उसका परिचय पृछा। स्वामी, ऋषिका वातामै फिर बनुओंने आपत्ति नहीं की। द्याने उत्तर दिया-प्रिये ! उस प्रधाना धेनु स्वामी महर्षि उन्हों ने ऋपिघायर अगीकार कर मिष्ठाश्रमले प्रस्थान घसिष्ट है। नागे हो बा पुल्प, जो वाई म धेनुका झिया। जाने जाने राग्नेमे उन्हें सरिन्-प्रवरा गंगा दूध पीना है, उसकी आयु अयुत वर्षकी हो जाती है। मिला। इस समय ऋषिके अभिमापसे बनुओं को उसकी जवानी कभी नष्ट नहीं होती, दुग्धपानके गुणले महिमा विलुम हो गई थी दयदृदय विनाज्यरसे जज्जे- यौवन चिर दिनो नाप ना बना रहता है। रित हो रहा था। उन्होंने पावनी गद्गाको देखते ही बमुका बात सुन कर बनुपत्नी बोली--महाभाग ! इम प्रणाम करके कहा-'देवि! हम लोग ऋपिके नापसे हत- धेनुर्व दृधरा जब ऐसा गुण है, नव मतलोदमें मेरी एक माहात्म्य हो गये हैं। हाय 'हम लोग सुधामोजी देव सुन्दरी सन्नी है, वह राजर्षि उगोनरको तनया है . उसके हो र किस तरह मनुष्ययोनिमें जन्मप्रहण करेगे, हमें लिये इस नन्दिनी धेनुको ले चलो। इसके दृधको पी| इसको बड़ी चिन्ता लग रही है। इसीलिये हम लोग पर मत्रलोम्मे एकमात्र मेरी वही सन्नी जरारोगहीन हो निवेदन करते है, है मरिन्थेष्ट ! मानुषो हा कर आप ही कर सुन्न स्वच्छन्दतापूर्वक कालयापन करेगी। पत्नीके हम लोगोका उत्पादन करें। हे निष्पापे ! राजर्षि सान्तनु अनुरोधम्ने अन्यान्य वसुओंको महारता द्वारा वन धोने इस समय भृमहलके नायक्ष है। आप जा कर उनकी उपरले बसिष्टमेधेनु चुरा ली। भा- हायें। हम लोग आपके गर्भसे एक एक करके इधर तपोधन वसिष्ठ वनसे फल ले कर आश्रममें जन्मघारण करेंगे। जन्म लेनेके साथ ही आप हम लोगों- लौटे। आश्रम में उन्होंने नन्दिनी तथा उसके बच्चे को न को जलमे फेक देंगो। इस तरहसे थोड़े ही दिनों मे देखा। वसिष्ठ मोचने लगे इन दोनोंको कौन हर ले हम लेग ऋपिके शापसे मुक्त हो जायगे। गङ्गाले इस गया ? वे उसो समय जंगल, पहाड़ तथा कन्दरामें नन्दनी- प्रकार अनुरोध कर वसुगण अपने अपने स्थानको चल की खोज करने लगे। बहुत अनुसंधान करने पर भी गये। गङ्गादेवो भो इस विषयको वार वार चिंता नन्दिनीका पता न चला ! उस समय उस शांत दांत जिते करती हुई वहांसे चलो गई। (देवीभागवत २२३२२४.१४) न्द्रिय महर्षि मनमे क्रोघकी अग्नि धधक उठी। उन्होंने । ५योक्त्र, जोत। ६ सजा। ७ धनाधिप, कुबेर ।