पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/११४

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गव ठिन है। इसो लिये पराशरने अपने आप बतला | नहीं; किन्तु परस्पर समान, दीर्घ रोमयुक्त, विशाल शिखर दया है-कहीं भी सब लक्षणवाले हाथी देख नहीं | विशिष्ट, कर्णमूलसे अर्धहस्त पर्यन्त विस्त त, संयत और ते, अतएव कई प्रधान लक्षणोंसे ही भला बुरा निर्णय स्थ ल होनेसे नानाविध सुख देनेवालो है। कान बेबाल पर लेना चाहिये। अनावश्यक समझ करके सब छोटे हलके चमड़े का और छेददार, नसें मिल हुई', संकीण, क्षणांको उल्लेख नहीं किया, कई प्रधान प्रधान लक्ष विषम, रूखा, कड़ा, ठहरा. ह.श्रा या गोल होनेसे हाथो झोंकी ही लिख दिया है। का आयु घटाता है। नाड़ी शून्य, बड़े छेदोवालो, के हाथोकी सूड पूछसे छोटी अथवा पूछ जैमो, बहुत | चिकन', दुन्दुभिक भांति वॉलनेवाली, कपाल के प्रास्फाल लम्बी, छोटी, बहुत मोटो, रूखी, व्रणयुक्त वा क्षुद्र नसे दारुण शब्द निकले, चवर-जैमो और मोर तथा लियुक्त होना बुरा है, इससे विपरीत पड़ने पर अच्छा साड़के पेड़के समान होना अच्छा है। समझना चाहिये । सूड पूछको बरावर, छोटी या बहुत | हाथोका कण्ठ सीधा; छोटा न हो और लम्बा ठीक बड़ी रहनेमे दुःखप्रद, छुद्र लगनेसे रोगकर और बहुत रहनेसे अच्छा है। पीठको हण्डो बहुत ऊची नीची या टी होने पर अर्थनाशक है।। छोटो खराब है। वह ८६ अंगुल लम्बो और घोड़ के फलक

  • हाथोकं दोनों मसूड़े रोमहोन, बहत मोटे. असमान जैसा रहनसे लाभ है। हाथोका शरोर लगातार अचा

और ढीले रहनसे प्रभुका अमङ्गाल और रूए'दार, सुशृङ्ग- | या मसोला, चढ़ा उतार, हलका, लम्बा या बालदार सबद तथा कुछ उठे होनेसे स्वामीकी समृद्धि होती है। होनेसे अमंगल आता है, इससे उलटो अवस्थामें किसी . हाथोके मुहको दोनों ओर जो दो दांत निकलते, बातका खटका नहीं। को यहां गजदन्त कह सकते हैं। यही दोनों गज- हाथोके नाखून कोटे, काले, ट कड़े-जैसे और रूखे त एक दूसरेसे छोटे बड़े, सङ्कीर्ण, उठे हुए, भस्म जैसे होनेसे बुरे हैं, किन्तु अर्धचन्ट्रको तरह चमकदार और स्ववर्ण, टेढ़े, हलके, मटमैले, रूखे, मृदु, नोचेको भुके | पहले कहे लक्षणमि उलटे पड़ने पर अच्छे होते हैं। सर, जड़ और बोच ढास्न, प्रान्त भागमें मोटे, लम्ब या हाथोके पैर गिरे ह.ए, रूखे और तलवेमें बह त महत ऊचे पूरे होनेसे दोषजनक होते हैं। इससे महा- अच्छे लगनेसे दुःखदायो होते, किन्तु १ हाथ लम्बे और पल और मालिकका बहतमा प्रमाल लगता है। हाथोके | कछुवे जैसे रहने पर शुभजनक हैं। इसके अलावा और

  • बराबर, चिकने, खुले हुए, भरपूर, व्रणशून्य, कलौ भी कितने ही सूक्ष्म लक्षण ऋषि मुनियोंने निर्णय किये

य, दृढ़ और मृणाल वा कुसुमको तरह शुभ्रवर्ण रहमा | हैं। इस विषय मे बधिक ममझने के लिये " मता' देखा। मनुष्य जैसे पितामह ब्रह्माको अपना पूर्वपुरुष जैसा और हाथोका तालु खेतवर्ण वा कषाय होनसे अच्छा है। बतलाते, बड़े डोल डौलवाल हाथो भी ऐरावत आदिको से धन और भायुः बढ़ता है। इसके दोनों होठोंके अपना पितामह वा पूर्वपुरुष-जैसा कह मकते हैं । इनके दिनों जोड़ परिमाणमें छोटे पड़नसे मुखरोग होता है, ८ पुरखे हैं-एरावत, पुण्डरोक, वामन, कमद. अञ्चन. मित १२ प्रा लि रहने पर सब बातोंमें सुख है। पुष्पदन्त, सार्वभौम और सुप्रतीक ! उन सबको दिग्गज गजके पोष्ठ लोमशून्य शम्बम्लीयुक्त और थोड़े तांबड़े कहा जाता है । दिग्गजोंके हो वंशधर महाकाय गजोंने गोसे मुहका रोग लगता है। फिर लम्ब रूए वाले, पृथिवीके बड़े जङ्गलमें अपना आधिपत्य फैला दिया है। सर कमल जैसे लाल, १६ अङ्गाल लम्ब और १२ | इनकी कुलानता भी शायद देख पड़ती और डील डॉलमें हल चौड़े होठ स्वामीका आयु बढ़ाते हैं। भेद भी पा जाता है।८ दिग्गजोंके वशमें उत्पर हाथोकी दोनों कनपटियां कम-बढ़, बेबाल, देहको होनेसे हाथी भी ८ भागोंमें बटे हैं। इनमें ऐरावत -जैसो बरखा, बराबर, गले और पीठसे बड़ो, अधूरी, वंशक गज ही श्रेष्ठ गिने जाते है। यह शमवर्ण, लोम लको, परिणामशून्य और छोटो लगनेसे प शून्य, अल्पभोजी, बलवान्, बास बई, युपके समय बिग-