पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१००

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हित होकर जमीनको उवरा बमा देता है। अथच श्वात् शिकोहाबाद पार होकर दक्षिण-पूर्व में अन्यान्य नदियोंको तरह इसकी प्रबल बाढ़ ग्राम, नगर | इष्ट इण्डियन रेलवेके साथ समान्तर भावमें जाकर बहा करके मनुष्योंका सर्वनाश नहीं करतो है। रेलवे कानपुर जिलाके दक्षिण शिकन्दरा और भगिनीपुर होती होनके पूर्व गंगा समस्त देशीय वाणिज्यक समुदय | हुई यमुनासे मिली है द्रव्यादि वहन करती थीं। रेलवे होने पर भ वह काम ___विहारम शोण और गङ्गाके बीच कुछ नहरे । कलकत्ताके पूर्व दिशामें एक नहर गई है । नारी बिलकुल बन्द नहीं है। पहने युक्त प्रदेशका पण्यद्रथ हम लोगोंको यथेष्ट लाभ है। जहां जसमावसे उपज गंगापथमे ही ममद्रको जाता था। अब भी चावल, नहीं होती वहां नहरों द्वारा कृषिकायम सुबिधाये होने दाल, तीमी, मरमी आदि द्रथ गगा वक्षम रेलमें लगी हैं। वृष्टि नहीं होने पर भी नहरका जल कृषि- रफतनो होता है। कार्यम' लाभ पहुंचाता है। ___ अगरेजोंके समयमें गंगामे कई एक नहीं निकाली गगाका माहात्म्य इमी तरह क्रमश: बड़ा है। पृथ्वोके गई है। वे नहर गंग ( Ganges Canal) कहलाती किमी नदीतीर पर उतने तीथ स्थान नहीं हैं, जितने हैं। गगाकी नहरें प्रधानत: दो भागों में विभक्त है-- गंगाके किनारे देखे जात हैं। उत्तर ( Upper ) और निम्र ( Lower ) । गङ्गा जिम स्थान पर गङ्गा ममुद्रसे मिली है उमीका नाम तशासपनुगामा प्रदेशका दााव कर।। 'ग गामागनगमे गायत्या प्राचीन कालसे ही यह १८३७-३८ ई० में इम दोआवमें एक भयानक स्थान हिन्दुओंक अतिपवित्र तीर्थस्खान माना गया है। दुर्भिक्ष हा था जिमसे प्रजाको अधिक हानि हुई ( भारत श८५ परिव १०८ प.) किन्तु पहले इम मागर- रही। भविष्यतमें इस तरहका अकाल न पड़े और मगमको स्थितिक विषयमें बहुतांका मतभेद रहा। कृषिकायेके लिये प्रच र जल पाया जाय, एमके लिये भूतत्त्वविद् पण्डितोंका अनुमान है कि ममय समुद्र मनुष्यों नहरोका होना परमावश्यक ममझा। का स्रोत राजमहल तक प्रवाहित हा था। एमो दशाम ... १८४२१०में हरिहारके निकटसे नहर कटाना स्वीकार करना पड़ेगा कि, वर्तमान स्थानमे प्राय: १५० प्रारम्भ हुवा। १८५४ ई०के प्वों अप्रेलको यह काम कोस उत्तरमें मागरमगम था । २४ परगना, नदिया, यशोर सम्म ण हो गया। हरिद्वारके उत्तर गपिशघाटमें यह वर्धमान प्रति जिला गंगा नदीके गर्भमें उत्पन्न हुए थे। नहर गगासे निकल सहारनपुर, मुजफरनगर होती महाभारतर्क तोर्थ यात्रापर्वाध्यायमें लिखा है कि हुई फतेहगढ़ तक चली गई है। वहां फिर उमीमे एक "कौशिकी तीथ में (गगा और कोशो नदीके मगमान गाखा निकाल पथिममुख होती हुई, मोरट लाई गई राजा युधिष्ठिरउ पन्धित होकर क्रमश: मभी मन्दिरीमें है । वेगमाबादक पास दक्षिण-पूर्वम ख बुलन्द गये थे। उसके बाद उन्होंने पञ्चशत नदोयक्त गंगासागर- शहर और अलीगढ़ होतो हुई, अकबराबादमे आ यह | संगम देखा और तब मागरक किनार कलिङ्गन्देश था।" दो शाखाओं में विभक्त हो गई है। एक शाखा इटावा (वन५० ११३५०) और दूमरी कानपुरको गई है। इस नहरको लम्बाई रघुवशमें रघु राजाके दिग्विजय-वण नके पढ़नेसे २२२॥- कोम है। इसके बनाने में २ कोटि २४ लाख २४ । मालम पड़ता है कि उस समय वा देशकै पथिम भागमें हजार रुपये व्यय हुये थे। इस खाडीके तैयार होने पर गाजी बहती थी और इनके बीच में कई एक बड़े जिनियर कटली साहबके सम्मानार्थ तोप छोड़ गई थी बड़े होप थे। (घु, ४३५-१७) गगाको दक्षिणो नहर भी उपरोक्त नहरसे बड़ी ___मातवीं शताब्दीमें एनचुयाङ्ग कापसे साल है। यह नहर नदरई स्थानमें काली नदी और एटार्क | दक्षिणको और समतट नामक स्थानमा पश्चिममे ईशास स्थान होकर गोपालपुर, कानपुर, शाखा| यह मालूम होता है कि वह सामानहाकी जिला और जरा मामके स्थानमें इटावासे मिल गई है । सत्य के उत्तरीय भागमें है और स नारे अवस्थित है ।