पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/९१

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रोम-साम्राज्य माताओनने राजा चलाने के लिये अपने स्वामी-1 अपने पुत्र माथियो काण्टाजेनसे सहयोगले के परमहितैपी मित्र ज्ञान काण्टाकुजेनको राज्य- गजकार्य चलाना चाहा । सन् १३५५ परिदर्शक ( Recent ) नियुक्त किया । इस ६०मै उमने राजकार्यासे अबसर प्रहण कर वर्ष उसका प्रभाव देख कर ईन्धित हो शत्र - अपने पुत्र के हाथ शासन-मार अर्पण किया। ऑने उसको राजद्रोही और धर्मद्व पी होनेकी माशियोको सन् १३५ ई०में सिंहासन माग घोषणा की और उन्होंने उसकी माताको । करने पर वाध्य होना पड़ा। कर लिया। पीछे उमने डेमोटिका नगरमे अपने ७८ मेनुएल १३६१-१४२५१० मस्तक पर राजछत्र धारण यिा। किन्तु ७६ जान (२य) मेनुपलके साथ १३६६ ई०में शासन- उसकी सेनाओंने उसका साथ छोड़ दिया। भार ग्रहण और सन १४०२ ई० में राजा-त्याग इस पर सावीय वह असभ्य जानिशीशरणमें दिया। चला गया। इधर नौ-सेनापति आयोकोकास ८० जान (३य) १४२५ १४४८ ई० और धर्माध्यक्ष जान (John of Apri the ८१ करतान्ताइन १४४८ ई०मे मानाना सिंहासन Tatriarch) राजाका मालिक हुआ । राजामे पर आरोहण किया और १४५३ ई० २६वीं मई को घोर अत्याचार और लाचार फैल गया। तुर्यागेना द्वारा कनम्तालिनोपल अवरोध नौसेनापति मारा गया। राजा घोर विद्यः किया गया और विजयके समय वह मारा गया। ड्वला उपस्थित होने देव रानी आनने काण्टा. रोमसामान्यका भापतन। कुजेनकी निर्वासनको दण्डाना रद्द करने के लिये धर्माध्यक्ष जानसे प्रार्थना की । वढलेमें सम्यक समुन्नत गेमजाति उद्यमने इतने दिनों तक जानने उसको राजा और धर्मच्युतका डर धीरे धीरे जिम विस्तृत रोमराजाने परिपुष्ट हो समग्र दिग्याया। इसी गड़बड़ी में काण्टाकुजेनने सेना- सभ्यनगनको प्रकाशित किया था, उस सुमहान् राज के साथ आ कर अनम्तान्तिनोपोल्ट पर घेरा तन्त्रका किस तरह हास हुआ, रोमका राजचरित्र और डाल दिया। रानीने यह समाचार मुन कर ! इतिहासकी आलोचना करने पर उसका एक पूर्णचित्र उसके पदानत हुई । आक्रमणकारीने अपनी प्रकाशित हो सकता है। अमीम पोर से रोमके नेताओं कन्याके साथ राजकुमार जानका विवाह कर ने राजपद पर प्रतिष्टित हो कर प्रजाम जो भय उत्पन्न दिया और स्वयं उसके संरक्षक बन गया। यह किया था, उसीसे रोमराज्यको भित्ति मजबूत हुई थी। १३४७ ई०की घटना है। सिपिओ, सला, सीजरकी अद्भुत वीरता और रणमें जय ___ इस तरह ६ वर्षों तक घोर अत्याचार करने के समयको नृशंस नरदत्या उस समयको सुसस्य होते रहनेके बाद काण्टाकुजेनके राजामें शान्ति तथा अर्द्धसभ्य जातियोंके ऊपर आधिपत्य स्थापित उपस्थित हुई । किन्तु आन्दोनिकासके वंशधर करने पर समर्थ हुई थी। उस पर रोमके राजनीतिक अब राजा न रहे, कौशलसे कारटाइजेन ही राजा प्रभाव, पहलेकी सेनेट, एसेम्बली, कमिसिया और मजि- के अधीश्वर बन गया। अब जान अपने राजा ऐसी आदि राजकीय विधिसे अधिकृत राज्यमें सुशासन प्राप्त करनेके लिये विद्रोहाचरण करने में प्रवृत्त प्रतिष्ठा होने पर भी सभी विभागके शासनकर्ता प्रजाके हुआ। काण्टाकुजेनके अनुगृहीत यूरोपीय सर्वस्व लूटनेसे बाज न आते थे। उन्होने रोमका अन्न पण तुकी सेनाओंने उसको पराजित किया। उस प्रताप प्रजावर्गको विशेषरुपले जता दिया था । उस समय काण्टाकुजेनने वालक अधीश्वरके साथ समयका सम्पूर्ण सम्यजगत् रोमजातिके भयसे सर्वदा पुनः मिल जानेकी आशासे निराश हो कर । कम्पित और विचलित रहता था।