पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/११०

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गमवा-गश: पादिके काममें पाता है । गंगेरन दो प्रकारको होतो है | इधर सब लोगोंने समझा कि गङ्गश फिर इहजगत्- एक छोटी दूसरी बड़ी । बड़ी अम्ल मधुर, त्रिदोष माशक में न थे, उन्हें भूतोंने खा डाला। परन्तु कुछ दिनों तथा दाह और व्यरको दूर करती है। बाद वह एकाएक ममानेमें जा पहुचे । उनको देख गङ्गरुवा (हिं. पु.) एक तरहका पड़ जो पहाड़ पर करके सब लोग चकित हो गये। किन्त उन्होंने किसीसे पाया जाता है। इसके फल ऑवलेकी तरह छोटे होते कोई बात बतलायो न थो । मामाने उन्हें गोरु कहके हैं। इसका पेड दवाई कामम' पाता है। वैद्यकर्म इस | गाली दे डाली। गङ्गशने इसके उत्तरमें कहा- पेडका फल कफ-वात-नाशक, पित्तकारक, भारी, तथा "विगवि गोख किमवि गीत्व यदि गांव गोल मयि महि तत्त्वम् गरम माना जाता है। इसके फल खट्टे और मोठे होते हैं। भगवि च गोव' यदि भवदिष्ट' भवति भवत्यपि सम्प्रति गोत्वम् ॥" गाश-एक अमाधारण नैयायिक। यह गगेशोपाध्याय गोत्व यदि गोमें होता, तो मैं वह नहींई। फिर मामसे विख्यात हैं। इनका दूमरा नाम गंगेश्वर था। यदि गोभिवमें गोत्व सम्भव है, तो वह बात इम समय इम्होंने तत्त्वचिन्तामणि मामक प्रसिद्ध न्यायग्रन्थ लिखा है। मब पर लागू हो मकती है। नवदीपके कोई कोई नैयायिक कहते हैं कि वंगदेशमें | उत्तर सुन करके मातुल अवाक् रह गये अति दरिद्र ब्राह्मणके घर उन्होंने जन्मग्रहण किया। दिनसे गङ्गश "चूड़ामणि" जैसे प्रसिद्ध हैं। था। वास्यकालको गगेशके पिताने उनको लिखना पढ़ना उपयुक्त जनश्रुति कुछ भी सत्य जैसी नहीं समझ मिखाने के लिये बड़ो चेष्टा को किन्तु इसमे उनको कुछ पड़ती। यह वङ्गदेशवासी नहीं थे । जिम समय वङ्गके लाभ न हा । पिताने नितान्त दुःखित हो गैगेशको मवहीपमें न्यायका उत्कर्ष न था और जब वासुदेव सार्व- उनके मोतुम्लाम्लय भेजा था। गंगेशके मामा एक अच्छ से भौम तथा उनके गुरु पक्षधर मित्र आविर्भूत न हुए थे, पण्डित रहे। इनके अनेक छात्र थे। मातुल और इनके उससे भी बहुत पहले गङ्ग शउपाध्यायने जन्मग्रहण किया छात्र बहत चेष्टा करने पर भी उन्हें कोई व्याकरण पढ़ा | था । यह भी निःसन्देह बतलानका उपाय नहीं कि वह न सके । इमसे मबने उनके लिखने पढ़नेकों प्रामा एक मिथिलावासी रहे । परन्तु रङ्गशका अन्य पढ़नसे इन्हें हो प्रकार परित्याग को थी। गंगेश मामाने में सहाध्यायियों- नव्यन्यायका जन्मदाता कहनेमे कोई अत्त्व क्ति नहीं का इका भर.करके पति दोन भावसे कालयापन करने । पाती। लगे किसी दिन रातको एक छात्रने जा गङ्गीशको बहुत - इनको अक्षयकोति तत्त्वचिन्तामणि है। उसको पुकारके उठाया और तम्बाकू भरनेका हुक्म लगाया था। "न्यायसत्त्वचिन्तामणि" "चिन्तामणि" पोर “ममि" भो उन्होंने भयसे अांखें मलतं मलते चिलम चढ़ायो, कही है। यह महान्याययंन्य चार खण्डोंमें विभक्त है- किन्तु उस पर रखनेको आग न पायो । मातुलालयके प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्दखण्ड । इन्होंने प्रत्यक्ष साख एक विस्तोणं मैदान था। इसी धोरा. रजनीको खण्णमें शिवादित्यमित्र और टीकाकार वानस्पतिका इस प्रान्तरमें भाग जलतो धो । छात्रने कितनी ही धमकी मत उहत किया है। दे करके उस मैदानसे गङ्गशको भाग लेने भेजा था। ____ तत्त्वचिन्तामणिको भांति विस्त त और बहुसंख्यक गंगेश भयसे रोते रोते भाग लेने गये। किन्तु यहां जा टीकाए किसी न्यायग्रन्यकी नहीं है। पहले पक्षधर देखा, उनकी चेतमता उड़ती बनी। किसो मृतदेह मित्र, फिर उनके शिष्य रुचिदत्तने चिन्तामणिको टोका पर बैठा कोई योगी शवसाधना कर रहा था। गंगेश | रचना को। एतशिव वासुदेव सार्वभौम, रघुनाथ शिरो- योगोके पद पर विलुण्ठित हुए। इसने गंगेशके मुखसे | मणि, गंगाधर, जगदोश, मथरानाथ, गोकुलनाथ, भव । उनके पानका कारण पौर दुरवस्थाको कथा सुनो थो। मन्द, शशधर, शौतिकण्ठ, हरिदास, प्रगल्भ, विश्वनाथ, योगी उन्हें अपने साथ ले करके चलता इमा। इसोके । विपति, रघुदेव, प्रकाथधर, चन्द्रनारायण, महबार, अनुप्रहसे गंगेश घोड़े दिनोंमें बहुत कुछ सीख गये। । हनुमान प्रति प्रधान प्रधान नैयायिकोंको रचित पनिक