पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१०६

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१०४ गङ्गाधर सरखतो-गङ्गापुर रोध किया। बाद १८१५ ई०के जुलाई महिनमें पेशवा फरोस कहते हैं । ब्रह्मवैवर्तपुराणके अनुसार यह जाति गङ्गाधरको साथ लेकर तीर्थ यात्राकै लिये पुरन्धरपुरको लेट जातीय पुरुषके औरससे और धीवर जातीय गये। वहां १४वौं जुलाईके सन्धया समय त्रिम्बकजी। कन्याके गभसे पैदा हुई है। पेशवाके साथ मिलनेके लिये उन्हें विठोवाके मन्दिरमें | "नटात बर कन्याय गङ्गा पुर प्रतिस्मत:'" ( ब्रह्मा सह ), ले गये आराधना करनेके बाद गंगाधर पेशवामे मिले इम जातिके लोग सर्वदा गगा किनारे रहतं और घाटों इसके बाद जब वे दोनों अपने डेरे पर लौटे आरहे थे, पर दान लेते हैं। इसी लिये ये गगापुत्र कहे जाते हैं। तो रात में त्रिम्बकजीमे रखे हुए गुहा हत्याकारियोंक ४ काशी प्रभृति स्थानोमें गङ्गातोरपर रहनेवाला होन हाथ इनको मृत्य हुई। ब्राह्मण जब कोई क्रिया करनी होती है तो ये हो ब्राह्मण गाधर मरस्वती (गगाधर योत देखो) उस कायको करा देते हैं। इसी लिये गङ्गापुत्र कहलाये। गङ्गाधर सुनू राघवभ्य दय नामक संस्कृत काव्यप्रणता। ये तीथयात्रियांकां हमेशा बतलाया करते हैं कि किन गङ्गाधरेन्द्र (गगाधर चौत देवी) सानोंमें कमी २ क्रियायें करनी चाहिये । उम तोर्थ स्थान गङ्गानदी-जैनमतानुसार जम्ब दीपकी गङ्गा, सिन्धु आदि पर कोई यात्री बिना गङ्गापुत्रको पूछे कोई धम कभी नहीं चौदह नदियमिसे एक नदी। यह नदी भारतक्षेत्रमें कर सकता है। गङ्गा स्नानक ममय गङ्गापुत्र यात्रियोंके बहती हुई पूर्व ममुद्र में जा मिली है। इम नदीसे हाथमें जल और कुश देकर मन्त्र पढ़ाते हैं। इसके बाद चौदह हजार शाखाएं निकली हैं: जो भारतक्षेत्रक वे स्नान करते हैं। मान करनेके बाद वे यात्रिवाके सिर तीन खण्ड : प्रवाहित हैं। (ता. म. १ १. ) पर चन्दन लगाते हैं। यात्री ब्राह्मणको यथाशक्ति कुछ गङ्गापति-३ हिन्दी भाषाके एक धार्मिक कवि। १७१८ द्रव्य देकर बिदा करते हैं। काशीमें गङ्गाघाट पर ईको इनका अभ्य दय हुआ। इन्होंने विज्ञानविलाम सभी गगापुत्रीका अपना २ थान निद्दिष्ट किया हुआ नामक ग्रन्थ बनाया है उममें विभित्र भारतीय है। दूमने दूसरे ब्राह्मण भो गङ्गापुत्रक कार्य करते हैं। शास्त्रोक्त धाँका मविवेश है और वेदान्तदर्शनको प्रतिष्ठा गङ्गापुत्र दूसरे ब्राह्मणांको अपेक्षा निम्न श्रणी में गिने को गयो है। गुरु और शिष्यके सवाद द्वारा यह धर्मो- जाते हैं। पदेश प्रदान करता है। गङ्गापुर-१ राजपूताना अन्तर्गत जयपुर राज्यका एक २ हिन्दीके कोई कवि । १८८७ ई०को इनका जन्म | नगर । इसको जनसंख्या प्रायः ५८८० है। हुआ था। २ राजपूतानाके जयपुर राज्यमें इसो नामके सह- गङ्गापत्री (म० स्त्री०) गङ्गावत् पवित्रम् पत्रमस्याः, बहुव्री० सोल और निजामतका मदर । यह अक्षा० २६ २८ वृक्षविशेष, एक तरहका पेड़ जिसके पत्ते अत्यन्त सुग- उ. और देशा० ७६४४ पू०, जयपुर शहरसे ७० मोल- सित मका यी मगमा और गध- को दूर। पर अवस्थित है। लोकमख्या प्रायः ५१५५ पत्रिका है। इसका गुण कट उष्ण, बातनाशक और है। यहां दो विद्यालय और एक अस्पताल हैं। व्रणका ततशोधनकारी है । ( राजनिः ) ३ सारन जिलाके अन्तगत एक नगर । लोकसंख्या । गाापथ ( म० पु. ) गगन, आकाश । लगभग २६६६ है । ४ इंदराबादके औरंगाबाद जिलाका गङ्गापाट ( हिं० पु० ) घो? के तंगके नीचेकी भौरी ।। दक्षिण-पूर्वीय तालुक । भूपरिमाण ५१४ वगमोल और बहतोका ख्याल है कि यदि वह भौरी तंगसे बाहर हो लोकसंख्या प्रायः ५१४१३ है। इस तालुकम १८० ग्राम जाय तो शुभ माना जाता और यदि तंगके नीचे पड़ तो | लगते हैं जिनमेंसे १५ जागोर हैं। गंगापुर इसका अपभ होता है मुख्य सदर है। तालुकको भामदना प्रायः तीन लाख गंगापुत्र (स० पु. ) गगायाः पुत्रः, ६-तत्। १ भीम ।। रुपये है। २ कार्तिक। ३ वर्णसार जातिविशेष। इसे मुरदा- ५ युक्तप्रदेशमें बनारस जिलाका पूर्वीय तहसोस ।