पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/७४१

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वसुबन्धु पूर्वोक्त अयोध्याराज विक्रमादित्य के पुत्र प्रादित्य नया पगिनतों निकट दोनों विश्वस्त मतका मीमांसामार उनकी माताने वन्नुवन्धुग्ने वौदधर्मको दीक्षा ली। पिता- अर्पण किया। की मृत्युके बाद जब प्रादित्य पितृनि हासन पर बैठे, ____ कहा जाता है. कि वन्नुपन्धु पहले अष्टादश ज्ञानाके तब उन्होंने अपनी माता के अनुरोधसे अपने गुरुदेवको धर्ममनकी आलोचनामें प्रवृत्त हो कर हीनयानमतके ही अयोध्या बुला लिया। यहां तीर्थक -सन्मनायभुक्त नया । पक्षपाती हो गये थे। पहले उन्हें महायानमनमें विश्वास प्रादित्यके बहनोई ब्राह्मण-तनय वसुगनने व्याकरणाय नहीं होता था। ये फाहने थे,-प्रस्न प्रस्तावसे इसमें भनानुमार वनुबन्धुशन कोपप्रत्यक्षा प्रतिवाद प्रचार । । बौद्धमतकी कोई यात नहीं है । पीछे वे कही महायान- किया। वसुबन्धुने भी अपने पक्ष ममर्थन करने के लिये मतका ग्लंदन करते हुए किसी अन्धकी रचना न कर बैठे, उस प्रतिवादका खंडन करने उप पक की रचना की । थी। उनके लिये बौद्धधर्मक आस्थावान् राजाने उस इसलिये उनके भाईने उन्हें पुरापपुर चुना कर महायान- मठको दीक्षा दी। उस समय उनके मनमें महायान मत- महापंडित वसुबन्धुको एक लाम्ब पवं धर्मशीला गज- की ययातिक समालोचनाके परिताप उपस्थित हुमा, मानाने दो लाम्ब स्वर्णमुद्राएं पारितोपिकमें दी थीं । इम थे अपनी जीभ काट देना तैयार हुए । उनके भाईने इस धनसे वसुबन्धुने काबुल, पुरुपपुर एवं ययोध्या में नोन समय विशेष अनुरोध करके उन्हें इस दुर्विषह कार्यमे बुद्धमूर्ति स्थापन की यो। वसुबन्धुके इन तरह प्रतिपत्तिविस्तारमै तीर्थक- रोका और कहा इसके पदले तुम महायानमत प्रति पोषक दो एक अन्य लिग्न फर साम्प्रदायिक उन्नतिकी गण अप्रतिम हो पडे । उनको पराप्त करने के लिये नीर्थक्गण मिहमद नामक एक महापंडितको अबोध्या चेष्टा करो। अपने माईके नुस्खसे ऐसी बात सुन कर वसु- बुला लाये । उक्त पंडितने वसुबन्धुकन कोषका मन ! वन्धुने अयन्तसक, निर्वाणसूत्र, सद्धर्म- पुरीक, प्रशापार- खंडन करने के लिये दो नधोंकी रचना की। उनमेंसे मिता, विग्लकीर्ति तथा सन्यान्य सूत्र ग्रन्थोंको टीकाकी १० सहस्र गाथायुक्त एक प्रथम वैमापिकको प्यारया रचना की थी। इनके अतिरिक्त उन्होंने महायान मत के प्रतिपादित हुई थी। दूसरा प्रथ १२ हजार गाथाओंमे । विस्तारार्थ कई एक शारखग्रन्थोंकी रचना की थी। लिखा गया था, उममें तीर्थक गजाने अपना पक्ष समर्थन अयोध्यानगरमें अम्मी वर्षकी मवम्यामें बमुवन्धुने करते हुए अभिधर्मकोपका विपरीत अर्थ किया था। मवलीला कारण की। तिब्दतके नारानाथन मगध- ____ इन दोनों प्रयोंकी रचना करनेके वाद मिल्भने , राजवंशतिन गाउ परनेसे जाना जाता है, कि पूर्वजन. वसुबन्धुको तर्क करनेके लिये ललकारा, कि तु वसुयधु, पदाधीश्व- (बंगराजेश्वर ) श्रीचन्द्र के पुत्र राजा धर्म- फिर व्यर्थके वादानुवादमें प्रवृत्त नहीं हुए। उन्होंने उन्हों , चन्द्रको समामें यमुयन्धु विद्यमान थे। विशति माग सम्पूर्ण