पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/११३

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शतभिषा, अनुराधा तथा पुनर्वसु नक्षत्रमें और रवि, विपुल, सह्याद्रि, दक्षिणारण्य और उड़ीमाके बीच मङ्गल तथा शमिको छोड दूसरे किमी दिन हाथी मोल्न कालिङ्गक जङ्गल पड़ता है। यहां मफेद हाथी पाये लेमा, देवना ओर देना शुभकर है। इमको छोड़ कर जाते हैं। यह शीघ्रगामी, स्थिरपद और बलशाली दूमरे ममय और शनिवारको क्रयादि करनेसे अमङ्गल होते हैं। इनको दोनों भाख चिड़े को-जैमी, शरीरक होता है। पराशरसहितामें हाथोको ४ जातियां रूप मृदु तथा लाल और पंवकी जड़ कुछ कुछ छोटी लिखी हैं-भद्र, मद्र, मृग और मिश्र। इनका लक्षण पड़ती है। यहां कभी कभी पद्मवर्ग गज देखने में पा वराहमिहिरने जैसे लगाया. पराशरम हितामें भी आते हैं. उनको पोठ कमान जमौ; ताल, जीभ और आया है। होठ लाल, आंघ सुवर जैमा, नख नोचत्त, दांतका ___ मब स्थानोंके हाथो एकरूप नहीं होते। वनके रङ्ग शहद-जमा, गला पीला और सूड बड़े माप-जैसी भेदसे हाथियों में भी अन्तर पाता है। प्राचीन कालको नम्बी लगती है। यह बड़ी सुगमतासे पकड़ेगा प्राय, कारुष, दशाण, मागणयक कालिङ्गक, अपरान्तिक, सकते हैं। मौराष्ट्र और पञ्चनद, यही आठ जङ्गल हाथियोंकी खदान नम दा उदधिमेव, ओर दयाण पर्व तक मच गिने जाते थे। फिर वासस्थानके अनमार गजोंके वर्तो वनका नाम अपरान्सिक है। इस जङ्गलके हाथो आकार और यवहारमें भी भेद पड़ता है। हिमालय, मानो, धोर और काले होते हैं। इनका कूला और मला गङ्गा, प्रयाग और लौहित्यके बीच एक बटा जङ्गल प्राच्य- खूबसूरत, दांत मोटे और लम्ब तालु, जिला, प्रोष्ठ पौर वन कहलाता है। इसके हाथी भूरे स्थिरस्वभाव चौड़े , मुह भो देखने के बुग नहीं, चमड़ा मुलायम, एडी और नव अतिशय विश्री, रीढ़ और पूछको जड़ कोड़ नाम्न और लम्बा, पाठकी रीढ़ कमान ज मी और सम्बो चौड़ा, मड कुछ मोटी, बहुत वेगमे न चल मकन मदसे कंवलको खुशबू आती है। म जङ्गलके हाथोकी वाले और मन चले जैसे समझ पड़ते हैं। मरी जगह जाना अच्छा नहीं लगता। __मकल, मत्सा ओर गङ्गावतार--सोन स्थानोंके वन- हारका, अवु दावर्त भोर नर्मदाके मध्यवर्ती वनकी या माम कारुक् वा कारुष है। इस जङ्गलके हाथी सौराष्ट्र कहते हैं। इम जङ्गग्नमें मिलनेवाले हाथी बहुत काले, बहुत वेगशाली, न बहुत बड़े न छोटे हो और अल्पायु, दुदोन्त और वेगशाली होते हैं। इनको पार्न अति सुन्दर पदवाले होते हैं। महागिरि, दशा, भूरी, शरीरका गठाव सुन्दर और कान, नख और विन्धघाटवी और इरावतीके बीच दशार्ण वन है। इस शरीर अपेक्षाकृत छोटा रहता है। यह प्राणान्समें भी जङ्गलमें काले और लालहाथी निकलते हैं। इनकी कुछ सोखना नहीं चाहता। । अङ्गम्ति और सूडको नोक बहुत लम्बी, जांध गोल, हिमाम्लय, मिन्धु और कुरुजाङ्गलके बीच पञ्चनद वन शरीरमें छोटो छोटी सफेद छिटिया पड़ोहई, आंख मधु है। इस जगलके हाथोका दांत सफेद, रूखा पीर जैमी लाल और मंह, मत्था तथा गन्ना मोटा होता है। खिला हुआ रहता है। इसके शरीरसे एक प्रकारवा यह बहु बलशाली रहते हैं। इनके दांत भी बहत बड़े मगन्ध निकलता और सूड पर छोटो छोटी फुटविया होते हैं और पमोनेसे पामके फल्लका गन्ध निकालते हैं। पड़ जाती हैं। यह अल्पायाममें ही शिक्षाग्रहण करता पारिपात्र, वैदिश भोर ब्रह्मावर्त के बीच मार्गणयक और किसी स्थानमें जानसे नहीं हिचकता। यह नहीं नामक कोई वन था। इसमें बलशाली और अभिमानी कि उम प्रकारके मभी हाथी निन्दनीय वा प्रशसभी बड़े बड़े हाथो रहते थे। इनकी श्राखोका रङ्ग शहद होते हैं, उनकी अवस्था देख करके भला या बुरा .. जैसा सुख, चमड़ा भो कुछ नर्म, सूड खूबसूरत, शरीर- राना पड़ता है। (परागर ) के रोएं विवाने, देहको बनावट बहुत अच्छी और पूंछकी पराशरसंहिताम नाव नसे सूड तक प्रत्ये क अवयवर्क मह उत्तनी बड़ो नहीं लगती। शुभाशुभ लक्षण लिखे है, किन्तु उन्हें पहचानमा बस