पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/११६

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११४ गण होनबल कहते हैं। २१ हाथ मोटो और मट्टीमें ४ जिस हाथोके शरीरको बनावट बहुत अच्छी और हाथ गहरी गड़ी हुई लकड़ी उखाड़ या तोड़ डालने- गंठी हुई, दांत सुहावने. शरीर बड़ा, सेजस्खितापूर्ण वाला हाथो हो मबमें श्रेष्ठ होता है। पहली जैमी | तथा देखने में अतिशय हृष्टपुष्ट रहता, उसीका नाम मोटी, ३॥ हाथ मट्टीमें गड़ी और ७ हाथ अपर निकली रम्यक पड़ता है। यह हाथी मम्पत्ति वृद्धि करता है। हुई लकड़ीको मध्यबल हाथी तोड़ या महजमें हो अङ्कश आदिके दारुण प्रभावसे भी वेदना अनुभव उखाड़ करके फेक सकता है। पहले जिम मोटी लक- न करनवाला और शुद्ध लक्षणयुक्त हाथी भीम कहलाता डोकी बात कही है, उससे प्राधा मोटा ३ हाथ मट्टोमें है। यह राजार्क सब अाँको मिद्धि करनेवाला है। गाड़ा और ६ हाथ ऊपर उठा हुआ खूटा तोड़ या उखाड़ जिम हाथोकी मड परसे पूंछ तक एक लकीर करके फेंक सकनेवाला हाथी होनबल कहलाता है। देख पड़ती, ध्वज कहा जाता है। यह साम्राज्य और मेरी बलको देख भाल करके जांचते हैं, हाथी लड़ाई टोर्घजीवन देनवाला है। पादिम क्या काम देगा और कैमा बल लगावेगा । शुभ दोनों कुम्भ परस्पर ममान, देखने में बौना, आवत- दिनको शभन्नग्नमें हाथोको गेरूसे रंग करक कानमें | विशिष्ट और पावतंस्थानमें उन्नत रहनेसे कुञ्जरको चामर, शा आदि सुन्दर गहने पहना देना चाहिये। अधीर कहते हैं। यह हाथी राजाओंका बुरा करता है। महावत पहले पहल जब हाथोको चलान लगता, उसको जिम हाथीको पोटसे तोंदी तक प्रावर्त और देश दोनों ओर हजारों लोगोंको हल्ला मचाना पड़ता है। पुष्ट तथा बलशाली होता, वीर कहा जाता है। इससे जो हाथी महावतके प्रांकुसको मारसे उत्साहित हो करके राजाओंके अभिलषित विषयको सिहि होती है। मुंह उठाता और घूम फिर करके पर चलाता, जिसके ___डोल डोल बड़ा, टेह, पुष्ट, दन्त तथा गण्डदेश वेगसे कान फटकारने पर दांत बोलने लगते, असशके | मन हर, खामेसे थका जैसा मालम पड़नेवाला और भाघातको जो कुछ भी पीड़ा अनुभव नहीं करता, जो बहुत बग्नी हाथी शूर नामसे अभिहित है। इसके हाथी लड़ाईसे कभी नहीं भागता या डरसे पोछे पांव रहनेसे राजलक्ष्मी बढ़ती है। नहीं रखता, जिमको चिवाड़से सभी दिशाएं भर जाती जिसके दोनों दांत. नख तथा पुच्छ खेतवर्ण- और मदजलके स्रावसे जिसका कपोल भर आता, बल- शरीरम शफेद धारियों पड़ी हुई और कुम्भ चक्षु और शाली हाथी कहलाता है। पैदल सिपाहियों और सवारी (क्तवर्ण देखा जाता, अष्टमङ्गल कुचर कहलाता का हल्ला सुनने पर रोषसे आंखें लाल लाल निकाल उन है। यह हाथी जिसके घरमें रहता, समस्त पृथिवी पर टकटकी लगा कान खड़े और फैला करके बड़ी मण्डलका प्रधोखर हो सकता है। इस हाथोक निवास- सरपटमें विपक्ष दलके प्रति झपटनेवाले हाथीको भी ऋषियोंने प्रभूत बलशाली जैसा मराहा है। जो हाथी स्थानका परिष्ट वा अनोति मिट जातो और वासे सिंह-जैसे जङ्गली जन्तुको देख करके नहीं डरत और ४०० कोस तक अमङ्गल देख नहीं पड़ता। कलियुग- जो बनावटी हाथियोंको बातको बातमें छिन भित्र कर के राजाओंका पुण्य अंश बहुत ही कम है, इसीसे अव डालते, उत्तम कहलाते हैं। बड़ी बड़ी चिड़ियोंके अष्टमङ्गल कुञ्जर दुर्लभ हो गये हैं। झण्डकी पाबाज या दावानलसे न डर करके चप जो हाथी मांस कटने या लह गिरनसे भी समझ चाप अपनी धुनमें घुमनेवाला मध्यम और भयसे पारो नहीं सकता क्या हो रहा है अर्थात् उसको पोड़ाको होको पीठ पर न चढ़ानेवाला और मत्था झुकाये रहने- | अनुभव नहीं करता, गम्भौरवेदी कहलाता है। में वालाहाथो बिलकुल निक्लष्ट होता है । ऋषियोंने उत्कष्ट दन्सहय, शुण्ड, कुम्भहय, देह, गण्ड वा गण्डयन हाथीको रम्य, भीम, ध्वज, अधीर, वीर, शूर. अष्टमङ्गल, | आवत ( भोरी ) रहनेसे हस्ती शुभलक्षणाकान्त रावत समन्द, सर्वतोभद्र, स्थिर, गम्भीरवेदी और वरारोह-... | है। जिन हाथियोका गण्डदेश हमेशा मदके , लोम १२ विभागोंमें विभक्त किया है। भरा रहता, सीमा पार के प्रहारसे भी जिन्हें मय बिग-